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जो रही सदा एक अनबुझ पहेली
कोई और नहीं नाम है उसका जिंदगी
कुछ घर और कुछ वन में
कुछ गिरी और कुछ रेत में
मिटती नहीं निशान जिसकी
नाम उसका है जिंदगी
जिंदगी अनोखा बाग है
जो महकती है कर्मधार से
जिंदगी एक आग है
जो जलती है प्रेम पाश से
जिंदगी एक मेल है
जो मिलता है नभ और धरती से
जिंदगी एक खेल है
जो जीता जाता हार से
जिंदगी एक फूल
जो खिलता कुछ खोने से
जिंदगी एक गीत है
जो बजता तारों के टूटने से
जिंदगी एक बाग है
जो गुलजार सदा सुख दुःख के शबनम से
लिखी गयी जो
मिलन विरह के छंदों से
किसी का भाग्य
किसी का दुर्भाग्य जिंदगी
बिखर गयी मिलन की राह में
सजी सिमटी किसी की जिंदगी
जिंदगी नहीं मंजिल
यह एक राह है
झरने का निरंतर प्रवाह है
बुल बुला बन कर विलीन हो जाना
जिंदगी का एक खेल है
जिंदगी किसी के पपीहे की प्यास है
उसकी आह नहीं है
उसे तो प्रेम रूपी स्वाति की चाह है
जिंदगी एक हिमखंड
बाहर से जिसमे शीतलता
भीतर में दाह है
प्यार की राह में
बदनाम मेरी जिंदगी
चढ़ गयी जिसके हॉट में
हुई नीलाम मेरी जिंदगी
जिंदगी मौत की डगर है
जिंदगी नदी में एक नगर है
जिंदगी जुआ का दान नहीं
पासे का उलट पलट है
जिंदगी निर्दोष नजरों में
एक गहरा जख्म है
प्यार की नगरी में
जिंदगी उजड़ी एक नाव है
पत्थर के मूर्ती पर
है बलिदान किसी की जिंदगी
जो मरा प्यास से
नाम है वो जिंदगी
जो लुटे अरमान किसी का
नाम है वो जिंदगी
किसी को ठोकर लगाये
किसी के चरण पूजाये
नाम है वो जिंदगी
खिलने से पहले जो मुरझाये
हंसने से पहले जो रुलाये
नाम है वो जिंदगी
हो घोर अँधेरा
फैलादे सर्वत्र उजाला
नाम है वो जिंदगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०४ - १९८४ / ३ - ०२ pm
जो रही सदा एक अनबुझ पहेली
कोई और नहीं नाम है उसका जिंदगी
कुछ घर और कुछ वन में
कुछ गिरी और कुछ रेत में
मिटती नहीं निशान जिसकी
नाम उसका है जिंदगी
जिंदगी अनोखा बाग है
जो महकती है कर्मधार से
जिंदगी एक आग है
जो जलती है प्रेम पाश से
जिंदगी एक मेल है
जो मिलता है नभ और धरती से
जिंदगी एक खेल है
जो जीता जाता हार से
जिंदगी एक फूल
जो खिलता कुछ खोने से
जिंदगी एक गीत है
जो बजता तारों के टूटने से
जिंदगी एक बाग है
जो गुलजार सदा सुख दुःख के शबनम से
लिखी गयी जो
मिलन विरह के छंदों से
किसी का भाग्य
किसी का दुर्भाग्य जिंदगी
बिखर गयी मिलन की राह में
सजी सिमटी किसी की जिंदगी
जिंदगी नहीं मंजिल
यह एक राह है
झरने का निरंतर प्रवाह है
बुल बुला बन कर विलीन हो जाना
जिंदगी का एक खेल है
जिंदगी किसी के पपीहे की प्यास है
उसकी आह नहीं है
उसे तो प्रेम रूपी स्वाति की चाह है
जिंदगी एक हिमखंड
बाहर से जिसमे शीतलता
भीतर में दाह है
प्यार की राह में
बदनाम मेरी जिंदगी
चढ़ गयी जिसके हॉट में
हुई नीलाम मेरी जिंदगी
जिंदगी मौत की डगर है
जिंदगी नदी में एक नगर है
जिंदगी जुआ का दान नहीं
पासे का उलट पलट है
जिंदगी निर्दोष नजरों में
एक गहरा जख्म है
प्यार की नगरी में
जिंदगी उजड़ी एक नाव है
पत्थर के मूर्ती पर
है बलिदान किसी की जिंदगी
जो मरा प्यास से
नाम है वो जिंदगी
जो लुटे अरमान किसी का
नाम है वो जिंदगी
किसी को ठोकर लगाये
किसी के चरण पूजाये
नाम है वो जिंदगी
खिलने से पहले जो मुरझाये
हंसने से पहले जो रुलाये
नाम है वो जिंदगी
हो घोर अँधेरा
फैलादे सर्वत्र उजाला
नाम है वो जिंदगी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०४ - १९८४ / ३ - ०२ pm
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