80.
प्रिय - अरे
वो प्रिय
कहाँ हो ?
आ जा चली आ
विरह की ज्योत्स्ना से
दिल जला जा रहा है
बुझते हुए प्राण के दिए को
बचा लो
प्यार की नयी ज्योति से
उसे प्रज्वलित कर दे
क्या किस्मत थी ?
यही भाग्य में लिखा था
तुझे बेवफा कह कर जिउं
यह कहने से तो मरण अच्छा था
प्यार के प्रकाश से
मुझे बचा ले
प्रिय आ जा चली आ
वेदना के रस से सराबोर
यह दिल
तुझे ही पुकार रहा
अरे वो प्रिय
तेरे लिए प्यार
क्या कोई चीज नहीं ?
मैं रात के गम के
घने अंधकार में भी
अभिसार के लिए
पुकार रहा तुझे ही
क्या देख कर दुखी मुझे
तेरे प्रेम गौर्वान्विंत होंगे
गंगनागन मेघों से
आच्छादित हो गया है
वर्षा का पानी झर - झर कर झर रहा है
बुझे हुए मन को
अपने प्रेम प्रकाश से
जगमगा दे
इस घोर रात्रि में
अकेला ही
किसकी प्रतिक्षा में
जाग रहा हूँ मैं
बरसात का पानी
झर - झर - झर रहा है
बिजली की चमक
क्षण भर के लिए होती है
फिर डूब जाता है
जीवन नैया घने अंधकार में
कौन जाने ?
तेरे दिल में
प्यार के गीत मेरे
गूँजते होंगे अब भी
या नहीं
पर तेरा दिया प्यार
मेरी सम्पूर्ण आत्मा को
तेरी ही ओर खिंच रहा है !
कहाँ हो प्रिय ?
अरे ओ प्रिय कहाँ हो ?
अब तो आकर
अपने प्रेम जिला दे जगा दे
मेघ गरज रहे हैं
हवा साँय - साँय करके
चल रही है
वेला निकल गई शायद ?
सुबह हो गई
पर तूँ न आयी
क्या अब अपना मिलन
न हो सकेगा ?
ऐसे निविड़ निशा में
मेरे प्राणों को
अपने प्रेम से
प्रकाशित कर दे
आ जा प्रिय आ जा
आषाढ़ की संध्या
घनी हो गई है
उषा की लाली का
अवसान हो गया है
बरसात की जलधारा
रह - रह कर बरस रही है
गम की दुनियां के
एक कोने में
मैं अकेला बैठा हूँ
तेरी ही यादों के सागर में
डूबा हूँ
जलकण से भींगी हवा भी
मन को मेरे
शीतल नहीं कर पा रही
वर्षा की जल धारा
रह - रह कर बरस रही
ह्रदय में तरंग उठती है
किन्तु
मुझे जिस किनारे की तलाश है
वह कहीं नहीं मिलता
तेरा प्यार कहीं नहीं मिलता
तूँ कहीं नहीं मिलती
इतने पर भी क्या
तुझे मेरी बैचेनी का एहसास नहीं है
तेरे यादों के झुण्ड ने
प्राणों को बेचैन कर डाला है
अँधेरी रात के
हर रिक्त प्रहर
तेरे यादों के शुलों से चुभते हैं
तेरे प्यार के खोने से
सब कुछ भूल कर
व्याकुल हो उठा हूँ
ओ मेरी प्राण प्रिया
आज बरसात की झड़ी में
प्रिय मिलन को
दिल व्याकुल हो उठा है
ऐसे में तूँ कहाँ चली गई ?
आकाश भी निराश हो रहा है
मेरी आँखों में आज नींद नहीं है
ओ मेरी प्राण प्रिया
द्वार खोले
मैं तेरी ही राह देख रहा
बाहर तो कुछ भी
दिखाई नहीं देता
अन्दर बाहर सर्वत्र
तूँ ही छाई हुई है
राह कहाँ है ?
जीने की
यही सोंच रहा हूँ
किसी दूर नदी तट पर
किसी भयानक जंगल में
या किसी अँधेरी गुफा में
कौन सी ऐसी जगह है ?
जहाँ मैं तुझे या
अपनी मौत को
गले लगा सकता हूँ
ओ मेरी प्राण प्रिया
तूँ अब है कहाँ ?
अब तो आ भी जा
दीप बुझ रहा
जग छुट रहा
प्रेम दीप जला कर
अपना प्यार बचा ले
प्रिय !
यदि जो अब
इस जीवन में
तुझे न देख पाया
यह बात मन में
काँटे की तरह
चुभती रहेगी हर पल
कि तुझे नहीं देख पाया
यह बात तेरा प्यार
भुला न सकेगा जीवन भर
इसकी वेदना
सोते जागते
दिन रात
बेचैन करती रहेगी
संसार के बाजार में
मेरा प्यार नीलाम हो गया
कैसे भुला दूँ
यह बात तेरी याद
मेरे हाथ
धन - धान्य से भर जायेंगे
किन्तु उससे मुझे क्या मिलेगा ?
