गुरुवार, 29 सितंबर 2016

600 . भगवती


                                      ६०० 
                                  भगवती 
जय जय भगवती जय जगदम्बे। तव पद मोर परम हित लम्बे।।
करतलकृत करवाल विशाले। नव शशि भूषित सुललित भाले।।
समर समित रिपु निकर कराले। चण्ड मुण्ड खण्डन जयमाले।।
भुजगविभूषित लोहित वसने। विकट दशन लम्बित वर रसने।।
सजल जलद इव पूरित तारे। वहसि कलित शत मणिमय हारे।।
सुकवि गणक इह गायति गीत। तब चरणे मानसमुपनीत।।
( श्रीकृष्ण जन्म रहस्य ) श्रीकान्तगणक 

बुधवार, 28 सितंबर 2016

599 . श्रीदुर्गा


                                      ५९९ 
                                   श्रीदुर्गा 
धरणिधर - वर शिखर - चारिणि दृप्त दानव - दल - विदारिणि ,
विधि विभावसु - वरुण - वासव - वंदितं ललिते। 
शर - शरासन - पाश - धारिणि सतत - संकुल - समर - कारिणि ,
मातरंगकुश - दलित - दुरित - प्रणत - परिकलितं।।
जय देवी दुर्गे दुर्गवासिनि सादर - स्मित - सुभग - हासिनि ,
भाल - बाल - मारल - निर्म्मल - चारु - चन्द्रकलं। 
सुधासार - सरो - विहारिणि चन्द्रिका - चयचारु - हारिणि ,
श्रवण मण्डल - लोल - कुण्डल - शोभि गण्ड - तले।।
असित- पंकज - गर्व - गञ्जन नील - लोहित - ह्रदय - रञजन ,
खञ्जन - दुति - चार - चञ्चल - लोचनपत्रितयं। 
मणि - मयूखावलि - विराजित कनक - नूपुर - राव - राजित ,
चरण - निर्जित -मधुप - रूप - युत - सरसिज - द्वितयं।।
कृत - भवानी - चरण - वन्दन सुकवि पण्डित - राजनन्दन ,
शंकरार्पित - गीत - तोषित - मानसे वरदं। 
पालया विनपाल - नायक - रूप - निर्ज्जित - पञ्चसायक ,
मानसिंह महीशमीश प्रणति परिचय दे।!
( मैथिल प्राचीन गीतावली )  

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

598 . गोसाउनि


                                        ५९८ 
                                    गोसाउनि 
जय जय निर्गुण - सगुण तनु धारिणि ! गगण - विहारिणि मा हे। 
कत - कत विधि हरिहर सुरपति गण सिरजि तोहें खाहे।।
निगुण कहव कत सगुण सुनिअ जत ततमत कए रहु वेदे। 
थाकि थाकि बैसल छथि झखइत , नहि पाबथि परिछेदे।।
तोहरहि सं सभ तन , तोहरहि सं तन्त्र मन्त्र कत लाखे। 
केओ नारि तन , केओ पुरुष तन अपन अपन कए भाखे।।
सुदृढ़ भक्ति रसवश तुअ अनुपम ई बूझिअ परमाने। 
भुक्ति मुक्ति वर दिअऔ गोसांउनि ! कवि वागीश्वर भाने। 
( मैथिल भक्त प्रकाश ) बागीश्वर 

