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श्रीछिन्नमस्ता
जय जय जय प्रचण्ड चण्डिके आदि शक्ति तुअ काली।
ब्रह्म विष्णु शिव सकल भुवन भरि तुअ सिरजल ब्रह्माणी।।
अष्टदल कमल उपर रविमण्डल तापर त्रिगुण सुरेखी।
तापर रति विचरित मनमध कर तापर पद तुअ पेखी।।
लहलह रसन दसन अति चञ्चल विकट वदन विकराला।
पीन पयोधर ऊपर राजित उरग हार मुण्डमाला।।
उत्तम अंग बह वाम पाणिकै दहिन कल्प धरि कांती।
निज गल उछिल लिधुर मधुरिम छुबि जीविअ भलभाँती।।
योगिन युगल पास दुइ पोसल अरुण तरुण घनश्यामा।
तीनि नयन तुअ जोति जगत भरि सहस्र भानु अभिरामा।।
भाव भक्ति वर दिअ परमेश्वरि भुक्ति मुक्ति वरदाने।
हिमगिरि कुमरि चरण ह्रदय धरि सुमति उमापति भाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )
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