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वज्र ह्रदय मोम हो उठा
दिल पर जैसे ही
प्रेम का रंग चढ़ा
मंजरियाँ किलक उठी
कोयल टेर गयी
स्वर कोई पहचाना
बन अनजाना अनचिन्हा
दूर मुझसे होती चली गयी
पेशानी पे मेरे
शिकन आयी और चली गयी
दिशाएं दिनमान रहित
पथ वन चौराहे
बन पगडण्डी
कह गए बात बेमानी
बहुत रोका
लाना ही नहीं चाहा
आखिर तुम लुढ़का ही गयी
बन आँखों का पानी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०४ - १९८४ २ - १७ pm
वज्र ह्रदय मोम हो उठा
दिल पर जैसे ही
प्रेम का रंग चढ़ा
मंजरियाँ किलक उठी
कोयल टेर गयी
स्वर कोई पहचाना
बन अनजाना अनचिन्हा
दूर मुझसे होती चली गयी
पेशानी पे मेरे
शिकन आयी और चली गयी
दिशाएं दिनमान रहित
पथ वन चौराहे
बन पगडण्डी
कह गए बात बेमानी
बहुत रोका
लाना ही नहीं चाहा
आखिर तुम लुढ़का ही गयी
बन आँखों का पानी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०४ - १९८४ २ - १७ pm
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