सोमवार, 26 सितंबर 2016

597 .श्रीशंकरि


                                     ५९७ 
                                 श्रीशंकरि 
जय जय शंकरि। सहज शुभंकरि। समर भयंकरि श्यामा।
बाउरि वेश केश शिर फूजल शववाहिनि हर वामा।।
वसन विहीन छीन छवि लहलह रसन दशन विकराला। 
कटि किंकणि शव - कुण्डल मण्डित उर पर मुण्डक माला।
श्रुक बह लिधुर धार धरणी धर धरणीधर सम बाढ़ी। 
खलखल हास पास दुइ जोगिनि वाम दहिन भए ठाढ़ी।।
कट कट कए कत असुर संहारल काटि काटि कैल ढ़ेरी। 
घट घट लिधुर धार कत पिउलि मगमातलि फेरि फेरि।।
विकट स्वरुप काल देखि कांपथि की पुनि असुर बेचारे। 
तुअ पद प्रेम नम जेहि अन्तर ताहि अमिअ रस सारे।।
जीवदत्त भन शिव सनकादिक सभक शरण एक तोही। 
निर अवलम्ब जानि करुणामयि ! करिअ कृतारथ मोही।।
( मैथिलि गीत रत्नावली ) जीवदत्त    

596 .कलश स्थापना विधि / नवरात्रि पूजन विधि


                                     ५९६ 
कलश स्थापना विधि / नवरात्रि पूजन विधि 
 घट स्थापना शुभ मुहूर्त  : 01 अक्टूबर 2016 सुबह 06:32 से 07:39 के बीच 
 सुबह 09:30 से 11:00 बजे तक राहुकाल को पूरी तरह टालना है। 
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।  प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
कलश / घट स्थापना विधि :

देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
सामग्री:
जौ बोने के लिए 
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी 
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात 'कलश' सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है । वह मङ्गलकार्योंमें मङ्गलकारी होता है )
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल 
मोली (Sacred Thread)
इत्र 
साबुत सुपारी पाँच 
पान के पाँच पत्ते 
दूर्वा
कलश में रखने के लिए पाँच  सिक्के 
पंचरत्न 
अशोक या आम के 5 पत्ते वाली डंठल  
कलश ढकने के लिए ढक्कन 
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल 
पान के पाँच पत्ते 
पानी वाला नारियल 
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा 
कलश को लपेटने के लिए लाल कपड़ा 
फूल माला 

विधि 
 मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। उसमे इतना ही पानी डालें की मिटटी / रेत  भींग जाये ! अब कलश को लाल कपड़े से लपेट कर  कंठ पर मोली बाँध दें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत पाँच  सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र दाल दें। यदि संभव हो तो  कलश में पंचरत्न डालें। कलश में पाँच  सिक्के रख दें। कलश में  आम के पांच पत्ते वाले डंठल  रख दें। अब कलश के  मुख पर  ढक्कन रख  दें। ढक्कन में चावल भर दें। उसपर पान के पांच पत्ते ऐसे रखें की उसका डंठल साधक की ओर रहे ! श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए। 
अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए 'ॐ वरुणाय नमः' मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें। यदि आम का पल्लव न हो, तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रखने का विधान है। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। 
फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्‍चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें। कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अखंड ज्योति जलाई जाती है। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। फिर क्रमशः श्री गणेशजी की पूजा, फिर वरुण देव, विष्णुजी की पूजा करें। शिव, सूर्य, चंद्रादि नवग्रह की पूजा भी करें।
इसके बाद पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा / रही हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करो। पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ' ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ' से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो, उसी से आराधना करें। संभव हो शृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
सर्वप्रथम मां का ध्यान, आवाहन, आसन, अर्घ्य, स्नान, उपवस्त्र, वस्त्र, शृंगार का सामान, सिंदूर, हल्दी, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मिष्ठान, कोई भी ऋतुफल, नारियल आदि जो भी सुलभ हो उसे अर्पित करें। पूजन के पश्चात् श्रद्धापूर्वक सपरिवार आरती करें और अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।
ध्यान रखें: कलश सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का होना चाहिए। लोहे या स्टील का कलश पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
 अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें। 
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। यदि दुर्गा सप्तशती का तेरह अध्याय पाठ नित्य संभव न हो तो इस क्रम में पाठ करें - प्रथम दिन एक , दूसरे दिन दो , तीसरे दिन एक , चौथे दिन चार , पांचवें दिन दो , छठे दिन एक और सातवें दिन दो अध्यायों के क्रम में पाठ पूरा कर लें !  हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे "चावल" रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा "सप्तधान्य" रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है
माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है
नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र / अत्तर विशेष प्रिय है।
नवरात्री के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्र मैं पान मैं गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें
मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है।
प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करे अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें। 
यदि कोई व्यक्ति नवरात्र पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ है तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप अवश्य पूजा करनी चाहिए।  प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।
प्रतिदिन कुछ मन्त्रों का पाठ भी करना चाहिए।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः           
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

