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बागें हैं यहाँ अनेक
बाग़ - बाग़ में
माली है एक - एक
चमन है , सुमन है
बहार है , सुगंध है
फूल भी हैं अनेक - अनेक
फिर भी यहाँ
कोई अपना नहीं है एक
यह दुनियाँ और समाज को
मैं क्या समझूँ
दोनों हाथों से
जितनी ही कोशिश की
ख़ुशी समेटने की
उससे गहरे
दुःख ही नसीब हुए
बीते कल को
भूल जाना ही अच्छा है
पर हर शय पे
वह कहानी है
ऊँगली पकड़ कर
जिन्होंने अपना बनाया
वही छोड़ चले
बेगाने बन कर
जिस दिल में
आँखों में बसाया
उसी ने सरे आम
बदनाम किया
दिल टुटा आस छुटी
जीवन की लड़ियाँ ही
बिखर गयी एक - एक कर !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1983
बागें हैं यहाँ अनेक
बाग़ - बाग़ में
माली है एक - एक
चमन है , सुमन है
बहार है , सुगंध है
फूल भी हैं अनेक - अनेक
फिर भी यहाँ
कोई अपना नहीं है एक
यह दुनियाँ और समाज को
मैं क्या समझूँ
दोनों हाथों से
जितनी ही कोशिश की
ख़ुशी समेटने की
उससे गहरे
दुःख ही नसीब हुए
बीते कल को
भूल जाना ही अच्छा है
पर हर शय पे
वह कहानी है
ऊँगली पकड़ कर
जिन्होंने अपना बनाया
वही छोड़ चले
बेगाने बन कर
जिस दिल में
आँखों में बसाया
उसी ने सरे आम
बदनाम किया
दिल टुटा आस छुटी
जीवन की लड़ियाँ ही
बिखर गयी एक - एक कर !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1983
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