यह बात मन में चुभती है
चुभता ही रहेगा
गर तुझे न देख पाया
बिछौने पर लेटता हूँ
तो स्मरण हो आता है
यह प्रवाश निष्प्रयोजन है
तुझे न देख पाउँगा
यह बात मन से भूलती ही नहीं है
तेरा प्यार मन से मिटता ही नहीं है
तेरे प्यार का एहसास
तेरे खो जाने से
बेतरह जला रहा है दिल को
मेरे घर कितनी ही ख़ुशी हो
कितनी ही शहनाईयाँ बजे
कितनी ही सज - धज से
घर - बार मेरा चमक उठे
किंतुं तूँ नहीं आएगी
यह बात याद आते ही
दिल बैठ जाता है
यह वेदना कभी भूलती ही नहीं
तूँ मुझे भूल न जाए
यह शंका सोते जागते
दिन रात मुझे सताती रहती है
यह विरह दुःख ही है
जो निःशब्द रात्रि में भी
सोने नहीं देती है
तूँ लौट कर आये
या न आये
कुछ पता नहीं चले
तुझ से फिर मेरी भेंट
हो या न हो
मेरी याद रह जायेगी या नहीं
कौन जाने ?
प्रिय !
तेरी प्रतीक्षा में
जागते आँखें थक गयी
तुमसे भेंट नहीं
होगी भी या नहीं ?
तब भी मैं तेरी ही
राह देख रहा हूँ
द्वार के बाहर
धूल में बैठा
पागल सा
मेरा भिखारी मन
तेरी करुणा की
याचना कर रहा
तेरी करुणा नहीं मिल रही
मेरी कामना तृप्त नहीं हो रही
यह अतृप्त कामना भी
मुझे प्रिय लगती
इस जग के राजपथ पर
कितने ही
सुख - दुःख लीन पथिक
मेरे सामने से गुजर रहे
तुझ सा बनता नहीं कोई मेरा साथी
फिर भी मुझे तेरी ही
आकाँक्षा है बनी
जबकि तूँ दुसरे की हो गई
फिर भी यह आकाँक्षा है बनी
तूँ हो जा मेरी
मुझे प्रिय है
यह अप्राप्य आकाँक्षा भी
चारों ओर अमृत जल से
व्याकुल श्यामला पृथ्वी
यही प्रेम क्रन्दन है कर रही
उससे भेंट नहीं मेरी हो रही
केवल व्यथा ही
मेरे भाग्य में है आई
यह व्यथा भी
मुझे प्रिय लगती
मैं अनन्त काल तक
तेरा इंतजार करूँगा
प्रिय !
जब जीवन का सरोवर
सुख जाये
ह्रदय कमल की पंखुरियाँ
जब झुलस जाये
तब तूँ आ जाना
करुणा के बादलों के साथ भी
उमड़ - घुमड़ कर कभी
तब तक मैं
तेरा इंतजार करूँगा
जब तेरे जीवन का
सारा माधुर्य
कटुता के
सूखे मरुस्थल में बदल जाए
तब भी तूँ चली आना मेरे पास
मेरे गीत सरस गंगा बन
स्वागत करेंगे तेरे
सोंचता हूँ
यह बात कब हुई
मुझे तुझ से
तुझे मुझ से
प्यार हो गया
पर ,
यह बात आज की नहीं
जैसे कोई कुछ देर
बाहर जाये
और किससे मिलना है
यही भूल जाये
इसी तरह मेरी जीवन धारा
तुझसे आकर मिल गई
पर ,
यह बात आज की नहीं
अब ,
जब तूँ पराई हो गई
तुझसे मिलने की
आशा का फिर भी
आवरण मेरे ह्रदय पर
छाया हुआ है
शायद यह मेरा अतिरेक प्यार है
पर ,
यह बात आज की नहीं
जब तक
मैं तूँ खेलते रहे
मैंने तुझ पर
अविश्वास ही
नहीं किया
न तुझ से लाज आती थी
न बिछुड़ने का था भय ही
तेरा मेरा जीवन
आनन्द उल्लास की तरंगों के
बहता चला जा रहा था
तूँ इस तरह छोड़ जाएगी
कभी सोंचा भी न था
कई बार तुने सोते से
मुझे जगाया था
तेरे बातों का मर्म
उन दिनों मैं नहीं समझता था
कभी समझने की
चिंता भी नहीं की थी
केवल तेरे प्यार में
अपना प्यार मिलाकर
तुझे बस प्यार ही करता रहा था
अब ,
उस खेल के बाद
अचानक ही
यह क्या देख रहा हूँ मैं
आकाश स्तब्ध है
रवि चन्द्र निःशब्द हैं
सम्पूर्ण विश्व
तारों भरा धुलोक
पुरी तरह शांत है
तेरे बेवफाई के गम में
मातम मना रहा है
तेरी प्रतीक्षा में
इस नीरव रात्रि में
तारों का दीपक जलाये हुए हैं
और मैं
अनिमेष नेत्रों से
तेरी राह देख रहा हूँ
हम दोनों के बीच
एक गुप्त मंत्रणा हुई थी
हम दोनों
साथ जियेंगे - साथ मरेंगे
क्या अभी वह वेला नहीं है आई ?
अब भी क्या कुछ
विश्वास दिलाना
बाँकी रह गया है ?
देखो !
जीवन संध्या
प्रिय - अरे
वो प्रिय
कहाँ हो ?