रविवार, 25 सितंबर 2016

595 .श्रीश्यामा


                                     ५९५ 
                                 श्रीश्यामा 
जै जै जै महिषासुर मर्दिनि जगत विदित तुअ श्यामा। 
सुर मुनि आदि ध्यान नहि पाबथि अहर्निश जप तुअ नामा।।
विकसित वदन चिकुर चामर जनि चान तिलक शोभे माथा। 
मुण्डमाल बघछाल सम्हारिअ योगिनगण लिये साधा।।
अरिदारिणी सुर पालनि भगवति सिंह पीठ असवारा। 
विविध रूप जग दुरित निवारिणि कारिनि असुर संहारा।।
तीनि भुवन अनुपालिनि भगवति कमलनैन लखु ग्याने। 
छेमिअ छेमिअ शंकर अवगुण देहु चरण उर ध्याने।।
                                                                ( मैथिल भक्त प्रकाश )  

शनिवार, 24 सितंबर 2016

594 . श्रीतारा


                                 ५९४ 
                              श्रीतारा 
गिरिनन्दिनी शुभ दीन हरखि मिथिलापुर आई। 
चन्द्र कोटि छवि विमल वसन लखि आनन्द उर न समाई। 
नयन चकोर सरद विधुमण्डल एकटक रह्यो लगाई। 
मोहित मधुकैटभ मद भंजनि सुरगण शक्ति समूले। 
महिष महारव सबल विपद लखि सुमन सुवरखहिं फूले ।।
शोभाधाम कामना सुरतरु जनमन दायिनि चैन। 
मणिमय अज़रि कनक गिरि वासिनि नाशिनि धूमर नैन।।
चण्डमुण्ड सिर खण्डिनि भगवति रक्तबीज संघारि। 
शुम्भ निशुम्भ दनुज कुल नासिनि सिंहक पीठ सवारि।।
सुर गन्धर्व दनुज गण किन्नर कर गोचर कर जोरि।।
पाय अभयवर दहिन हाथ तुअ अति हर्षित चित मोरि।। 
तारा पद सरोज शरणागत सेवक संकर गाई। 
नित अभिनव मंगल मिथिलापुर घर - घर बाजत बधाई।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) शंकर 

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

593 . आदिशक्ति


                                     ५९३ 
                               आदिशक्ति 
जय जय आदि शक्ति शुभदायिनि। महिधर शायिनि देवी। 
सुर नर मुनि गण सकल सुखित मन केवल तुअ पद सेवी।।
हमहु शरण धय चरण अराधल तोहि करुणामय जानी। 
तइओ रहल दुःख सपनहुँ नहि सुख तकर परम होअ हानी।।
हम सम अधम जगत नहि दोसर जप तप गति नहि जानी। 
अब हम मगन भेलहुँ भवसागर गति एक तोहीं भवानी।।
जत अपराध कएल भरि जीवन कहि न सकिअ तत माता। 
सुत शरणागत सेवक पामर सभक जननि तोँ त्राता।।
दुहु कलजोड़ि अरज अवनत भए शम्भुदत्त  कवि भाने। 
त्रिभुवनतारिणि अधम - उधारिणि ! देहु अभय वरदाने।।
(  मैथिली गीत रत्नावली ) शम्भुदत्त 

