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युगों युगों शताब्दियों से
न खत्म होने वाले कालांतरों से
साँसों का वो कतरा
शायद भावनाओं मे बहकर
या लम्हों को
अपना समझ कर तुने अंक मे
जॉ अपने भर लिये
समुद्र ने अपनी गंभीरता
जब खो दी थी
जुदा था तभी
हम दोनों का
शब्द विहीन सम्बन्ध
अनकहा अनसुना अनचाहा नहीं
दो चाहा
शब्दों की व्याख्या से अलग
अपना है वो सम्बन्ध |
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०९ - ०४ - १९८४
३ - ४५ pm
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