आ जा चली आ
विरह की ज्योत्स्ना से
दिल जला जा रहा है
बुझते हुए प्राण के दिए को
बचा लो
प्यार की नयी ज्योति से
उसे प्रज्वलित कर दे
क्या किस्मत थी ?
यही भाग्य में लिखा था
तुझे बेवफा कह कर जिउं
यह कहने से तो मरण अच्छा था
प्यार के प्रकाश से
मुझे बचा ले
प्रिय आ जा चली आ
वेदना के रस से सराबोर
यह दिल
तुझे ही पुकार रहा
अरे वो प्रिय
तेरे लिए प्यार
क्या कोई चीज नहीं ?
मैं रात के गम के
घने अंधकार में भी
अभिसार के लिए
पुकार रहा तुझे ही
क्या देख कर दुखी मुझे
तेरे प्रेम गौर्वान्विंत होंगे
गंगनागन मेघों से
आच्छादित हो गया है
वर्षा का पानी झर - झर कर झर रहा है
बुझे हुए मन को
अपने प्रेम प्रकाश से
जगमगा दे
इस घोर रात्रि में
अकेला ही
किसकी प्रतिक्षा में
जाग रहा हूँ मैं
बरसात का पानी
झर - झर - झर रहा है
बिजली की चमक
क्षण भर के लिए होती है
फिर डूब जाता है
जीवन नैया घने अंधकार में
कौन जाने ?
तेरे दिल में
प्यार के गीत मेरे
गूँजते होंगे अब भी
या नहीं
पर तेरा दिया प्यार
मेरी सम्पूर्ण आत्मा को
तेरी ही ओर खिंच रहा है !
कहाँ हो प्रिय ?
अरे ओ प्रिय कहाँ हो ?
अब तो आकर
अपने प्रेम जिला दे जगा दे
मेघ गरज रहे हैं
हवा साँय - साँय करके
चल रही है
वेला निकल गई शायद ?
सुबह हो गई
पर तूँ न आयी
क्या अब अपना मिलन
न हो सकेगा ?
ऐसे निविड़ निशा में
मेरे प्राणों को
अपने प्रेम से
प्रकाशित कर दे
आ जा प्रिय आ जा
आषाढ़ की संध्या
घनी हो गई है
उषा की लाली का
अवसान हो गया है
बरसात की जलधारा
रह - रह कर बरस रही है
गम की दुनियां के
एक कोने में
मैं अकेला बैठा हूँ
तेरी ही यादों के सागर में
डूबा हूँ
जलकण से भींगी हवा भी
मन को मेरे
शीतल नहीं कर पा रही
वर्षा की जल धारा
रह - रह कर बरस रही
ह्रदय में तरंग उठती है
किन्तु
मुझे जिस किनारे की तलाश है
वह कहीं नहीं मिलता
तेरा प्यार कहीं नहीं मिलता
तूँ कहीं नहीं मिलती
इतने पर भी क्या
तुझे मेरी बैचेनी का एहसास नहीं है
तेरे यादों के झुण्ड ने
प्राणों को बेचैन कर डाला है
अँधेरी रात के
हर रिक्त प्रहर
तेरे यादों के शुलों से चुभते हैं
तेरे प्यार के खोने से
सब कुछ भूल कर
व्याकुल हो उठा हूँ
ओ मेरी प्राण प्रिया
आज बरसात की झड़ी में
प्रिय मिलन को
दिल व्याकुल हो उठा है
ऐसे में तूँ कहाँ चली गई ?
आकाश भी निराश हो रहा है
मेरी आँखों में आज नींद नहीं है
ओ मेरी प्राण प्रिया
द्वार खोले
मैं तेरी ही राह देख रहा
बाहर तो कुछ भी
दिखाई नहीं देता
अन्दर बाहर सर्वत्र
तूँ ही छाई हुई है
राह कहाँ है ?
जीने की
यही सोंच रहा हूँ
किसी दूर नदी तट पर
किसी भयानक जंगल में
या किसी अँधेरी गुफा में
कौन सी ऐसी जगह है ?
जहाँ मैं तुझे या
अपनी मौत को
गले लगा सकता हूँ
ओ मेरी प्राण प्रिया
तूँ अब है कहाँ ?
अब तो आ भी जा
दीप बुझ रहा
जग छुट रहा
प्रेम दीप जला कर
अपना प्यार बचा ले
प्रिय !
यदि जो अब
इस जीवन में
तुझे न देख पाया
यह बात मन में
काँटे की तरह
चुभती रहेगी हर पल
कि तुझे नहीं देख पाया
यह बात तेरा प्यार
भुला न सकेगा जीवन भर
इसकी वेदना
सोते जागते
दिन रात
बेचैन करती रहेगी
संसार के बाजार में
मेरा प्यार नीलाम हो गया
कैसे भुला दूँ
यह बात तेरी याद
मेरे हाथ
धन - धान्य से भर जायेंगे
किन्तु उससे मुझे क्या मिलेगा ?