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

592 . गोसाउनि


                                   ५९२ 
                                गोसाउनि 
तोहीँ धरनी तोहीँ करनी , तोहीँ जगतक मात।। हे माई।।
दश मास माता उदर में राखल , दश मास दूध पियाब। 
निरंकार निरंजनि लक्ष्मीश्वरि , भवधरनि तोँ कहाव।।
सुरमाक रथ चढ़ि तोहीं बैसलि दुर्गा नाम धराव। 
पण्डित केर तोँ पोथी जांचह , सरस्वति नाम सुनाव।।
गाइनि मुख में गान भए पैसलि , सुस्वर गीत सुहाव। 
मंगनीराम चरण पर लोटथि , भक्ति मुक्ति वर पाव।।
( हिस्ट्री ऑफ़ मैथिली लिटरेचर ) मंगनीराम 

बुधवार, 21 सितंबर 2016

591 .भगवती गीत


                               ५९1 
                        भगवती गीत 

शंकरि शरण धयल हम तोर। 
कुकुरम देखि अधिक यदि कोपित की करता यम मोर। 
सुर तरुअर तर शिव उर ऊपर वास हास् अति घोर। 
सहस दिवसमणि चान कोटि जनि तनु दुति करत इजोर।।
सहज खर्च अति गर्वक मातलि लम्बोदरि जगदम्बे।
मनुज नागवर सकल सुरासुर सबकां तोहिं अवलम्बे।।
बाम हाथ माथ अति कोमल दहिन खर्ग कर काती।
पाँच कपाल भाल अति राजित श्री इन्दीवर कांती।।
शिव शव आसिनि संग योगिनि गण पहिरन वाघरि छाला।
रक्त रक्त लहलह कर रसना नवयौवन मुण्डमाला।
फणी नेउर केउर फणी कंकण हृदयहार फणी राजे।
सहरसना फणी फणी - युग कुण्डल जटामुकुट फणी छाजे।।
चउदिस फेकव शव मुंडावलि चिता अग्नि सन गेहे।
तीन नयन मणिमय सब भूषण नव जलधर सम देहे।।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक नर मुनि धरत धेयाने।
त्रिभुवन तारिणि नरक निवारिणि ! सुमति कृष्णपति भाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) कृष्णपति

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

590 .श्रीशिवंकरि


                                     ५९० 
                               श्रीशिवंकरि 
जय जय जय नत सतत शिवंकरि परिहित नर सिर माले । 
लम्बित रसन दसन अति भीषम वसन मिलल बघछाले।।
चउदिस मानुस माँसु मुदित अति फेरु फुकर कर रासे। 
मणिमय विविध विभूषण मंडित वेदि विदित तुअ वासे।।
भूत पपरेत पिशाच निशाचर अगनित जोगिनि जाले। 
जखने न जगत - जननि तुअ संगति तहँ न कहिअ कोन काले।।
विमल बाल रविमण्डल सन तुअ तीन नयन परगासे। 
असुर रुहिर मदिरा मद मातलि वदन अमिञ सम हासे।।
तुअ अनुरूप सरूप बूझिअ नहि तैओ तोहर गुन गाऊं । 
जे कहि तुअ पद बन्ध करिञ देवि निञ जनें लोचन लाऊ।।
लोचन 

सोमवार, 19 सितंबर 2016

589 .श्रीकंकाली


                                       ५८९
                                  श्रीकंकाली 
वदन भयान कान शव कुण्डल विकट दशन धन पांती। 
फूजल केश वेश तुअ के कह जनि नव जलधर कांती।।
काटल माथ हाथ अति शोभित तीक्ष्ण खडग कर लाई। 
भय निर्भय वर दहिन हाथ लए रहिअ दिगम्बरि माई।।
पीन पयोधर ऊपर राजित लिधुर संवित मुण्डहारा। 
कटि किंकिणि शव - कर करू मण्डित सिक वह शोणित धारा।।
वसिय मसान ध्यान शव ऊपर योगिनि गण रहू साथे। 
नरपति पति राखिअ जगईश्वरि करू महिनाथ सनाथे।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) महाराज महिनाथ ठाकुर 

