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तुम नफ़रत की आग जलाये बैठी हो
हम तुम से प्यार जताये बैठे हैं
तुम तो शायद भूल चुकी हो
हम फिर भी आश लगाये बैठे हैं
भूलना चाहकर भी
तेरी याद जगाये बैठे हैं
गम में पला गम में बढ़ा गमगीन हो
दिल में खुशियाली की चाह लिए बैठे हैं
तेरी फितरत ही जफ़ा है
जो वफ़ा कर पाया है ?
फिर भी हम तुझसे
वफ़ा की आश लिए बैठे हैं
वफ़ा के आँसू मेरे पैरों पर
चेहरे पर पड़ते थे तेरे
सुनता हूँ मैं
अब और किसी से
उन आँखों में अब
नफ़रत की आग लिए बैठी हो
धन्य है तूँ
एक ही आँख में
फूल और तलवार लिए बैठी हो
कोई भी रास्ता अब मेरे घर तक
नहीं आता तेरा
फिर भी पथ पर हम
निगाहों को लिए बैठे हैं
काश जो मिल जाओ किसी मोड़ पे तुम
इस आश से हम
जिंदगी जलाये बैठे हैं
प्यार से मिल जाओ
जो किसी मोड़ पे तुम
एक यही आश लगाये बैठे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-07-1983 समस्तीपुर
तुम नफ़रत की आग जलाये बैठी हो
हम तुम से प्यार जताये बैठे हैं
तुम तो शायद भूल चुकी हो
हम फिर भी आश लगाये बैठे हैं
भूलना चाहकर भी
तेरी याद जगाये बैठे हैं
गम में पला गम में बढ़ा गमगीन हो
दिल में खुशियाली की चाह लिए बैठे हैं
तेरी फितरत ही जफ़ा है
जो वफ़ा कर पाया है ?
फिर भी हम तुझसे
वफ़ा की आश लिए बैठे हैं
वफ़ा के आँसू मेरे पैरों पर
चेहरे पर पड़ते थे तेरे
सुनता हूँ मैं
अब और किसी से
उन आँखों में अब
नफ़रत की आग लिए बैठी हो
धन्य है तूँ
एक ही आँख में
फूल और तलवार लिए बैठी हो
कोई भी रास्ता अब मेरे घर तक
नहीं आता तेरा
फिर भी पथ पर हम
निगाहों को लिए बैठे हैं
काश जो मिल जाओ किसी मोड़ पे तुम
इस आश से हम
जिंदगी जलाये बैठे हैं
प्यार से मिल जाओ
जो किसी मोड़ पे तुम
एक यही आश लगाये बैठे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-07-1983 समस्तीपुर
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