३१५.
जब भी
आया कोई
तेरे विचारों के आगोश मे
जोड़कर तुझ से
अपनापन का रिश्ता
चाहा लेना
जैसे ही
प्रेम का तुझ से मीठा पानी
सब तुझ से दुर चले गए
जान गए जब
तू है समुद्र का खारा पानी
हर बर
खुद की तेरी पहचान
खुद को न अपना सकी कभी
कड़वा कषैला
तेरा ओछापन
तेरी उपरी मिठास
कभी न
तेरी उपरी पहचान ढाँप पायी |
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ११ - ०४ - १९८४
७ - ३५ pm
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें