103 .
तेरी ये आँखें कजरारी
पता नहीं क्यों
देख नहीं पाती
मेरे दिल की बेकरारी
नाजुक इतना अपना दिल है
शब्द के एक आवाज से
तेरे एक निगाह से
चूर - चूर हो जाता है
पता नहीं क्यों मेरे अलाप
देख सुन कर भी
तेरे मन को क्या दे जाते हैं
यहाँ तो अपने दिल की बस्ती
एक बार तेरे आने की उम्मीद से
बार - बार उजड़ती और बस्ती है
दर्दों का सैलाब इतना भी आयेगा
तेरे नैन सह पायेंगे
मेरे गुलिस्ताँ को
देख उजड़ते इस कदर
तेरी आत्मा चीख नहीं पायेगी
मुझे दर - दर ठोकर खाते
देख इस कदर
प्यार तेरा कभी न चित्कारेगा
ऐसी आशा भला कैसे
मेरा प्यार कभी कर पायेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-02-1984
तेरी ये आँखें कजरारी
पता नहीं क्यों
देख नहीं पाती
मेरे दिल की बेकरारी
नाजुक इतना अपना दिल है
शब्द के एक आवाज से
तेरे एक निगाह से
चूर - चूर हो जाता है
पता नहीं क्यों मेरे अलाप
देख सुन कर भी
तेरे मन को क्या दे जाते हैं
यहाँ तो अपने दिल की बस्ती
एक बार तेरे आने की उम्मीद से
बार - बार उजड़ती और बस्ती है
दर्दों का सैलाब इतना भी आयेगा
तेरे नैन सह पायेंगे
मेरे गुलिस्ताँ को
देख उजड़ते इस कदर
तेरी आत्मा चीख नहीं पायेगी
मुझे दर - दर ठोकर खाते
देख इस कदर
प्यार तेरा कभी न चित्कारेगा
ऐसी आशा भला कैसे
मेरा प्यार कभी कर पायेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-02-1984
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