ADHURI KAVITA SMRITI
शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014
306 .हर शाम की एक सुबह होती है
३०६ .
हर शाम की एक सुबह होती है
हर नदी की एक लहर होती है
तकदीर खोटी हो गर किसी इंसान की
उसकी नहीं कोई नयी डगर होती है |
सुधीर कुमार ' सवेरा '
०३ - ०७ - १९८४ kolkata ४ ०० pm
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