मंगलवार, 31 जुलाई 2012
106 . ऐ हवा ऐ फिज़ा तुमने तो उन्हें देखा है
106 .
ऐ हवा ऐ फिज़ा तुमने तो उन्हें देखा है
लता जैसा तन और फूल सा जिनका चेहरा है
हर रात परवाना शमा पे मरता है
पर कौन है जो उसके इस दर्द को समझता है
प्यार ही है वो रास्ता
जो खुदा तक है पहुँचता
जिसने प्यार न किया
वो खुदा को जाना नहीं
प्यार ही है वो सुरमा
जिसे लगाने पर हर कोई अच्छा लगता है
राम जाने क्यों उनसे ही क्यों
मुझको हुई है ऐसी मोहब्बत
हर और मुझे उनका ही चेहरा दिखता है
ऐ हवा ऐ फिज़ा तुमने तो उन्हें देखा है
लता जैसा तन और फूल सा जिनका चेहरा है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 12-03-1980
ऐ हवा ऐ फिज़ा तुमने तो उन्हें देखा है
लता जैसा तन और फूल सा जिनका चेहरा है
हर रात परवाना शमा पे मरता है
पर कौन है जो उसके इस दर्द को समझता है
प्यार ही है वो रास्ता
जो खुदा तक है पहुँचता
जिसने प्यार न किया
वो खुदा को जाना नहीं
प्यार ही है वो सुरमा
जिसे लगाने पर हर कोई अच्छा लगता है
राम जाने क्यों उनसे ही क्यों
मुझको हुई है ऐसी मोहब्बत
हर और मुझे उनका ही चेहरा दिखता है
ऐ हवा ऐ फिज़ा तुमने तो उन्हें देखा है
लता जैसा तन और फूल सा जिनका चेहरा है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 12-03-1980
105 . विचारों को पालकर
105 .
विचारों को पालकर
ऐसा भी क्या हुआ
दूसरों का भला हो
चाह कर ऐसा भी
अपना क्या हुआ
औरों ने तो
बारूदों का ढेर ही
कदम - कदम पर
मेरे पग तल पर बिछा दिया
सिसकते मेरे सुमन में
नफरत का लावा ही
जगह - जगह बिछा दिया
औरों को प्यार कर
पल - पल प्यार बाँट कर
अपना ये हाल हुआ
सबके आँसू पोंछे हैं
जोड़ कर गैरों का जिगर
अपना क्या हाल हुआ
काश जो बोल सकते
ये मूक दो आँखें
दर्द दिल को
जो है सहना पड़ता
ये जिस्म तो जीने को मजबूर है
ये ओंठ हँसने के काबिल न रहा
गैरों को हँसाने को
अप्राकृतिक ही जी लेता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 31-01-1984
विचारों को पालकर
ऐसा भी क्या हुआ
दूसरों का भला हो
चाह कर ऐसा भी
अपना क्या हुआ
औरों ने तो
बारूदों का ढेर ही
कदम - कदम पर
मेरे पग तल पर बिछा दिया
सिसकते मेरे सुमन में
नफरत का लावा ही
जगह - जगह बिछा दिया
औरों को प्यार कर
पल - पल प्यार बाँट कर
अपना ये हाल हुआ
सबके आँसू पोंछे हैं
जोड़ कर गैरों का जिगर
अपना क्या हाल हुआ
काश जो बोल सकते
ये मूक दो आँखें
दर्द दिल को
जो है सहना पड़ता
ये जिस्म तो जीने को मजबूर है
ये ओंठ हँसने के काबिल न रहा
गैरों को हँसाने को
अप्राकृतिक ही जी लेता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 31-01-1984
सोमवार, 30 जुलाई 2012
104 .कहती है तुमसे
कहती है तुमसे
ये हरी - हरी वादियाँ
गाती हैं एक सुर में
ये कल - कल बहती नदियाँ
आ s s आ s s जरा सा पास आ
नीले नील गगन पे
है बादलों की छटा
बादलों की ओट से
झाँकते हुए चंदा की तरह तूँ आ
छा गयी है प्यार भरी
सावन की ये घटा
बरस पड़े पल भर में ही
गर जो तूँ मेरे करीब आ
आ s s आ s s जरा सा पास आ
खिल रही है कली - कली
प्यार के गीत गा रही गली - गली
मिल के बैठें हम तुम
कह रही है ये रुत
फिज़ा भी महक रही
प्यार भरी चाँदनी
चारों ओर छिटक रही
हवा भी ये कह रही
आ s s आ s s जरा सा पास आ
फूलों में कसक उठी
भौरे भी बहक रहे
तितलियाँ भी मस्त हैं
खिज़ा में गुल खिल रहे
दिल में ये कसक उठी
प्यार में हम मिले
दूर - दूर हैं क्यों खड़े
तेरे रहते हुए भला
हम क्यों भटक रहे
नज़ारे भी ये कह रहे
आ s s आ s s जरा सा पास आ
नयनों में तेरे अक्स हैं
दिल में तेरी चाह है
जुबाँ पर भी तेरा नाम है
मन में मिलन की चाह है
तन भी हैं कह रहे
आ s s आ s s जरा सा पास आ !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1980
103 . तेरी ये आँखें कजरारी
103 .
