ADHURI KAVITA SMRITI
सोमवार, 13 अक्टूबर 2014
314 . आशियाँ तुम
३१४ .
आशियाँ तुम
अपना बनाकर
लुत्फ जब
जिंदगी का
उठाने लगे
दिन दो चार भी
अभी गुजरे न थे
खुद अपने वादों से
शर्माने लगे
यादों के मेरे
दफनाने लगे
हर ऑर से
मुझे ही वो
भुलाने लगे |
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ११ - ०४ - १९८४ १०-३० am
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