यह बात मन में चुभती है
चुभता ही रहेगा
गर तुझे न देख पाया
बिछौने पर लेटता हूँ
तो स्मरण हो आता है
यह प्रवाश निष्प्रयोजन है
तुझे न देख पाउँगा
यह बात मन से भूलती ही नहीं है
तेरा प्यार मन से मिटता ही नहीं है
तेरे प्यार का एहसास
तेरे खो जाने से
बेतरह जला रहा है दिल को
मेरे घर कितनी ही ख़ुशी हो
कितनी ही शहनाईयाँ बजे
कितनी ही सज - धज से
घर - बार मेरा चमक उठे
किंतुं तूँ नहीं आएगी
यह बात याद आते ही
दिल बैठ जाता है
यह वेदना कभी भूलती ही नहीं
तूँ मुझे भूल न जाए
यह शंका सोते जागते
दिन रात मुझे सताती रहती है
यह विरह दुःख ही है
जो निःशब्द रात्रि में भी
सोने नहीं देती है
तूँ लौट कर आये
या न आये
कुछ पता नहीं चले
तुझ से फिर मेरी भेंट
हो या न हो
मेरी याद रह जायेगी या नहीं
कौन जाने ?
प्रिय !
तेरी प्रतीक्षा में
जागते आँखें थक गयी
तुमसे भेंट नहीं
होगी भी या नहीं ?
तब भी मैं तेरी ही
राह देख रहा हूँ
द्वार के बाहर
धूल में बैठा
पागल सा
मेरा भिखारी मन
तेरी करुणा की
याचना कर रहा
तेरी करुणा नहीं मिल रही
मेरी कामना तृप्त नहीं हो रही
यह अतृप्त कामना भी
मुझे प्रिय लगती
इस जग के राजपथ पर
कितने ही
सुख - दुःख लीन पथिक
मेरे सामने से गुजर रहे
तुझ सा बनता नहीं कोई मेरा साथी
फिर भी मुझे तेरी ही
आकाँक्षा है बनी
जबकि तूँ दुसरे की हो गई
फिर भी यह आकाँक्षा है बनी
तूँ हो जा मेरी
मुझे प्रिय है
यह अप्राप्य आकाँक्षा भी
चारों ओर अमृत जल से
व्याकुल श्यामला पृथ्वी
यही प्रेम क्रन्दन है कर रही
उससे भेंट नहीं मेरी हो रही
केवल व्यथा ही
मेरे भाग्य में है आई
यह व्यथा भी
मुझे प्रिय लगती
मैं अनन्त काल तक
तेरा इंतजार करूँगा
प्रिय !
जब जीवन का सरोवर
सुख जाये
ह्रदय कमल की पंखुरियाँ
जब झुलस जाये
तब तूँ आ जाना
करुणा के बादलों के साथ भी
उमड़ - घुमड़ कर कभी
तब तक मैं
तेरा इंतजार करूँगा
जब तेरे जीवन का
सारा माधुर्य
कटुता के
सूखे मरुस्थल में बदल जाए
तब भी तूँ चली आना मेरे पास
मेरे गीत सरस गंगा बन
स्वागत करेंगे तेरे
सोंचता हूँ
यह बात कब हुई
मुझे तुझ से
तुझे मुझ से
प्यार हो गया
पर ,
यह बात आज की नहीं
जैसे कोई कुछ देर
बाहर जाये
और किससे मिलना है
यही भूल जाये
इसी तरह मेरी जीवन धारा
तुझसे आकर मिल गई
पर ,
यह बात आज की नहीं
अब ,
जब तूँ पराई हो गई
तुझसे मिलने की
आशा का फिर भी
आवरण मेरे ह्रदय पर
छाया हुआ है
शायद यह मेरा अतिरेक प्यार है
पर ,
यह बात आज की नहीं
जब तक
मैं तूँ खेलते रहे
मैंने तुझ पर
अविश्वास ही
नहीं किया
न तुझ से लाज आती थी
न बिछुड़ने का था भय ही
तेरा मेरा जीवन
आनन्द उल्लास की तरंगों के
बहता चला जा रहा था
तूँ इस तरह छोड़ जाएगी
कभी सोंचा भी न था
कई बार तुने सोते से
मुझे जगाया था
तेरे बातों का मर्म
उन दिनों मैं नहीं समझता था
कभी समझने की
चिंता भी नहीं की थी
केवल तेरे प्यार में
अपना प्यार मिलाकर
तुझे बस प्यार ही करता रहा था
अब ,
उस खेल के बाद
अचानक ही
यह क्या देख रहा हूँ मैं
आकाश स्तब्ध है
रवि चन्द्र निःशब्द हैं
सम्पूर्ण विश्व
तारों भरा धुलोक
पुरी तरह शांत है
तेरे बेवफाई के गम में
मातम मना रहा है
तेरी प्रतीक्षा में
इस नीरव रात्रि में
तारों का दीपक जलाये हुए हैं
और मैं
अनिमेष नेत्रों से
तेरी राह देख रहा हूँ
हम दोनों के बीच
एक गुप्त मंत्रणा हुई थी
हम दोनों
साथ जियेंगे - साथ मरेंगे
क्या अभी वह वेला नहीं है आई ?
अब भी क्या कुछ
विश्वास दिलाना
बाँकी रह गया है ?
देखो !