तेरी ये आँखें कजरारी
पता नहीं क्यों
देख नहीं पाती
मेरे दिल की बेकरारी
नाजुक इतना अपना दिल है
शब्द के एक आवाज से
तेरे एक निगाह से
चूर - चूर हो जाता है
पता नहीं क्यों मेरे अलाप
देख सुन कर भी
तेरे मन को क्या दे जाते हैं
यहाँ तो अपने दिल की बस्ती
एक बार तेरे आने की उम्मीद से
बार - बार उजड़ती और बस्ती है
दर्दों का सैलाब इतना भी आयेगा
तेरे नैन सह पायेंगे
मेरे गुलिस्ताँ को
देख उजड़ते इस कदर
तेरी आत्मा चीख नहीं पायेगी
मुझे दर - दर ठोकर खाते
देख इस कदर
प्यार तेरा कभी न चित्कारेगा
ऐसी आशा भला कैसे
मेरा प्यार कभी कर पायेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-02-1984
तेरी ये आँखें कजरारी
पता नहीं क्यों
देख नहीं पाती
मेरे दिल की बेकरारी
नाजुक इतना अपना दिल है
शब्द के एक आवाज से
तेरे एक निगाह से
चूर - चूर हो जाता है
पता नहीं क्यों मेरे अलाप
देख सुन कर भी
तेरे मन को क्या दे जाते हैं
यहाँ तो अपने दिल की बस्ती
एक बार तेरे आने की उम्मीद से
बार - बार उजड़ती और बस्ती है
दर्दों का सैलाब इतना भी आयेगा
तेरे नैन सह पायेंगे
मेरे गुलिस्ताँ को
देख उजड़ते इस कदर
तेरी आत्मा चीख नहीं पायेगी
मुझे दर - दर ठोकर खाते
देख इस कदर
प्यार तेरा कभी न चित्कारेगा
ऐसी आशा भला कैसे
मेरा प्यार कभी कर पायेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-02-1984
शनिवार, 28 जुलाई 2012
102 . दो टुक कलेजा हो जाता
102 .
दो टुक कलेजा हो जाता
जब याद मुझे वो आता
कितना अपनापन था
जब आँसू मेरे पोछा करती थी
मेरे जिस्म के एक खरोंच को भी
वो जब सह नहीं पाते थे
एक दिन की दाढ़ी बढ़ जाने से
आसमान को सिर पर उठा लेते थे
आज वो वहीं हैं
चेहरे पे झाड़ - झंखाड़ उग आये हैं
तिल भर उन्हें अफसोस भी नहीं है
काश अगर प्यार इसी को कहते हैं
मैं क्यों न समझ पाता हूँ
खिलौने से खेलना था उनको
जी भरने के बाद
क्या रह गया मुझमें
तिल - तिल कर क्यों मर रहा हूँ
क्यों नहीं एक बार में मर पाता हूँ
क्या कसक इसकी भी है उनको
जो दिल न होता मुझको
कोई गम न होता खुद को
हसीनों का यही दस्तूर है
ले कर आशिकों की जान
जश्ने महफिल मनाया करते हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-02-1984
दो टुक कलेजा हो जाता
जब याद मुझे वो आता
कितना अपनापन था
जब आँसू मेरे पोछा करती थी
मेरे जिस्म के एक खरोंच को भी
वो जब सह नहीं पाते थे
एक दिन की दाढ़ी बढ़ जाने से
आसमान को सिर पर उठा लेते थे
आज वो वहीं हैं
चेहरे पे झाड़ - झंखाड़ उग आये हैं
तिल भर उन्हें अफसोस भी नहीं है
काश अगर प्यार इसी को कहते हैं
मैं क्यों न समझ पाता हूँ
खिलौने से खेलना था उनको
जी भरने के बाद
क्या रह गया मुझमें
तिल - तिल कर क्यों मर रहा हूँ
क्यों नहीं एक बार में मर पाता हूँ
क्या कसक इसकी भी है उनको
जो दिल न होता मुझको
कोई गम न होता खुद को
हसीनों का यही दस्तूर है
ले कर आशिकों की जान
जश्ने महफिल मनाया करते हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-02-1984
101 . पुष्पित तेरे ये यौवन
101 .
पुष्पित तेरे ये यौवन
मधुमास में जैसे
खिले हों फूल
रंग - बिरंगे
मैं पाता हूँ
सुख संसार वहाँ
मेरे बाहों का हार
हो तेरे गले में जहाँ
सुविकसित मदमस्त नयन ये तेरे
या मधुशाले का प्याला
कंटीले तेरे नयनों के
बाण नुकीले
दिल में भड़काते हैं ज्वाला
हा ! दिल में नहीं
अब शांति मेरे
होंगे न पूरे जब तक
अपने पुरे सात फेरे
पर तुमने देखा है कभी ?
बच्चे की ललक चाँद के लिए
पर व्यथित ह्रदय लिए जाऊं कहाँ ?
समा ले मुझे आँचल में अपने
सुला दे मुझे नींद में इतनी
सुनूं न दुनिया की आवाजें
घायल मन दुःखित ह्रदय लिए
जाऊं कहाँ ?
असहाय हूँ इस जहाँ में
दे के सहारा मुझको उठा दे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-02-1983
पुष्पित तेरे ये यौवन
मधुमास में जैसे
खिले हों फूल
रंग - बिरंगे
मैं पाता हूँ
सुख संसार वहाँ
मेरे बाहों का हार
हो तेरे गले में जहाँ
सुविकसित मदमस्त नयन ये तेरे
या मधुशाले का प्याला
कंटीले तेरे नयनों के
बाण नुकीले
दिल में भड़काते हैं ज्वाला
हा ! दिल में नहीं
अब शांति मेरे
होंगे न पूरे जब तक
अपने पुरे सात फेरे
पर तुमने देखा है कभी ?
बच्चे की ललक चाँद के लिए
पर व्यथित ह्रदय लिए जाऊं कहाँ ?
समा ले मुझे आँचल में अपने
सुला दे मुझे नींद में इतनी
सुनूं न दुनिया की आवाजें
घायल मन दुःखित ह्रदय लिए
जाऊं कहाँ ?
असहाय हूँ इस जहाँ में
दे के सहारा मुझको उठा दे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-02-1983
शुक्रवार, 27 जुलाई 2012
100 . तुम नफ़रत की आग जलाये बैठी हो
100 .
तुम नफ़रत की आग जलाये बैठी हो
हम तुम से प्यार जताये बैठे हैं
तुम तो शायद भूल चुकी हो
हम फिर भी आश लगाये बैठे हैं
भूलना चाहकर भी
तेरी याद जगाये बैठे हैं
गम में पला गम में बढ़ा गमगीन हो
दिल में खुशियाली की चाह लिए बैठे हैं
तेरी फितरत ही जफ़ा है
जो वफ़ा कर पाया है ?
