ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 22 अप्रैल 2015
457 . मानव मन ले आया जगत में
४५७
मानव मन ले आया जगत में
बस मैल भरा इस तन मैं
पशुओं सा पेट भरा था मैं
लड़ा औरों से बच्चे किये उत्त्पन्न
व्यर्थ में गया यह जीवन मेरा
हाय निरर्थक मर गया यूँ ही मैं
अमूल्य मानत्व यूँ खो गया मैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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