94.
वो मेरी अन्तरंग
चल आ तुरंत
तेरी साँसों के पवन
मेरे मन में भर रहे उमंग
कर ले आज तूँ अपनी आँखें बंद
वो मेरे दिल की सारंग
आज तूँ कर ले वरण
फिर न आएगा
मौका ये प्यार का
फूलों के बहार का
साजन के इसरार का
वो मेरी गुलबदन
कर लूँ तुझको पलकों में बंद
वो मेरी मत्त मतंग
तेरे लिए ही हैं ये सारे छंद
तुझे क्यों है ये सब नापसंद
फिर कह दे तूँ अपनी पसंद
वर्ना मर जाऊँगा लगाके गुलबंद
वो मेरी अन्तरंग चल आ तुरंत
करले आँखें तूँ अपनी बंद !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-04-1984
वो मेरी अन्तरंग
चल आ तुरंत
तेरी साँसों के पवन
मेरे मन में भर रहे उमंग
कर ले आज तूँ अपनी आँखें बंद
वो मेरे दिल की सारंग
आज तूँ कर ले वरण
फिर न आएगा
मौका ये प्यार का
फूलों के बहार का
साजन के इसरार का
वो मेरी गुलबदन
कर लूँ तुझको पलकों में बंद
वो मेरी मत्त मतंग
तेरे लिए ही हैं ये सारे छंद
तुझे क्यों है ये सब नापसंद
फिर कह दे तूँ अपनी पसंद
वर्ना मर जाऊँगा लगाके गुलबंद
वो मेरी अन्तरंग चल आ तुरंत
करले आँखें तूँ अपनी बंद !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-04-1984
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