जीवन संध्या
समुद्र के तट पर
उतर आई है
कौन जाने
यह लंगर की जंजीर
कब उठ जाये
और अस्त होते
सूर्य के अंतिम किरणों की तरह
तेरी प्रतीक्षा में ही
इह लीला समाप्त हो जाये
ओ मेरी प्राण प्रिया !
कब आएगी मेरे घर ?
आ जा जरा जल्दी आना !
घनी वन वीथियों में
सावन के मेघ बरस रहे हैं
रात की पलकें
बादलों की भार से
झुक कर बन्द हो गई है
दयाकर जल्दी आ जाना
बिजली की गड़गड़ाहट से
नींद उचट गई है
वर्षा की जलधारा में
मेरे अश्रुजल मिल रहे
मेरे आँसूओं के कण
आकाश के घने अंधकार में
घूम - घूम कर
बड़ी बेचैनी से
तेरी तलाश कर रहे हैं
ओ दयामयी प्रिया !
आजा जल्दी आ जाना
फिर लौट कर न जाना
जल्दी करो अब प्रिय
सारे बंधन तोड़ दो
अब न विलम्ब करो
ऐसा न हो
कहीं मैं धूल में मिल जाऊं
यही भय है
मेरे प्यार को
तेरा सहारा न मिले
कौन जाने ?
फिर भी आकर
अपना प्यार बचा ले
तोड़
तोड़ दे
सारे बँधन को
छोड़
छोड़ दे
सारे जग को
और न अब विलम्ब करो
दिन पूरा हो जायेगा
हर ओर अँधेरा छा जायेगा
ऐसा न हो
अपने मिलन का
मुहूर्त ही टल जाए
यही भय है
जो थोड़ी बहुत आस बची है
जो थोडा बहुत रंग
इस फूल पर बचा है
जो थोड़ी बहुत
सुवास सुधा से
फूलों का ह्रदय भरा है
जब तक अपने मिलन का
मुहूर्त शेष है
आ जा इसका उपभोग करें
तोड़ ले
तोड़ ले
सारे रिश्ते नाते तोड़ ले
परम आत्मा प्यार के खातिर
चली आ
आ भी जा
अब और न विलम्ब कर
प्रिय मुझे तेरी ही चाह है
बस तेरी ही चाह है
यही शब्द निरन्तर
मेरा अपना अंतःकरण
पुकार - पुकार कर कह रहा है
अन्य सारी कामनायें
अब विलुप्त हो गई हैं
अन्य सब कुछ
सर्वथा मिथ्या है
निःसार है
और निष्प्रयोजन है
मुझे तो तेरी ही चाह है
जैसे अँधेरी रात के
अन्तःस्थल में
प्रकाश की प्रार्थना
छिपी रहती है
उसी तरह हर पल
मुझे तेरी ही चाह है
अपने अन्तः की चेतना में भी
मैं निरंतर यह सुनता हूँ
मुझे तेरी चाह है , तेरी चाह है
जैसे बादल
पूरी शक्ति से
शांति का आघात करते हुए भी
अपने लक्ष्य की प्राप्ति
शान्ति में ही समझते हैं
वैसे ही मेरा विद्रोह
तेरे प्रेम पर आघात करता है
और पुकार रहा है
मुझे तेरी चाह है !
प्रिय !
मेरी जीवन वीणा की तारें
सहन कर सकती है
और भी आघातें
रुला जितना अधिक
तूँ रुला सकती है मुझे
जो स्वर तुने
मेरे जीवन में
बजाने शुरू किये थे
उनका अंतिम अवरोह
अभी बजाना शेष है
इसलिए निष्ठुर मुर्छनाओं में
उस अंतिम स्वर को
ओ मेरी प्राण प्रिया !
अब मूर्तिमान कर दे
यह मत समझ
केवल करुण रागनियों में
है नहीं अनुराग मेरा
मृदुल स्वरों के खेल में
मेरा जीवन संवार कर
इस कदर नष्ट कर दी
अपनी बेवफाई के
प्रचंड शिखाओं को
और अत्यधिक
प्रज्वलित कर
अपने प्यार को
प्रबल आँधियों में झोंक दी
सारे आकाश को
तेरी बेवफाइयों ने
विछुब्ध कर दिया है
मेरी जीवन वीणा की तारों पर
अपनी बेवफाई की रागनी
अंतिम राग
निष्ठुर से निष्ठुर स्वरों में
आज तूँ बजा ले
ये तारें शायद और भी
आघातें सहन कर सकती
मैंने तो तुझे
देवी जानकर
तुझ से प्रेम किया
अपना सा ही समझकर
तेरे पास आया था
प्रेमिका समझकर
तेरा स्पर्श किया था
पत्नी समझकर
हाथ पकड़े और मुख चूमे थे
प्रेमवश स्वतः
मेरा बनकर
जिस मार्ग पर तुने बढाया है
उस पथ पर तुझे
मन का मीत मान
तेरे संग चला
पर क्या किया ?
