गुरुवार, 30 अप्रैल 2015
बुधवार, 29 अप्रैल 2015
463 . देकर यदि किसी को कुछ तुम
( परम पूज्य अम्मा और बाबूजी )
४६३
देकर यदि किसी को कुछ तुम
कहते हो हमने दान दिया
दान नहीं वह अहंकार किया
फल में , उसका प्रसाद ग्रहण किया
तभी समझो तुमने दान दिया
धन है एक अर्थ अनेक
देता दान , कीर्ति , गुणगान भी
देता भोग , साज सम्मान भी
देता गौरव पद , उपकार भी
देता स्वर्ग - नरक का द्वार भी
देता त्याग , पुण्य - उपहार भी
कुछ उपकार करो स्व कल्याण करो
भोग में पर मत भाग्य बिगाड़ो
बन मालिक धन को नौकर बनाओ !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
४६३
देकर यदि किसी को कुछ तुम
कहते हो हमने दान दिया
दान नहीं वह अहंकार किया
फल में , उसका प्रसाद ग्रहण किया
तभी समझो तुमने दान दिया
धन है एक अर्थ अनेक
देता दान , कीर्ति , गुणगान भी
देता भोग , साज सम्मान भी
देता गौरव पद , उपकार भी
देता स्वर्ग - नरक का द्वार भी
देता त्याग , पुण्य - उपहार भी
कुछ उपकार करो स्व कल्याण करो
भोग में पर मत भाग्य बिगाड़ो
बन मालिक धन को नौकर बनाओ !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
मंगलवार, 28 अप्रैल 2015
462 . मेरे मित्र मैं जब तुझसे मिला
४६२
मेरे मित्र मैं जब तुझसे मिला
बोलो तुमने मुझको क्या - क्या दिया ?
सुनाकर तुमने इसकी उसकी सबकी निंदा
देकर किसी को गाली किसी के गुण गाये
किसीसे क्या गिला मन में रोष बसाया
व्यर्थ में मुझको तुमपे क्रोध आया
भरकर मुझमे द्वेष तुमने क्या पाया ?
मेरे मित्र !
तुमने कैसा किया यह प्रयत्न
मैं जब तुमसे मिला बोलो क्या मिला ?
सुधीर कुमार ' सवेरा '
मेरे मित्र मैं जब तुझसे मिला
बोलो तुमने मुझको क्या - क्या दिया ?
सुनाकर तुमने इसकी उसकी सबकी निंदा
देकर किसी को गाली किसी के गुण गाये
किसीसे क्या गिला मन में रोष बसाया
व्यर्थ में मुझको तुमपे क्रोध आया
भरकर मुझमे द्वेष तुमने क्या पाया ?
मेरे मित्र !
तुमने कैसा किया यह प्रयत्न
मैं जब तुमसे मिला बोलो क्या मिला ?
सुधीर कुमार ' सवेरा '
सोमवार, 27 अप्रैल 2015
461 . स्नेह का सागर जिसका
४६१
स्नेह का सागर जिसका
होता है जितना गहरा
बनता वह सबका सहारा
प्रकाश वह उतना देता
है तब तक जलता
स्नेह का वह घट
जब तक भरा रहता
इसी बुते पर तो
यह मानवता है पलता
मानव - दीपक की कहानी
बिना स्नेह भला कौन
बना यहाँ कोई ज्ञानी ?
खोकर क्षण हम यूँ बीत गए
बरस कर मेघ जैसे हों रीत गए
इस जीवन की क्या है उपलब्धि ?
बीत गया जब अब तक की अवधि
खोकर कुछ जगत सुख पावे
जीवन मिल अनंत से एक हो जावे !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
स्नेह का सागर जिसका
होता है जितना गहरा
बनता वह सबका सहारा
प्रकाश वह उतना देता
है तब तक जलता
स्नेह का वह घट
जब तक भरा रहता
इसी बुते पर तो
यह मानवता है पलता
मानव - दीपक की कहानी
बिना स्नेह भला कौन
बना यहाँ कोई ज्ञानी ?
खोकर क्षण हम यूँ बीत गए
बरस कर मेघ जैसे हों रीत गए
इस जीवन की क्या है उपलब्धि ?
