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जय जय मधुकैटभ अर्दिनी ! जय जय महिषासुर मर्दिनी।।
घूसरनयन भस्म मण्डिनी ! चण्ड मुण्ड शिर खण्डिनी।।
रक्तबीजासुर संहारिणि ! शुम्भ निशुम्भ ह्रदय - दारिणि।।
सभ सुर शक्ति रूप धारिणि। सेवक सबहुक उपकारिणि।।
अनुपम रूप सिंहवाहिनि। सबहिं समय रहिहह दाहिनि।।
सुमित उमापति आशिष वाली। सकल सभा जय करथु भवानी।।
( पारिजातहरण नाटक ) उमापति
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