आधे रास्ते में
छोड़ चली आयी है
अपने पथ का
अंत न पाकर
अब मैं
थक गया हूँ
तो भी
तेरे मिलन की क्षीण आशा मात्र से
जीवन का त्याग करने की इच्छा से
प्राण सागर में
गोता नहीं लगाता
तुझे देवी जानकर
अब भी
तेरे आने के इंतजार में
खड़ा हूँ मैं
प्रिय तुझसे मिलने
अकेला मैं बाहर आया था
तूँ भी सुनसान अँधेरे में
साथ मेरे चलने को
बिल्कुल भी तैयार
तुझ से दूर हंटने का भी
मैंने बहुत प्रयत्न किया
टेढ़े तिरछे रास्ते पर भी चला
कई बार ऐसा प्रतीत हुआ
तुने साथ छोड़ दिया
पर पुनः
तेरी धड़कन
अपने पास
महसूस करने लगा
तुझमे विलक्षण चंचलता है
मेरे हर शब्द में
तुने अपने शब्द मिलाये
तूँ बिल्कुल
मेरी प्रतिछाया बन गयी थी
हम दोनों एक दुसरे के लिए
बिल्कुल निपट निर्लज्ज बन गये थे
प्रिय !
तुझसे मिलने को
अकेला मैं बाहर आया था
पर अब मैं
अपने कन्धों पर
तेरे प्यार के भार को
उठाना नहीं चाहूँगा
अब मैं तुझ से ही
अपनी प्यार का
भिक्षा माँग कर
अपने प्यार को
शर्मिन्दा नहीं करना चाहूँगा
इस भार को
अब मैं तुझे ही
पूर्ण रूप से सौंपना चाहूँगा
और मैं निश्चिन्त होकर
सर्वत्र विचरण करूँगा
चिंताक्रांत होकर
पीछे मुड़कर
नहीं देखना चाहूँगा
मैं अपने ही कन्धों पर अब
तेरा प्यार उठाये नहीं फिरूंगा
मेरे प्यार के पवन
जिसे ही छूते हैं
उस दीपक का प्रकाश
क्षण भर में
मंद हो जाता है
मेरे इन हाथों में
शायद मलिनता है
इन मैले हाथों से
किसी को भी न
अब प्यार मैं करूँगा
निर्मल प्रेम के
प्रेरित - पत्र पुष्प को भी
कोई स्वीकार नहीं करता है अब
ओ मेरी प्राण प्रिया !
मेरे ह्रदय में
पूर्ण रूप से
तूँ समा गयी है
जो जी में आये
तूँ वही कर
जब तुने मेरे अन्दर के
खजाने पर अधिकार किया
तो बाहर का भी सब कुछ
अपने हाथ में ले - ले
मेरी सारी अभिलाषाओं
मेरी सारी तृष्णाओं का अन्तकर
मेरे प्राण को अपनी
परितृप्ति से भर दे
इसके बाद कोई
चाहत नहीं रह जाएगी
संसार के टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
अंगारे भी बरसे
तो बरसने दे
जिस रूप में तूँ
जब आना चाहे चली आ
तेरे हर रूप का
हर पल स्वागत है
माना की मेरे आँखों में
तुने आँसू भरे
पर किसी को तो
सारी दुनिया ही दे दी
उसके आँखों में तो
तुने हास्य भरे
कई बार ऐसा लगता है
कि हम सब कुछ लुटा गये
तभी तेरे प्यार का एहसास
याद आ गये
लगता है तब
जो लुटा था
उससे भी अधिक मिल गये
एक हाथ से तूँ
मुझे सिर से उतारकर
नीचे पटक दी
पर तेरे साथ गुजरे
प्यार भरे ओ लम्हों
के याद आते ही
दूसरे ही पल लगता है
तुने दुसरे हाथों से
उठाकर छाती से लगा ली है
तूँ मेरे ह्रदय कोष में
पूर्ण रूप से समां गयी है
इसलिए अब जो जी में आये
वो कर
मैं तुझे भुला नहीं सकता
खुद से तुझे जुदा नहीं कर सकता
पर तूँ आजाद है
तुझे जो जी में आये वही कर
है मेरे जीवन की अंतिम साध
ओ मेरी प्राण प्रिया !
आ और मुझ से बात कर
मैं जन्मभर तेरे लिये जागता रहूँगा
जन्मभर तेरे लिए ही गम का भार
अपने कन्धों पे उठाकर घूमता रहूँगा
ओ मेरी प्राण प्रिया !
आ और मुझसे बात कर
जो कुछ मैं हूँ जो कुछ मेरा है
अपने जीवन में जो कुछ किया है
मेरा प्रेम मेरी आशा
सब रहस्यपूर्ण पथ से
तेरी दिशा में ही बढे थे
तेरी अंतिम एक दृष्टि पर
मेरा सम्पूर्ण जीवन
अर्पित हो जायेगा
मेरे मौत का समय
निकट आ गया है
अपनी अर्थी की तैयारी में
जुट गया हूँ
प्रिया !
तुम कब दुल्हन की
सुन्दर वेश भुषा पहन कर
शांत मुस्कान के साथ आएगी
उस दिन के बाद कहेगी तो
अपना यह जग का निवास भी
छोड़ दूंगा
किस रात्रि के एकांत में
अपनी पति - पत्नी की तरह
भेंट होगी
तब मैं - तूँ का भेद नहीं रहेगा
मर जाऊंगा शांति से
प्रिया !
