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सत्य मे लिपटकर
चकनाचूर हो जाओगे
असत्य की सांस लेकर
सत्य को
भला कहाँ पाओगे
दायरा अपना
तूने बना लिया है
संकीर्ण इतना
हर कदम उठने पर
ठोकर ही तो खाओगे
छोड़कर मुझको
तुम भूल गये
कहाँ - कहाँ
न ढूंढा
कहीं न मिले
बैठ कर खुद
तस्वीर जो अपनी
लगा देखने
आईने पन्ने
दरो दीवार
वही मौसम वही बहार
तुम कहाँ - कहाँ न थे |
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १४ - ०८ - १९८४
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