फिर भी हम तुझसे
वफ़ा की आश लिए बैठे हैं
वफ़ा के आँसू मेरे पैरों पर
चेहरे पर पड़ते थे तेरे
सुनता हूँ मैं
अब और किसी से
उन आँखों में अब
नफ़रत की आग लिए बैठी हो
धन्य है तूँ
एक ही आँख में
फूल और तलवार लिए बैठी हो
कोई भी रास्ता अब मेरे घर तक
नहीं आता तेरा
फिर भी पथ पर हम
निगाहों को लिए बैठे हैं
काश जो मिल जाओ किसी मोड़ पे तुम
इस आश से हम
जिंदगी जलाये बैठे हैं
प्यार से मिल जाओ
जो किसी मोड़ पे तुम
एक यही आश लगाये बैठे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-07-1983 समस्तीपुर
तुम नफ़रत की आग जलाये बैठी हो
हम तुम से प्यार जताये बैठे हैं
तुम तो शायद भूल चुकी हो
हम फिर भी आश लगाये बैठे हैं
भूलना चाहकर भी
तेरी याद जगाये बैठे हैं
गम में पला गम में बढ़ा गमगीन हो
दिल में खुशियाली की चाह लिए बैठे हैं
तेरी फितरत ही जफ़ा है
जो वफ़ा कर पाया है ?
फिर भी हम तुझसे
वफ़ा की आश लिए बैठे हैं
वफ़ा के आँसू मेरे पैरों पर
चेहरे पर पड़ते थे तेरे
सुनता हूँ मैं
अब और किसी से
उन आँखों में अब
नफ़रत की आग लिए बैठी हो
धन्य है तूँ
एक ही आँख में
फूल और तलवार लिए बैठी हो
कोई भी रास्ता अब मेरे घर तक
नहीं आता तेरा
फिर भी पथ पर हम
निगाहों को लिए बैठे हैं
काश जो मिल जाओ किसी मोड़ पे तुम
इस आश से हम
जिंदगी जलाये बैठे हैं
प्यार से मिल जाओ
जो किसी मोड़ पे तुम
एक यही आश लगाये बैठे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-07-1983 समस्तीपुर
99 . उजाड़ के जिंदगी औरों की
99 .
उजाड़ के जिंदगी औरों की
खुशियाँ मनाते हैं लोग
चमन में आग लगा के किसी के
कह - कहे लगाते हैं लोग
दर - बदर करना ही उनकी फितरत है
काँटे चुभो - चुभो के
मुस्कुराते हैं लोग
दया रहम से उन्हें वास्ता नहीं
ठोकड़ में पड़े को
ठोकड़ लगाते हैं लोग
जिन्दादिली के नाम पर
सभी जिंदा हैं
पर दिल से खाली हैं लोग
औरों के दामन के दाग देखते हैं
खुद दामन से दागदार हैं लोग
बेनकाब औरों को करते रहते हैं
खुद नकाब में छिपे हैं जो लोग
प्यार और विश्वास करके
नफरत और विश्वासघात
करते हैं लोग
सच बात और आदर्श कहने पर
पापी और दुराचारी कहते हैं लोग
परोपकार करने को भी
ठगना ही कहते हैं लोग !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-09-1983 समस्तीपुर
उजाड़ के जिंदगी औरों की
खुशियाँ मनाते हैं लोग
चमन में आग लगा के किसी के
कह - कहे लगाते हैं लोग
दर - बदर करना ही उनकी फितरत है
काँटे चुभो - चुभो के
मुस्कुराते हैं लोग
दया रहम से उन्हें वास्ता नहीं
ठोकड़ में पड़े को
ठोकड़ लगाते हैं लोग
जिन्दादिली के नाम पर
सभी जिंदा हैं
पर दिल से खाली हैं लोग
औरों के दामन के दाग देखते हैं
खुद दामन से दागदार हैं लोग
बेनकाब औरों को करते रहते हैं
खुद नकाब में छिपे हैं जो लोग
प्यार और विश्वास करके
नफरत और विश्वासघात
करते हैं लोग
सच बात और आदर्श कहने पर
पापी और दुराचारी कहते हैं लोग
परोपकार करने को भी
ठगना ही कहते हैं लोग !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-09-1983 समस्तीपुर
98 . बागें हैं यहाँ अनेक
98 .
बागें हैं यहाँ अनेक
बाग़ - बाग़ में
माली है एक - एक
चमन है , सुमन है
बहार है , सुगंध है
फूल भी हैं अनेक - अनेक
फिर भी यहाँ
कोई अपना नहीं है एक
यह दुनियाँ और समाज को
मैं क्या समझूँ
दोनों हाथों से
जितनी ही कोशिश की
ख़ुशी समेटने की
उससे गहरे
दुःख ही नसीब हुए
बीते कल को
भूल जाना ही अच्छा है
पर हर शय पे
वह कहानी है
ऊँगली पकड़ कर
जिन्होंने अपना बनाया
वही छोड़ चले
बेगाने बन कर
जिस दिल में
आँखों में बसाया
उसी ने सरे आम
बदनाम किया
दिल टुटा आस छुटी
जीवन की लड़ियाँ ही
बिखर गयी एक - एक कर !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1983
बागें हैं यहाँ अनेक
बाग़ - बाग़ में
माली है एक - एक
चमन है , सुमन है
बहार है , सुगंध है
फूल भी हैं अनेक - अनेक
फिर भी यहाँ
कोई अपना नहीं है एक
यह दुनियाँ और समाज को
मैं क्या समझूँ
दोनों हाथों से
जितनी ही कोशिश की
ख़ुशी समेटने की
उससे गहरे
दुःख ही नसीब हुए
बीते कल को
भूल जाना ही अच्छा है
पर हर शय पे
वह कहानी है
ऊँगली पकड़ कर
जिन्होंने अपना बनाया
वही छोड़ चले
बेगाने बन कर
जिस दिल में
आँखों में बसाया
उसी ने सरे आम
बदनाम किया
दिल टुटा आस छुटी
जीवन की लड़ियाँ ही
बिखर गयी एक - एक कर !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1983
बुधवार, 25 जुलाई 2012
97 . बेदर्द बेरहम ज़माने में
97.
