86.
हे सर्वेश्वर सर्वव्यापी सर्वज्ञ अन्तर्यामी
भेद मिटा अन्धकार भगा हे मेरे स्वामी
एक झलक जो उनका मिल गया है
प्यास और भी दिल का बढ़ गया है
एक पल को ही तो थे देखे
पर याद सारी कहानी आ गयी
खुशबु जानी पहचानी लगी
हवा जो तेरे बालों से टकराकर
मेरे नाकों में समा गयी
बस याद पुरानी घड़ी आ गयी
रचा बसा मेरे मन का मूरत
एक बार फिर दरस दिखा गयी
एक नज़र मुझ पर डालना भी
नागवार उनको गुजरा
हर नज़र जो उनकी मुझ में समा गयी
आकर दो बात कर लेना भी
न उनको भाया
बातों की उनकी दरिया जो
मुझ में समा गया
आकर मिलना न उनको मन भाया
उनके हर अंगों का स्पर्श ही जब मुझमे समा गया !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 03-01-1984 समस्तीपुर
हे सर्वेश्वर सर्वव्यापी सर्वज्ञ अन्तर्यामी
भेद मिटा अन्धकार भगा हे मेरे स्वामी
एक झलक जो उनका मिल गया है
प्यास और भी दिल का बढ़ गया है
एक पल को ही तो थे देखे
पर याद सारी कहानी आ गयी
खुशबु जानी पहचानी लगी
हवा जो तेरे बालों से टकराकर
मेरे नाकों में समा गयी
बस याद पुरानी घड़ी आ गयी
रचा बसा मेरे मन का मूरत
एक बार फिर दरस दिखा गयी
एक नज़र मुझ पर डालना भी
नागवार उनको गुजरा
हर नज़र जो उनकी मुझ में समा गयी
आकर दो बात कर लेना भी
न उनको भाया
बातों की उनकी दरिया जो
मुझ में समा गया
आकर मिलना न उनको मन भाया
उनके हर अंगों का स्पर्श ही जब मुझमे समा गया !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 03-01-1984 समस्तीपुर
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