97.
बेदर्द बेरहम ज़माने में
अपना कोई सहारा नहीं
गम को बना लिया साथी अपना
जिन्दगी के सफ़र में
इसके सिवा कोई चारा नहीं
बहारों से भरी इस दुनियाँ में
उजड़े सभी दिल हैं
फूलों के इन बागों में
काँटे ही ज्यादा बिखरे हैं
दिल की आग बुझाने में
आँसू भी बहुत बर्बाद किये
हँसने की हर कोशिश में
होंठ भी नाकाम रहे
हर सूरज निकलता है
मुसीबतों का पैगाम लेकर
रातें गुजारनी होती है
जख्मों को गिन - गिन कर
ये कैसा दस्तूर है
इस दुनियाँ का
अमृत भी बनता
क्षण में विष का प्याला
आँखों में
आंसुओं के बदले
छलकते हैं
खून की बूँदें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 19-05-1983 समस्तीपुर
बेदर्द बेरहम ज़माने में
अपना कोई सहारा नहीं
गम को बना लिया साथी अपना
जिन्दगी के सफ़र में
इसके सिवा कोई चारा नहीं
बहारों से भरी इस दुनियाँ में
उजड़े सभी दिल हैं
फूलों के इन बागों में
काँटे ही ज्यादा बिखरे हैं
दिल की आग बुझाने में
आँसू भी बहुत बर्बाद किये
हँसने की हर कोशिश में
होंठ भी नाकाम रहे
हर सूरज निकलता है
मुसीबतों का पैगाम लेकर
रातें गुजारनी होती है
जख्मों को गिन - गिन कर
ये कैसा दस्तूर है
इस दुनियाँ का
अमृत भी बनता
क्षण में विष का प्याला
आँखों में
आंसुओं के बदले
छलकते हैं
खून की बूँदें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 19-05-1983 समस्तीपुर
4 टिप्पणियां:
मंगलवार 18/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
सुंदर ।
बहुत हि बढ़िया सुधीर भाई , धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे ब्लॉग पर
नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }
, हर सूरज निकलता है
मुसीबतों का पैगाम लेकर
रातें गुजारनी होती है
जख्मों को गिन - गिन कर
सुन्दर कृति ,सदियों से यह दस्तूर चल रहा है ,चलता भी रहेगा किसी शायर ने कहा भी है
कहाँ जीने देता है ये बेमुरब्बत ज़माना हम जी रहे है अपना जनाजा अपने कन्धों पर रख कर
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