437 . सत्य तुम्ही में असत्य तुम्ही में
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सत्य तुम्ही में असत्य तुम्ही में
सत , रज , तम तुम्ही हो
हे मनुष्य ! सृष्टि के प्राण तुम्ही हो
जगत के हास्य तुम्ही करुण तुम्ही हो
रत्नगर्भा के महत्ती भार तुम्ही हो
सोये से जागो देखो अपना जीवन
सत चित के आधार तुम्ही हो
यदि अब भी पथ भटके तो
समझ लो प्रलय के कारक तुम्ही हो !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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