आज मैं सोंच रहा हूँ
जो कुछ होना था
सब हो चूका
सब कुछ पाकर भी
शायद सब कुछ खो चुका
शायद मेरी यात्रा का
अंतिम पड़ाव आ गया
मुझे प्रतीत हो रहा
अब आगे मार्ग नहीं है
मैं अपनी मंजिल खो चूका हूँ
अब प्रयास का कोई
प्रयोजन ही नहीं रहा
पाथेय भी समाप्त हो गया
समय आ गया है कि
अब थके हारे टूटे
इस जीवन को
चिर विश्रांति मिले
इन चिथरे दिल और प्राण
के साथ - साथ
मैं आगे जा भी कैसे सकता हूँ
दिल को धड़कने की चाह भी
ख़त्म हो गई है
अरमान कुछ रह ही नहीं गये
चाहत के परखचे उड़ गये
तेरे बगैर ये जिस्मानी जिन्दगी
अब बेमानी लगती है
जो मेरा सब था
वही नहीं रहा
मेरी धड़कन मेरी साँस ही
मेरी हर आश को
तोड़कर चली गयी है !
प्रिया !
इस जग की रीत ही उलटी है
मैं तुझसे बेपनाह प्यार करता हूँ
क्योंकि
तुने ही जकड़े हैं
अपने प्रेम पाश में
क्या तेरे प्रेम की
यही रीति है
अपने प्रेम पाश में
मुझे जकड़ती ही चली गयी
मैं पल - पल तेरे दर्शन को
तरस रहा हूँ
और एक तूँ
और तेरा यह निराला प्रेम है
कि अपने दर्शनाभिलाषी को
दर्शन भी नहीं देना चाहती है
तेरा प्रेम तो विचित्र निकला
क्या सचमुच तूँ बेवफा हो गयी है
या बेवफाई का लबादा
ओढ़ लिया है ?
मुझे उस मोड़ पर
ला कर खड़ा कर दिया है
कि तेरे प्रेम पर विश्वास करूँ
या तेरे इस बेवफाई पर
मैं तुझे प्रार्थना में पुकारूँ
या न पुकारूँ
तुझे याद करूँ या न करूँ
न याद करूँ तो भी
स्वतः याद आ जाती हो
तूँ ऐसी चीज ही नहीं
जिसे भुलाया जा सके
मेरा प्रेम सदा तेरे प्रेम की
प्रतीक्षा करता रहेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 05-07-1983 - पूर्णिया
हाथ पकड़े और मुख चूमे थे
प्रेमवश स्वतः
मेरा बनकर
जिस मार्ग पर तुने बढाया है
उस पथ पर तुझे
मन का मीत मान
तेरे संग चला
पर क्या किया ?
आधे रास्ते में
छोड़ चली आयी है
अपने पथ का
अंत न पाकर
अब मैं
थक गया हूँ
तो भी
तेरे मिलन की क्षीण आशा मात्र से
जीवन का त्याग करने की इच्छा से
प्राण सागर में
गोता नहीं लगाता
तुझे देवी जानकर
अब भी
तेरे आने के इंतजार में
खड़ा हूँ मैं
प्रिय तुझसे मिलने
अकेला मैं बाहर आया था
तूँ भी सुनसान अँधेरे में
साथ मेरे चलने को
बिल्कुल भी तैयार
तुझ से दूर हंटने का भी
मैंने बहुत प्रयत्न किया
टेढ़े तिरछे रास्ते पर भी चला
कई बार ऐसा प्रतीत हुआ
तुने साथ छोड़ दिया
पर पुनः
तेरी धड़कन
अपने पास
महसूस करने लगा
तुझमे विलक्षण चंचलता है
मेरे हर शब्द में
तुने अपने शब्द मिलाये
तूँ बिल्कुल
मेरी प्रतिछाया बन गयी थी
हम दोनों एक दुसरे के लिए
बिल्कुल निपट निर्लज्ज बन गये थे
प्रिय !
तुझसे मिलने को
अकेला मैं बाहर आया था
पर अब मैं
अपने कन्धों पर
तेरे प्यार के भार को
उठाना नहीं चाहूँगा
अब मैं तुझ से ही
अपनी प्यार का
भिक्षा माँग कर
अपने प्यार को
शर्मिन्दा नहीं करना चाहूँगा
इस भार को
अब मैं तुझे ही
पूर्ण रूप से सौंपना चाहूँगा
और मैं निश्चिन्त होकर
सर्वत्र विचरण करूँगा
चिंताक्रांत होकर
पीछे मुड़कर
नहीं देखना चाहूँगा
मैं अपने ही कन्धों पर अब
तेरा प्यार उठाये नहीं फिरूंगा
मेरे प्यार के पवन
जिसे ही छूते हैं
उस दीपक का प्रकाश
क्षण भर में
मंद हो जाता है
मेरे इन हाथों में
शायद मलिनता है
इन मैले हाथों से
किसी को भी न
अब प्यार मैं करूँगा
निर्मल प्रेम के
प्रेरित - पत्र पुष्प को भी
कोई स्वीकार नहीं करता है अब
ओ मेरी प्राण प्रिया !