बेदर्द बेरहम ज़माने में
अपना कोई सहारा नहीं
गम को बना लिया साथी अपना
जिन्दगी के सफ़र में
इसके सिवा कोई चारा नहीं
बहारों से भरी इस दुनियाँ में
उजड़े सभी दिल हैं
फूलों के इन बागों में
काँटे ही ज्यादा बिखरे हैं
दिल की आग बुझाने में
आँसू भी बहुत बर्बाद किये
हँसने की हर कोशिश में
होंठ भी नाकाम रहे
हर सूरज निकलता है
मुसीबतों का पैगाम लेकर
रातें गुजारनी होती है
जख्मों को गिन - गिन कर
ये कैसा दस्तूर है
इस दुनियाँ का
अमृत भी बनता
क्षण में विष का प्याला
आँखों में
आंसुओं के बदले
छलकते हैं
खून की बूँदें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 19-05-1983 समस्तीपुर
बेदर्द बेरहम ज़माने में
अपना कोई सहारा नहीं
गम को बना लिया साथी अपना
जिन्दगी के सफ़र में
इसके सिवा कोई चारा नहीं
बहारों से भरी इस दुनियाँ में
उजड़े सभी दिल हैं
फूलों के इन बागों में
काँटे ही ज्यादा बिखरे हैं
दिल की आग बुझाने में
आँसू भी बहुत बर्बाद किये
हँसने की हर कोशिश में
होंठ भी नाकाम रहे
हर सूरज निकलता है
मुसीबतों का पैगाम लेकर
रातें गुजारनी होती है
जख्मों को गिन - गिन कर
ये कैसा दस्तूर है
इस दुनियाँ का
अमृत भी बनता
क्षण में विष का प्याला
आँखों में
आंसुओं के बदले
छलकते हैं
खून की बूँदें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 19-05-1983 समस्तीपुर
96 . ढूंढे से एक सितारा न सही
96.
ढूंढे से एक सितारा न सही
दिया भी जो मिल जाता
इस खुदगर्ज दुनियाँ में
हमें भी जीने का सहारा मिल जाता
तूँ तो बिलकुल ही भूल गयी
काश जो मैं भी भूल पाता
तेरी दुनियाँ बसते ही
मेरे घर तो खण्डहर हुए
जो मेरा जीवन भी बस पाता
मैं तो डूब गया
गम के समंदर में
जैसे ही तुझे
खुशियों का संसार मिला
क्या अपराध किया
जो ये सजा मिली
मैं जान तो पाता
तुझे जो उतना
प्यार न किया होता
आज खुद को न
इतना रुला पाता
तुझे तो गुमान भी न होगा
तेरे प्यार ने कितने
दर्द हैं सहे
एक दर्द का भी जो
तुझे एहसास होता
हमें भी
इस खुदगर्ज दुनियाँ में
जीने का सहारा मिल जाता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-07-1983 समस्तीपुर
ढूंढे से एक सितारा न सही
दिया भी जो मिल जाता
इस खुदगर्ज दुनियाँ में
हमें भी जीने का सहारा मिल जाता
तूँ तो बिलकुल ही भूल गयी
काश जो मैं भी भूल पाता
तेरी दुनियाँ बसते ही
मेरे घर तो खण्डहर हुए
जो मेरा जीवन भी बस पाता
मैं तो डूब गया
गम के समंदर में
जैसे ही तुझे
खुशियों का संसार मिला
क्या अपराध किया
जो ये सजा मिली
मैं जान तो पाता
तुझे जो उतना
प्यार न किया होता
आज खुद को न
इतना रुला पाता
तुझे तो गुमान भी न होगा
तेरे प्यार ने कितने
दर्द हैं सहे
एक दर्द का भी जो
तुझे एहसास होता
हमें भी
इस खुदगर्ज दुनियाँ में
जीने का सहारा मिल जाता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-07-1983 समस्तीपुर
सोमवार, 23 जुलाई 2012
95 .ऐ हुस्न तूँ जाग गयी
95 .