रविवार, 18 सितंबर 2016

588 .श्रीगंगा ६


                                         ५८८ 
                                  श्रीगंगा ६ 
हे गंगे न गुमल भल मन्द यौवन दापे। गुपुत वेकत अरजल कत पापे ।।
कत कत पाप कयल हम रोसे। अधम उधारिनी तोहर भरोसे।।
निरधन धन जक राखल गोये। तुअ पय परसल हनल सब धोये। 
दिअ दरसन मन आतुर मोरा। करिय कृतारथ लोचन जोरा।।
कर जोड़ि विनति महेश निवेदे। मरण शरण दिअ अन्त परिछेदे।।
                                                                                  ( तत्रैव )

शनिवार, 17 सितंबर 2016

587 .श्रीगंगा ५


                                     ५८७ 
                                श्रीगंगा ५ 
गंगे अयलहुँ तोहर समाज।  आब की करत यमराज।। 
गंगे दूर सौ देखल गंगा। गंगा पाप न रहले आगंग।।
गंगे तिल कुश जल लेल हाथ।  गंगे तहिखन यमधुन माथ।।
गंगे भनथि महेश सुजान। गंगे कलियुग गति नहि आन।!
                               ( मिथिला तत्व विमर्श )

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

586 .श्रीगंगा ४


                                    ५८६ 
                               श्रीगंगा ४ 
उधारिअ अधम जन जानि। 
हम बनिजार पाप बटमार। सुकृत बेसाहल सुरसरि धार। 
जेहिखन देखल धवल जलधार। जीवन जनम सुफल संसार। 
सीकर - निकर - परस यदि भेले। मन अनुताप पाप दूरि गेल।।
जे मम उधारल से मोर आधे। कहु मोर सुरसरि किय अपराधें।।
भनथि महेश नमित कय शीस। तोहैं करुणामयि हमें निरदोस।।
                                                                     ( प्राचीन गीत )

गुरुवार, 15 सितंबर 2016

585 . श्रीतारा


                                                  ५८५ 
                                   श्रीतारा 
जय जय जय भय भन्जिनि भगवति आदि शक्ति तुअ माया । 
जनि नव सजल जलद तुअ तनुरुची पदरूचि पंकज छाया।।
मुण्डमाल वघछाल छुरित छवि लम्बित उदर उदारा। 
असि कुबलय कर कांती खप्पर सर्व रूप अवतारा।।
विकट जटा तन चान तिलक लस भूषण भीषम नागे। 
खल खल हास आकाश निवासिनि मुद्रा मंडित मार्ग।।
तरुण अरुण सम विषम विलोचन पीन पयोधर भारे। 
रकत रकत रसना लह लह कर रदन वदन विकराले।।
भनथि महेश कलेश निवारिणि त्रिभुवन तारिणि माता। 
शव वाहिनि देवी रहू की करत कोपि विधाता।।
       ( मैथिल भक्त प्रकाश ) महाराज महेश ठाकुर 

बुधवार, 14 सितंबर 2016

584 . श्रीदुर्गा


                                                  ५८४
                                   श्रीदुर्गा 
जय जय दुर्गे दुर्गति हारिनि , सब सिद्धिकारिनी देवी। 
भुगुति मुकुति दुहु बिनु पाविअ तुअ पद पंकज सेवी।।
विष्णु विरचि विभावसु वासव शिव तुअ धरए धेयाने। 
आदि - सकति भव भाविनि केओ न अन्त तुअ जाने।।
तनु अति सुन्दर मरकत मनि जनि तीनि नयन भुज चारी। 
शंख चक्र - शर कर तनु धारिनि शशिशेखर अनुसारी।।
मणिमय कुण्डल हार मनोहर नूपुर घन घन बाजे। 
किकिन रन रन सुललित कंकण भूषण विविध विराजे।।
पञ्चानन - वाहिनि दाहिनि होइ सुमरि महेश - विमोही। 
सदानन्द कह चरण - युगल तुअ सरन कएल जग जोही।।
                                                   ( प्राचीन गीत ) सदानन्द  