बीत गया जब अब तक की अवधि
खोकर कुछ जगत सुख पावे
जीवन मिल अनंत से एक हो जावे !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
रविवार, 26 अप्रैल 2015
शनिवार, 25 अप्रैल 2015
गुरुवार, 23 अप्रैल 2015
बुधवार, 22 अप्रैल 2015
मंगलवार, 21 अप्रैल 2015
सोमवार, 20 अप्रैल 2015
रविवार, 19 अप्रैल 2015
शनिवार, 18 अप्रैल 2015
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015
गुरुवार, 16 अप्रैल 2015
बुधवार, 15 अप्रैल 2015
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
सोमवार, 13 अप्रैल 2015
441 . अपने किये बिना क्या होता है ?
४४१
अपने किये बिना क्या होता है ?
अपने किये बिना भला कुछ होता है
अपने किये बिना साधना निष्फल होता है
अपने किये बिना दान नहीं होता है
अपने किये बिना सेवा नहीं होता है
अपने किये बिना झगड़ा नहीं होता है
अपने किये बिना जागरण नहीं होता है
अपने गए बिना स्वर्ग देखा नहीं जाता है
अपने साधना किये बिना मुक्ति नहीं मिलता है !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
अपने किये बिना क्या होता है ?
अपने किये बिना भला कुछ होता है
अपने किये बिना साधना निष्फल होता है
अपने किये बिना दान नहीं होता है
अपने किये बिना सेवा नहीं होता है
अपने किये बिना झगड़ा नहीं होता है
अपने किये बिना जागरण नहीं होता है
अपने गए बिना स्वर्ग देखा नहीं जाता है
अपने साधना किये बिना मुक्ति नहीं मिलता है !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
रविवार, 12 अप्रैल 2015
शनिवार, 11 अप्रैल 2015
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015
गुरुवार, 9 अप्रैल 2015
बुधवार, 8 अप्रैल 2015
मंगलवार, 7 अप्रैल 2015
434 . माँ काली तूँ जगत जननी
४३४
माँ काली तूँ जगत जननी
चरणों में ध्यान धराया कर
मन को मेरे शुद्ध कर
भक्ति भाव तूँ जगाया कर
अपने अभिव्यक्त इस चराचर से
मेरा स्नेह तूँ बढ़ाया कर
कण कण में तुझको देखूं
ऐसा विश्वास तूँ जगाया कर
नश्वर तन मन से माँ
अपनी सेवा तूँ कराया कर
आत्मा की अमर ज्योति में
अपना रूप तूँ दिखाया कर !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२४ - १२ - १९८६
माँ काली तूँ जगत जननी
चरणों में ध्यान धराया कर
मन को मेरे शुद्ध कर
भक्ति भाव तूँ जगाया कर
अपने अभिव्यक्त इस चराचर से
मेरा स्नेह तूँ बढ़ाया कर
कण कण में तुझको देखूं
ऐसा विश्वास तूँ जगाया कर
नश्वर तन मन से माँ
अपनी सेवा तूँ कराया कर
आत्मा की अमर ज्योति में
अपना रूप तूँ दिखाया कर !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२४ - १२ - १९८६
रविवार, 5 अप्रैल 2015
433 . दिल के चमन में
४३३
दिल के चमन में
जब पाँव तेरे पड़े थे
जर्रा - जर्रा था महक उठा
कली - कली थी खिल उठी
ना जाने कैसे
वफ़ा के मौसम में
बेवफाई के तूफान चले
दिल का चमन उजड़ा
दिल की जमीं
यादों की कब्रिस्तान बनी
यादों के भूत
ज्यादा शोर मचाते रातों में
आहें उठाते टीस जगाते
सोना होता नाकाम रातों में !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
१० - ११ - १९८६
दिल के चमन में
जब पाँव तेरे पड़े थे
जर्रा - जर्रा था महक उठा
कली - कली थी खिल उठी
ना जाने कैसे
वफ़ा के मौसम में
बेवफाई के तूफान चले
दिल का चमन उजड़ा
दिल की जमीं
यादों की कब्रिस्तान बनी
यादों के भूत
ज्यादा शोर मचाते रातों में
आहें उठाते टीस जगाते
सोना होता नाकाम रातों में !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
१० - ११ - १९८६
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015
गुरुवार, 2 अप्रैल 2015
430 . है मेरे भी दुनियां से अच्छी और भी दुनियाँ
गुस्ताखी माफ़
......................
