ADHURI KAVITA SMRITI
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015
448 . माँ !
४४८
माँ !
कैसी तेरी जग की माया
जिसे अपनाया सबसे धोखा पाया
अच्छा ही हुआ माँ !
मैं मूरख
रेत के मैदान से
पानी का आश लगाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें