ADHURI KAVITA SMRITI
गुरुवार, 16 अप्रैल 2015
447 . विवेक शून्य मनुष्य
४४७
विवेक शून्य मनुष्य
हाय !
जी रहे हैं क्या खाय
पतन पथ पर दौड़ने में
तिल - तिल कर घुलने में
हे माँ !
मन विकृत करने में
बढ़ न पाये कभी मेरे पग
भोगूँ न कभी ऐसा अभिशाप !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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