ऐ हुस्न तूँ जाग गयी
जब तुझे इश्क ने जगाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
दिल में जो बात थी
कोरे कागज पे आयी
ओठों ने भी कह डाला
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे अरमान को जगाया
प्यार से सहलाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आशा तो पहले से थी
जबाब देर से आया
आपने अपना बनाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपने कहा नमस्ते
मैंने सुना हँसते
जीवन में पहली बार बसंत है छाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे असुवन की बूंदें
नैनों की विरह
मेरे आँखों की भाषा को
आपने देर से समझा
फिर भी शुक्रिया S S S S शुक्रिया
उल्टा इलजाम मुझ पर
आपने है लगाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
पसन्द कर एक नाचीज को
आपने है किमती पत्थर बनाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
प्यार किया है आपने
आपने है इजहार किया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
प्यार को बकवास न कहो
खुदा ने यही बड़ी दौलत है दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
दिल की है ये निश्च्छल भावना
सबने इसका पूजा है किया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मैं तो हूँ एक प्यार का पुजारी
है आरजू यही करें कद्र आप भी
जैसा आपने है लिखा
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपकी ये भावना
मेरी ही है प्रतिध्वनि
इस फूल को आपने कड़ी धुप से है बचाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपने अपनी हँसी को
धीरे - धीरे मेरे ओठों पे घोल दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपके ओठों पे लटके शब्दों ने
मुझे उत्सुक बना दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे शब्दों के साँस के चोट को
तेरे गुलाबी चेहरे ने सह लिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
तुने चुपके से मेरे कानों में
'' मुझे तुमसे है प्यार '' कह दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
जब तुने अपने ओठों को
मेरे ओठों के बिच दिया
जलती ऊँगली से तुने छू दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
अपनी नशीली आँखों को
मेरे आँखों में डाल दिया
मुझे स्वप्निल संसार में भुला दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे भींगे ओठों पर
विहँस रही थी
उगते सूरज की लालिमा
उसे आपने छू दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आजकल मैं तेरे बाँहों में डोल रहा
तेरे मखमली गालों पे नाच रहा
मेरे छोटे संसार को इस कदर पकड़ लिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मैं छिपा कर रखूँगा चिन्ह
अगर आपके दाँतों ने मेरे गालों पे दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
कब आपके पलकों के निचे से
गुजरूँगा मैं
तपते ओठों ने जलते गर्दन ने
आमंत्रण है दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 22-08-1980
ऐ हुस्न तूँ जाग गयी
जब तुझे इश्क ने जगाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
दिल में जो बात थी
कोरे कागज पे आयी
ओठों ने भी कह डाला
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे अरमान को जगाया
प्यार से सहलाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आशा तो पहले से थी
जबाब देर से आया
आपने अपना बनाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपने कहा नमस्ते
मैंने सुना हँसते
जीवन में पहली बार बसंत है छाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे असुवन की बूंदें
नैनों की विरह
मेरे आँखों की भाषा को
आपने देर से समझा
फिर भी शुक्रिया S S S S शुक्रिया
उल्टा इलजाम मुझ पर
आपने है लगाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
पसन्द कर एक नाचीज को
आपने है किमती पत्थर बनाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
प्यार किया है आपने
आपने है इजहार किया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
प्यार को बकवास न कहो
खुदा ने यही बड़ी दौलत है दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
दिल की है ये निश्च्छल भावना
सबने इसका पूजा है किया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मैं तो हूँ एक प्यार का पुजारी
है आरजू यही करें कद्र आप भी
जैसा आपने है लिखा
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपकी ये भावना
मेरी ही है प्रतिध्वनि
इस फूल को आपने कड़ी धुप से है बचाया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपने अपनी हँसी को
धीरे - धीरे मेरे ओठों पे घोल दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आपके ओठों पे लटके शब्दों ने
मुझे उत्सुक बना दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे शब्दों के साँस के चोट को
तेरे गुलाबी चेहरे ने सह लिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
तुने चुपके से मेरे कानों में
'' मुझे तुमसे है प्यार '' कह दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
जब तुने अपने ओठों को
मेरे ओठों के बिच दिया
जलती ऊँगली से तुने छू दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
अपनी नशीली आँखों को
मेरे आँखों में डाल दिया
मुझे स्वप्निल संसार में भुला दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मेरे भींगे ओठों पर
विहँस रही थी
उगते सूरज की लालिमा
उसे आपने छू दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
आजकल मैं तेरे बाँहों में डोल रहा
तेरे मखमली गालों पे नाच रहा
मेरे छोटे संसार को इस कदर पकड़ लिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
मैं छिपा कर रखूँगा चिन्ह
अगर आपके दाँतों ने मेरे गालों पे दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया
कब आपके पलकों के निचे से
गुजरूँगा मैं
तपते ओठों ने जलते गर्दन ने
आमंत्रण है दिया
शुक्रिया S S S S शुक्रिया !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 22-08-1980
रविवार, 22 जुलाई 2012
94 .वो मेरी अन्तरंग
94.
वो मेरी अन्तरंग
चल आ तुरंत
तेरी साँसों के पवन
मेरे मन में भर रहे उमंग
कर ले आज तूँ अपनी आँखें बंद
वो मेरे दिल की सारंग
आज तूँ कर ले वरण
फिर न आएगा
मौका ये प्यार का
फूलों के बहार का
साजन के इसरार का
वो मेरी गुलबदन
कर लूँ तुझको पलकों में बंद
वो मेरी मत्त मतंग
तेरे लिए ही हैं ये सारे छंद
तुझे क्यों है ये सब नापसंद
फिर कह दे तूँ अपनी पसंद
वर्ना मर जाऊँगा लगाके गुलबंद
वो मेरी अन्तरंग चल आ तुरंत
करले आँखें तूँ अपनी बंद !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-04-1984
वो मेरी अन्तरंग
चल आ तुरंत
तेरी साँसों के पवन
मेरे मन में भर रहे उमंग
कर ले आज तूँ अपनी आँखें बंद
वो मेरे दिल की सारंग
आज तूँ कर ले वरण
फिर न आएगा
मौका ये प्यार का
फूलों के बहार का
साजन के इसरार का
वो मेरी गुलबदन
कर लूँ तुझको पलकों में बंद
वो मेरी मत्त मतंग
तेरे लिए ही हैं ये सारे छंद
तुझे क्यों है ये सब नापसंद
फिर कह दे तूँ अपनी पसंद
वर्ना मर जाऊँगा लगाके गुलबंद
वो मेरी अन्तरंग चल आ तुरंत
करले आँखें तूँ अपनी बंद !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-04-1984
शनिवार, 21 जुलाई 2012
93 . फूलों की वादियों में रहते हो
93.
