कहती है तुमसे
ये हरी - हरी वादियाँ
गाती हैं एक सुर में
ये कल - कल बहती नदियाँ
आ s s आ s s जरा सा पास आ
नीले नील गगन पे
है बादलों की छटा
बादलों की ओट से
झाँकते हुए चंदा की तरह तूँ आ
छा गयी है प्यार भरी
सावन की ये घटा
बरस पड़े पल भर में ही
गर जो तूँ मेरे करीब आ
आ s s आ s s जरा सा पास आ
खिल रही है कली - कली
प्यार के गीत गा रही गली - गली
मिल के बैठें हम तुम
कह रही है ये रुत
फिज़ा भी महक रही
प्यार भरी चाँदनी
चारों ओर छिटक रही
हवा भी ये कह रही
आ s s आ s s जरा सा पास आ
फूलों में कसक उठी
भौरे भी बहक रहे
तितलियाँ भी मस्त हैं
खिज़ा में गुल खिल रहे
दिल में ये कसक उठी
प्यार में हम मिले
दूर - दूर हैं क्यों खड़े
तेरे रहते हुए भला
हम क्यों भटक रहे
नज़ारे भी ये कह रहे
आ s s आ s s जरा सा पास आ
नयनों में तेरे अक्स हैं
दिल में तेरी चाह है
जुबाँ पर भी तेरा नाम है
मन में मिलन की चाह है
तन भी हैं कह रहे
आ s s आ s s जरा सा पास आ !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1980
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