मेरे ह्रदय में
पूर्ण रूप से
तूँ समा गयी है
जो जी में आये
तूँ वही कर
जब तुने मेरे अन्दर के
खजाने पर अधिकार किया
तो बाहर का भी सब कुछ
अपने हाथ में ले - ले
मेरी सारी अभिलाषाओं
मेरी सारी तृष्णाओं का अन्तकर
मेरे प्राण को अपनी
परितृप्ति से भर दे
इसके बाद कोई
चाहत नहीं रह जाएगी
संसार के टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
अंगारे भी बरसे
तो बरसने दे
जिस रूप में तूँ
जब आना चाहे चली आ
तेरे हर रूप का
हर पल स्वागत है
माना की मेरे आँखों में
तुने आँसू भरे
पर किसी को तो
सारी दुनिया ही दे दी
उसके आँखों में तो
तुने हास्य भरे
कई बार ऐसा लगता है
कि हम सब कुछ लुटा गये
तभी तेरे प्यार का एहसास
याद आ गये
लगता है तब
जो लुटा था
उससे भी अधिक मिल गये
एक हाथ से तूँ
मुझे सिर से उतारकर
नीचे पटक दी
पर तेरे साथ गुजरे
प्यार भरे ओ लम्हों
के याद आते ही
दूसरे ही पल लगता है
तुने दुसरे हाथों से
उठाकर छाती से लगा ली है
तूँ मेरे ह्रदय कोष में
पूर्ण रूप से समां गयी है
इसलिए अब जो जी में आये
वो कर
मैं तुझे भुला नहीं सकता
खुद से तुझे जुदा नहीं कर सकता
पर तूँ आजाद है
तुझे जो जी में आये वही कर
है मेरे जीवन की अंतिम साध
ओ मेरी प्राण प्रिया !
आ और मुझ से बात कर
मैं जन्मभर तेरे लिये जागता रहूँगा
जन्मभर तेरे लिए ही गम का भार
अपने कन्धों पे उठाकर घूमता रहूँगा
ओ मेरी प्राण प्रिया !
आ और मुझसे बात कर
जो कुछ मैं हूँ जो कुछ मेरा है
अपने जीवन में जो कुछ किया है
मेरा प्रेम मेरी आशा
सब रहस्यपूर्ण पथ से
तेरी दिशा में ही बढे थे
तेरी अंतिम एक दृष्टि पर
मेरा सम्पूर्ण जीवन
अर्पित हो जायेगा
मेरे मौत का समय
निकट आ गया है
अपनी अर्थी की तैयारी में
जुट गया हूँ
प्रिया !
तुम कब दुल्हन की
सुन्दर वेश भुषा पहन कर
शांत मुस्कान के साथ आएगी
उस दिन के बाद कहेगी तो
अपना यह जग का निवास भी
छोड़ दूंगा
किस रात्रि के एकांत में
अपनी पति - पत्नी की तरह
भेंट होगी
तब मैं - तूँ का भेद नहीं रहेगा
मर जाऊंगा शांति से
प्रिया !
आज मैं सोंच रहा हूँ
जो कुछ होना था
सब हो चूका
सब कुछ पाकर भी
शायद सब कुछ खो चुका
शायद मेरी यात्रा का
अंतिम पड़ाव आ गया
मुझे प्रतीत हो रहा
अब आगे मार्ग नहीं है
मैं अपनी मंजिल खो चूका हूँ
अब प्रयास का कोई
प्रयोजन ही नहीं रहा
पाथेय भी समाप्त हो गया
समय आ गया है कि
अब थके हारे टूटे
इस जीवन को
चिर विश्रांति मिले
इन चिथरे दिल और प्राण
के साथ - साथ
मैं आगे जा भी कैसे सकता हूँ
दिल को धड़कने की चाह भी
ख़त्म हो गई है
अरमान कुछ रह ही नहीं गये
चाहत के परखचे उड़ गये
तेरे बगैर ये जिस्मानी जिन्दगी
अब बेमानी लगती है
जो मेरा सब था
वही नहीं रहा
मेरी धड़कन मेरी साँस ही
मेरी हर आश को
तोड़कर चली गयी है !
प्रिया !
इस जग की रीत ही उलटी है
मैं तुझसे बेपनाह प्यार करता हूँ
क्योंकि
तुने ही जकड़े हैं
अपने प्रेम पाश में
क्या तेरे प्रेम की
यही रीति है
अपने प्रेम पाश में
मुझे जकड़ती ही चली गयी
मैं पल - पल तेरे दर्शन को
तरस रहा हूँ
और एक तूँ
और तेरा यह निराला प्रेम है
कि अपने दर्शनाभिलाषी को
दर्शन भी नहीं देना चाहती है
तेरा प्रेम तो विचित्र निकला
क्या सचमुच तूँ बेवफा हो गयी है
या बेवफाई का लबादा
ओढ़ लिया है ?
मुझे उस मोड़ पर
ला कर खड़ा कर दिया है
कि तेरे प्रेम पर विश्वास करूँ
या तेरे इस बेवफाई पर
मैं तुझे प्रार्थना में पुकारूँ
या न पुकारूँ
तुझे याद करूँ या न करूँ
न याद करूँ तो भी
स्वतः याद आ जाती हो
तूँ ऐसी चीज ही नहीं
जिसे भुलाया जा सके
मेरा प्रेम सदा तेरे प्रेम की
प्रतीक्षा करता रहेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 05-07-1983 - पूर्णिया
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