फूलों की वादियों में रहते हो
खुद पे मचलते और इतराते हो
मेरे काँटों से भरे वादी में
झाँक कर जरा तो देखो
इल्जाम सारा मेरे ही सर दो
पर गली से मेरे
एक बार भी गुजर कर देखो
तेरे बागों के फूल
जब लगे झरने
टूट - टूट कर जब लगे बिखरने
गुजर जाना एक बार
मेरे भी अंजुमन से
खार मेरे बाग़ के
जो सुख भी जायेंगे
तो भी दामन तेरा थाम लेंगे
यार मेरे गम न करना
क्या हुआ जो तुमने
व्यापार किया मुझसे
भूल न पाउँगा मैंने प्यार किया तुमसे
दिल को थोड़ा कचोट भी न होगा तेरे
पग - पग पर तुमने बदनाम किया है मुझे
जिन गलियों में मेरा नाम था
सरे आम वहाँ गुमनाम किया है मुझे
जो प्यार का नाटक
मुझसे तूँ न करती
तो तेरा क्या जाता
दिल बहलाने को तुम्हें
तब भी बहुत मिल जाते
जितनी की जीवन न दी तुमने
उतने मौत की दे दी लम्हें
तेरा प्यार तो तिजारत था
मेरे प्यार को क्यों बदनाम किया
एहसास गर होगा सच्चा मेरे प्यार का
दूर न तूँ रह पायेगी
मेरी पूजा एक न एक दिन सफल होगी
जब पास हमारे आ जायेगी
केवल सुनता ही रहा हूँ मैं
लोगों को कहते हुए
देखें क्या यह सच भी होता है
जब प्यार पुकारता है
प्रीतम से मिलने प्यार दौड़ा चला आता है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 03-02-1984 12.00 pm
फूलों की वादियों में रहते हो
खुद पे मचलते और इतराते हो
मेरे काँटों से भरे वादी में
झाँक कर जरा तो देखो
इल्जाम सारा मेरे ही सर दो
पर गली से मेरे
एक बार भी गुजर कर देखो
तेरे बागों के फूल
जब लगे झरने
टूट - टूट कर जब लगे बिखरने
गुजर जाना एक बार
मेरे भी अंजुमन से
खार मेरे बाग़ के
जो सुख भी जायेंगे
तो भी दामन तेरा थाम लेंगे
यार मेरे गम न करना
क्या हुआ जो तुमने
व्यापार किया मुझसे
भूल न पाउँगा मैंने प्यार किया तुमसे
दिल को थोड़ा कचोट भी न होगा तेरे
पग - पग पर तुमने बदनाम किया है मुझे
जिन गलियों में मेरा नाम था
सरे आम वहाँ गुमनाम किया है मुझे
जो प्यार का नाटक
मुझसे तूँ न करती
तो तेरा क्या जाता
दिल बहलाने को तुम्हें
तब भी बहुत मिल जाते
जितनी की जीवन न दी तुमने
उतने मौत की दे दी लम्हें
तेरा प्यार तो तिजारत था
मेरे प्यार को क्यों बदनाम किया
एहसास गर होगा सच्चा मेरे प्यार का
दूर न तूँ रह पायेगी
मेरी पूजा एक न एक दिन सफल होगी
जब पास हमारे आ जायेगी
केवल सुनता ही रहा हूँ मैं
लोगों को कहते हुए
देखें क्या यह सच भी होता है
जब प्यार पुकारता है
प्रीतम से मिलने प्यार दौड़ा चला आता है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 03-02-1984 12.00 pm
शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
92 . देखो !
92.
देखो !
हाँ
यही है
वो
जिसे तुम
मान देतो हो
जिसने
जीवन में मेरे
गरल दिया है घोल
विचारों से
मेरे
जिसने
बलात्कार किया है
कहते हो
उसे अबला
वही है
कहीं काली कहीं दुर्गा
ना जाने क्यों
उसने ही
मेरे साथ
किया है घात
अपनापन
अब उनकी
मज़बूरी है
जिसने
मेरे साथ
किया है प्यार
समाज ने
जिसका बड़ा
सम्मान किया है
हाँ
यही है
वो
देखो !
राख पे मेरे
अपना
नया संसार बनाया है
हो सकता है
हम कहीं न होंगे
पर
आप वहीं होंगे
जहाँ
हम न होंगे
जिन्दगी एक ख्वाब है
ख्वाबों में
कितने ख्वाब आते जाते हैं
जिन्दगी ?
एक बिखराव है
कितने पड़ाव
आते हैं जाते हैं
जब मशगुल था मैं
अपनी ही दास्तान में
तब किसे पता था
कहानी अपनी
यूँ ही समाप्त होगी
जुल्म की दीवार
उठती गयी
भीड़ की रफ़्तार
बढ़ती गयी
ठोकर ही मिलेगी
तब कहा किसने
शहनाई के शोर में
डोली किसी की सज गयी
आँगन में मेरे
बहार आयी थी
अर्थी ही मेरी उठ गयी
रेल की पटरी
मैंने ही बिछाई
गाड़ी जिस पर खड़ी थी
खुलने से पहले ही
भैकुम हो गयी
तारों को सजाकर
बल्ब लगाया था मैंने
बटन दाबते ही
बिजली गुल हो गयी
घुमड़दार पहाड़ियों में
एक झील था मैं
ना जाने कहाँ से
एक चट्टान
गढ़े में गिर गयी
बागों से
एक कली
उठाया था मैंने
मैं गिर गया
कली खिल गयी
सुरभि सुगंध फैलाता हुआ
रस इक्कठा किया था मैंने
खाली घर रह गया
रस चूस ले गयी
घून जिसका
हंट।या था मैंने
जीना जिसे सिखाया था मैंने
बेमौत मुझे ही मारकर
वो चल दी
धोखा गर किसी को
दिया था मैंने
वो खुद मैं ही था
प्यार जिसको दिया था
वो ही
गैर समझकर चल दी
बहार आने से पहले
जिन्दगी जिसकी ऊसर थी
अमृत से उसको
सींचा हमने
चेतना के आते ही
अंगूठा दिखा कर चल दी
लब को सिया
दिल को सिया
टाट का पैबंद
लगा - लगा कर
साँसों को सिया
अब वही
आसमान फाड़कर चल दी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 05-02-1984
9-10 pm से 2-12 am
देखो !
हाँ
यही है
वो
जिसे तुम
मान देतो हो
जिसने
जीवन में मेरे
गरल दिया है घोल
विचारों से
मेरे
जिसने
बलात्कार किया है
कहते हो
उसे अबला
वही है
कहीं काली कहीं दुर्गा
ना जाने क्यों
उसने ही
मेरे साथ
किया है घात
अपनापन
अब उनकी
मज़बूरी है
जिसने
मेरे साथ
किया है प्यार
समाज ने
जिसका बड़ा
सम्मान किया है
हाँ
यही है
वो
देखो !