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

583 . श्रीजयमंगला


                                                 ५८३ 
                                श्रीजयमंगला 
जयमंगला जयमंगला। होह परसनि देवि तोरितबला।।
मधुकैटभ महिषासुर अतिबल धूम्रलोचन खयकारी।
शुम्भ निशुम्भ देव - कंटक रन खनहि महाबल देल बिदारी।।
जइसे सुरगण देलह अभयवर सकल असुरगन मारी।
तइसे आस पुरह जगमाता रिपुगण हलहु सँभारौ।।
जे अभिमत कए जे नर चिन्तए से नर से फल पाबे। 
सर्व काज सिंध करह भवानी कवि चतुरानन गावे।।
                                                        ( प्राचीन गीत ) चतुरानन  

सोमवार, 12 सितंबर 2016

582 . श्रीचण्डी


                                                    ५८२
                                               श्रीचण्डी 
नमों नमों चण्डी चरणयुग तोर। तोरित दुरित हर दिहै अभय वर।
कट कट दसन रसन लह - लह कर। खड़गे खण्डी चण्डी रुहिर खपर भर।
हेर जोह खोह करि धरए तुरए सुरि। मुह मेलए रुहि घट घट घोट करि। 
लखनचन्द राय करए तुअ भगवति। देहे अभय वर निज पदयुग रति। 
                                                              ( प्राचीन गीत ) लखनचन्द  

रविवार, 11 सितंबर 2016

581 .श्री विश्वेश्वरी


                                                ५८१   
                                        श्री विश्वेश्वरी 
जय जय अम्बा  विश्वेश्वरी।  किछु ने फुरै जे करि।।
मोर माथे धरि दिअ हाथे। 
चललहू सुरसरि , घनघाम परिहरि , तोहर अभयवर साथे।।
पुरती हमरि आशा , शिव जटाजूटवासा , अनुकुलदेवी जत देवा। 
इहो तन परित्यागी , होयब सुमति भागी , शिवक जन्म भरि सेवा।।
परजा रंजन मन , हरपति सब खन , हसाय खेलाय कर लेथि। 
अतिथिक सतकार , इष्ट पूजा उपचार , सुविचार धन नित देथि।।
जननी समान आन , नारीगण मनमान , कविवर विद्यापति भाने। 
जे मोर बान्धव लोक , मन नै करथु शोक , कालगति अछि परमाने।।
                                                                                        ( तत्रैव )

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

580 . ५८० श्रीगंगा ३


५८० श्रीगंगा ३ 
सुनिय डमरू धुनि , शिव पुनि पुनि , आब एत करू विसराम। 
पूजा उपचार लिय , सत्वर गंगाकेँ दिय , कहि देव हमरो प्रणाम।।
करतिहि कृपा गंगा , सकल कलुख भंगा , आब जीव परसन भेल। 
एतै ओतीह सुरधुनि , अपन किंगकर गुनि , सब पातक दुर गेल।।
थाकि गेलि जनी जाति , बेटा बेटी पोता नाति , कामति कहार संग साथी।।
मोर हेतु आउ एत , धन्यवाद लोक देत , सभ जन हरषि नहाथि।।
भन कवि विद्यापति , दिअ देवि दिव्यगति , पशुपतिपुर पहुँचाय। 
गौरी संग देखि शिव , कि सुख पाओल जिव , से आव न कहल जाय।।
                                                                  ( मिथिला तत्व विमर्श )

579 . श्रीगंगा २


५७९  श्रीगंगा २
सुरसरि सेवि मोरा किछुओ ने भेला। पुनमति गंगा भगीरथ लय गेला।। 
जखन महादेव गंगा कएल दाने। सुन भेल जटा औ मलिन भेल चाने।।
उठबह बनियां तों हाट बजारे। एहि पथ आओत सुरसरि धारे।।
छोट मोट भगीरथ छितनी कपारे। से कोना लओताह सुरसरि धारे।।
विद्यापति भन विमल तरंगे। अन्त सरन देव पुनमति गंगे।।