४३०
है मेरे भी दुनियां से अच्छी और भी दुनियाँ
कहते हैं कि मेरी दुनियाँ का है अंदाजे ख्याल और !
या खुदा जो न समझे अब समझेंगे वो मुझको कब
दे और तक़दीर उनको जो न दे मुझको बदनसीबी और !
देखने के तुम्ही गमगीन नहीं हो सवेरा
कहते हैं बहुत ग़मख़ार हैं ज़माने में और !
कतरा - कतरा बर्फ का दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का बेदर्द होना है क्या दवा हो जाना
असर आह के लिए चाहिए एक उम्र लम्बी
कौन है यहाँ जीता फ़ना होने तक तेरी
मेरी मय्यत में शामिल न होंगे ऐसी तो बात नहीं
पर हम तो मिट जायेंगे और तुझे खबर तक न होगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
......................
४३०
है मेरे भी दुनियां से अच्छी और भी दुनियाँ
कहते हैं कि मेरी दुनियाँ का है अंदाजे ख्याल और !
या खुदा जो न समझे अब समझेंगे वो मुझको कब
दे और तक़दीर उनको जो न दे मुझको बदनसीबी और !
देखने के तुम्ही गमगीन नहीं हो सवेरा
कहते हैं बहुत ग़मख़ार हैं ज़माने में और !
कतरा - कतरा बर्फ का दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का बेदर्द होना है क्या दवा हो जाना
असर आह के लिए चाहिए एक उम्र लम्बी
कौन है यहाँ जीता फ़ना होने तक तेरी
मेरी मय्यत में शामिल न होंगे ऐसी तो बात नहीं
पर हम तो मिट जायेंगे और तुझे खबर तक न होगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
बुधवार, 1 अप्रैल 2015
429 .अवसर जब भी मिला
४२९
अवसर जब भी मिला
हमें सम्हलने का
हम बेवकूफ होते चले गए
हमने अपना भाग्य खो दिया
हम कभी इतने उठ नहीं पाये
पकड़ना था मूल तत्व को
हम निर्जीव मूर्ति पकडे रह गए
आशा यही की
देव सब दुरुस्त करेंगे
परिणाम आज सामने है
हमने तिब्बत खोया
आजाद कश्मीर बना डाला
सीमा बनाने की
खुद की ताकत को
हम जंग लगा बैठे
चालीस सालों में भी
हम अपना कानून नहीं बना पाये
कुछ बड़ी बेकार चीजें
हमने जरूर सीखी
औरों के पीछे चलना
और नक़ल करना
हमारी विकाश प्रक्रिया
कुंठित हो गयी है
हम बुद्धिमान श्रेणी के हैं ?
जो बार - बार
एक ही गलती को दुहराते हैं
भूल से भी
राह में पड़े पत्थर पे
गर जो कोई फूल फेंक दे
जन्म जन्मांतर तक
हम पूजा करते चले जाते हैं
मूर्तिपूजक इस हद तक
हमें होना नहीं चाहिए
कि फासला मंजिल का
बस हो एक कदम का
और हम तय न कर पाएं !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२९ - ११ - १९८६
अवसर जब भी मिला
हमें सम्हलने का
हम बेवकूफ होते चले गए
हमने अपना भाग्य खो दिया
हम कभी इतने उठ नहीं पाये
पकड़ना था मूल तत्व को
हम निर्जीव मूर्ति पकडे रह गए
आशा यही की
देव सब दुरुस्त करेंगे
परिणाम आज सामने है
हमने तिब्बत खोया
आजाद कश्मीर बना डाला
सीमा बनाने की
खुद की ताकत को
हम जंग लगा बैठे
चालीस सालों में भी
हम अपना कानून नहीं बना पाये
कुछ बड़ी बेकार चीजें
हमने जरूर सीखी
औरों के पीछे चलना
और नक़ल करना
हमारी विकाश प्रक्रिया
कुंठित हो गयी है
हम बुद्धिमान श्रेणी के हैं ?
जो बार - बार
एक ही गलती को दुहराते हैं
भूल से भी
राह में पड़े पत्थर पे
गर जो कोई फूल फेंक दे
जन्म जन्मांतर तक
हम पूजा करते चले जाते हैं
मूर्तिपूजक इस हद तक
हमें होना नहीं चाहिए
कि फासला मंजिल का
बस हो एक कदम का
और हम तय न कर पाएं !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२९ - ११ - १९८६
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