राख पे मेरे
अपना
नया संसार बनाया है
हो सकता है
हम कहीं न होंगे
पर
आप वहीं होंगे
जहाँ
हम न होंगे
जिन्दगी एक ख्वाब है
ख्वाबों में
कितने ख्वाब आते जाते हैं
जिन्दगी ?
एक बिखराव है
कितने पड़ाव
आते हैं जाते हैं
जब मशगुल था मैं
अपनी ही दास्तान में
तब किसे पता था
कहानी अपनी
यूँ ही समाप्त होगी
जुल्म की दीवार
उठती गयी
भीड़ की रफ़्तार
बढ़ती गयी
ठोकर ही मिलेगी
तब कहा किसने
शहनाई के शोर में
डोली किसी की सज गयी
आँगन में मेरे
बहार आयी थी
अर्थी ही मेरी उठ गयी
रेल की पटरी
मैंने ही बिछाई
गाड़ी जिस पर खड़ी थी
खुलने से पहले ही
भैकुम हो गयी
तारों को सजाकर
बल्ब लगाया था मैंने
बटन दाबते ही
बिजली गुल हो गयी
घुमड़दार पहाड़ियों में
एक झील था मैं
ना जाने कहाँ से
एक चट्टान
गढ़े में गिर गयी
बागों से
एक कली
उठाया था मैंने
मैं गिर गया
कली खिल गयी
सुरभि सुगंध फैलाता हुआ
रस इक्कठा किया था मैंने
खाली घर रह गया
रस चूस ले गयी
घून जिसका
हंट।या था मैंने
जीना जिसे सिखाया था मैंने
बेमौत मुझे ही मारकर
वो चल दी
धोखा गर किसी को
दिया था मैंने
वो खुद मैं ही था
प्यार जिसको दिया था
वो ही
गैर समझकर चल दी
बहार आने से पहले
जिन्दगी जिसकी ऊसर थी
अमृत से उसको
सींचा हमने
चेतना के आते ही
अंगूठा दिखा कर चल दी
लब को सिया
दिल को सिया
टाट का पैबंद
लगा - लगा कर
साँसों को सिया
अब वही
आसमान फाड़कर चल दी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 05-02-1984
9-10 pm से 2-12 am
91 .हल्की सी भीड़ में भी
91.
हल्की सी भीड़ में भी
वो नहीं मिलते
ख्यालों के चट्टान से
हम अपना ही सर फोड़ते
उनके बून्द दरश के
मात्र हम एक अभिलाषी
बस बाट एक हम उनके ही जोहते
खोकर भी सबकुछ
पता नहीं क्यों हम उनको नहीं भूलते
सामने रहकर भी
दृश्य सारा छुप जाता है
बस एक परिचित आकृति ही
हर पल हम ढूंढते
और कौन , बस एक जग में
जिसको देकर सर्वश्व
एक रेत कण भी न पा सका
समुद्र में गोता लगाकर
एक सीप भी खाली ही पाया
उन्होंने पूर्ण रूप से मुझको छोड़ा
जानकर यह सब कुछ
यादें क्यों नहीं मुझे छोड़ती
वे रूठ गये
हम खुद से टूट गये
आँखें थक गयी
बाट सुनी - सुनी देखते - देखते !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-02-1984
हल्की सी भीड़ में भी
वो नहीं मिलते
ख्यालों के चट्टान से
हम अपना ही सर फोड़ते
उनके बून्द दरश के
मात्र हम एक अभिलाषी
बस बाट एक हम उनके ही जोहते
खोकर भी सबकुछ
पता नहीं क्यों हम उनको नहीं भूलते
सामने रहकर भी
दृश्य सारा छुप जाता है
बस एक परिचित आकृति ही
हर पल हम ढूंढते
और कौन , बस एक जग में
जिसको देकर सर्वश्व
एक रेत कण भी न पा सका
समुद्र में गोता लगाकर
एक सीप भी खाली ही पाया
उन्होंने पूर्ण रूप से मुझको छोड़ा
जानकर यह सब कुछ
यादें क्यों नहीं मुझे छोड़ती
वे रूठ गये
हम खुद से टूट गये
आँखें थक गयी
बाट सुनी - सुनी देखते - देखते !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-02-1984
बुधवार, 18 जुलाई 2012
90 .कितने सितारे फना हो जाते हैं आसमान में
90.
कितने सितारे फना हो जाते हैं आसमान में
जलकर राख हो जाते हैं धरा के चाहत में
कुत्ते भुंका करते हैं गलियों में
सियार रात ही में
शेर दहाड़ा करते जंगल ही में
जिन्दगी तुझे तो यूँ जीना न था
प्यार मुझसे करके नाता तो यूँ तोड़ना न था
ऐसी तो तेरी चाहत न थी
जिन्दगी ये तेरी
कैसी है मज़बूरी
मुक्कदर में ये तेरी
कैसी है ये बदनसिबी
छोड़कर भी मुझे तुमको यूँ भूलना न था
खुद को मारकर तो तुम्हें यूँ जीना न था
सच से मुँह छिपा कर तुमको तो यूँ जीना न था
मुझसे तुम्हें प्यार नहीं खुद से यूँ कहना न था
जब तुम में ये साहस जगेगा
झूठ का नकाब फाड़कर
तुमको रौशनी से यूँ मुँह मोड़ना न था !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 13-02-1984 5-30 pm
कितने सितारे फना हो जाते हैं आसमान में
जलकर राख हो जाते हैं धरा के चाहत में
कुत्ते भुंका करते हैं गलियों में
सियार रात ही में
शेर दहाड़ा करते जंगल ही में
जिन्दगी तुझे तो यूँ जीना न था
प्यार मुझसे करके नाता तो यूँ तोड़ना न था
ऐसी तो तेरी चाहत न थी
जिन्दगी ये तेरी
कैसी है मज़बूरी
मुक्कदर में ये तेरी
कैसी है ये बदनसिबी
छोड़कर भी मुझे तुमको यूँ भूलना न था
खुद को मारकर तो तुम्हें यूँ जीना न था
सच से मुँह छिपा कर तुमको तो यूँ जीना न था
मुझसे तुम्हें प्यार नहीं खुद से यूँ कहना न था
जब तुम में ये साहस जगेगा
झूठ का नकाब फाड़कर
तुमको रौशनी से यूँ मुँह मोड़ना न था !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 13-02-1984 5-30 pm
89 . सुबह अलसायी सी होती है
89.
सुबह अलसायी सी होती है
दोपहर सुस्ती भरी
शाम ललचायी सी होती है
रात शरमायी सी होती है
इंतजार तेरा जिन्दगी को है जलाता
बहारों के मौसम में है पतझर का साया
फुर्सत के वक्त में आँखें हैं रोती
तन्हाई का ये सफर
यूँ न ख़त्म होगा
ऐ जाने जिगर
तन्हा हूँ मैं तन्हा ये सफ़र
राह तेरी ही ढूंढे ऐ बिछुरे हम सफ़र
जलवा तेरा वो जो देखा हमने
राह हम अपनी ही भूले
अमराईयों के तेरे वो छाँव हम न भूले
मुस्कान से बोझिल तेरे वो लब
शर्म से झुकी तेरी वो पलकें
वक्त इतने गुजरने पर भी
आज तक हम न वो भूले
दिल मेरा शीशे का
तेरे पत्थर जिगर पे फूटे
चुम्बन तेरे वो मेरे चेहरे न भूले
मेरे जलपात्र से हाथ तुमने अपने धोये
मेरे रुमाल से हाथ तुमने अपना पोंछा
तुमने कहा कुछ लिया ही न था
हाथ तुम्हारा साफ था
मुँह पर कोई दाग न था !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 15-02-1984
सुबह अलसायी सी होती है
दोपहर सुस्ती भरी
शाम ललचायी सी होती है
रात शरमायी सी होती है
इंतजार तेरा जिन्दगी को है जलाता
बहारों के मौसम में है पतझर का साया
फुर्सत के वक्त में आँखें हैं रोती
तन्हाई का ये सफर
यूँ न ख़त्म होगा
ऐ जाने जिगर
तन्हा हूँ मैं तन्हा ये सफ़र
राह तेरी ही ढूंढे ऐ बिछुरे हम सफ़र
जलवा तेरा वो जो देखा हमने
राह हम अपनी ही भूले
अमराईयों के तेरे वो छाँव हम न भूले
मुस्कान से बोझिल तेरे वो लब
शर्म से झुकी तेरी वो पलकें
वक्त इतने गुजरने पर भी
आज तक हम न वो भूले
दिल मेरा शीशे का
तेरे पत्थर जिगर पे फूटे
चुम्बन तेरे वो मेरे चेहरे न भूले
मेरे जलपात्र से हाथ तुमने अपने धोये
मेरे रुमाल से हाथ तुमने अपना पोंछा
तुमने कहा कुछ लिया ही न था
हाथ तुम्हारा साफ था
मुँह पर कोई दाग न था !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 15-02-1984
88 .जिन्दगी तेरी डरी हुई है सहमी हुई है
88.
जिन्दगी तेरी डरी हुई है सहमी हुई है
एक डर है जो पल - पल
मन को कंपा देता है
ना जाने कहीं जो राख उड़ जाये
चिंगारी भभक उठेगी
सच मेरा कहीं
मुझी को न खा जाये
हर बात को बोलता हूँ
तौल -तौल कर
हर कदम रखता हूँ
फूँक - फूँक कर
फिर भी ये डर मेरे पीछे है
हर निगाहों को मुझे विश्वास दिलाना है
मेरे खुद का विश्वास मुझे डरा जाता है
शायद मैंने सब का विश्वास जीत लिया है
पर मेरा अपना ही विश्वास मुझे डरा रहा है
बहुत ही खोखली जिन्दगी है मेरी
जो सच था उसे झूठ बताना पड़ रहा है
जो झूठ है उसे सच मानना पड़ रहा है
हर एक सच हर एक झूठ
मुझे मिलकर सताते हैं
सच जो मेरा था उसे न अपना सका
जो झूठ अब मिला है
उससे जिन्दगी को न बहला पा रहा
ना जानें क्यों इतनी हिम्मत होती नहीं मुझको
जो एक बार चीख पडूँ
कहूँ लो देखो सच को
उस दिन मैं आजाद हो जाऊँगा
ये संत्रास ये नकाब
मुझको न सता पायेंगे
ना जाने आयेगा कब वो दिन
मैं सच को सच झूठ को झूठ कह पाउँगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 16-02-1984
समस्तीपुर 5-00pm
जिन्दगी तेरी डरी हुई है सहमी हुई है
एक डर है जो पल - पल
मन को कंपा देता है
ना जाने कहीं जो राख उड़ जाये
चिंगारी भभक उठेगी
सच मेरा कहीं
मुझी को न खा जाये
हर बात को बोलता हूँ
तौल -तौल कर
हर कदम रखता हूँ
फूँक - फूँक कर
फिर भी ये डर मेरे पीछे है
हर निगाहों को मुझे विश्वास दिलाना है
मेरे खुद का विश्वास मुझे डरा जाता है
शायद मैंने सब का विश्वास जीत लिया है
पर मेरा अपना ही विश्वास मुझे डरा रहा है
बहुत ही खोखली जिन्दगी है मेरी
जो सच था उसे झूठ बताना पड़ रहा है
जो झूठ है उसे सच मानना पड़ रहा है
हर एक सच हर एक झूठ
मुझे मिलकर सताते हैं
सच जो मेरा था उसे न अपना सका
जो झूठ अब मिला है
उससे जिन्दगी को न बहला पा रहा
ना जानें क्यों इतनी हिम्मत होती नहीं मुझको
जो एक बार चीख पडूँ
कहूँ लो देखो सच को
उस दिन मैं आजाद हो जाऊँगा
ये संत्रास ये नकाब
मुझको न सता पायेंगे
ना जाने आयेगा कब वो दिन
मैं सच को सच झूठ को झूठ कह पाउँगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 16-02-1984
समस्तीपुर 5-00pm
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