३२४
पाँव तेरे पंक में
मुख पे म्लान है
तुम दोस्त नहीं
जो नसीहत दे सकता
तुम अनुज नहीं
जो आज्ञा दे सकता
कुछ ऊपर हो इससे
दिल तेरा जलता है
फफोले मेरे फूटते हैं
अरमान तेरे उजड़ते हैं
आशियाँ मेरे वीरान होते हैं
ओठों से तेरे मुस्कान छीन गयी
उदास हैं नजरे मेरी
जिंदगी तूने जीना न जाना
खुद पे जो हँसना न आया
मैं भी गुजरा हूँ
किसी अँधेरे दल - दल से
क्या हुआ जो कोई अपना न हुआ
पराये इस संसार में
जब लहू भी अपना न हुआ
सोंच कर वृथा में
जान क्यों अपना दें
सूर्य ने कब अँधेरा किया
चाँद ने कब सुबह दिया
जिंदगी भी अपनी मांगी न थी
दिल में कोई हसरत न थी
सुबह हो शाम हो
जिंदगी यूँ ही तमाम हो !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २० - ०४ - १९८४
कोलकाता ११ - १० am
पाँव तेरे पंक में
मुख पे म्लान है
तुम दोस्त नहीं
जो नसीहत दे सकता
तुम अनुज नहीं
जो आज्ञा दे सकता
कुछ ऊपर हो इससे
दिल तेरा जलता है
फफोले मेरे फूटते हैं
अरमान तेरे उजड़ते हैं
आशियाँ मेरे वीरान होते हैं
ओठों से तेरे मुस्कान छीन गयी
उदास हैं नजरे मेरी
जिंदगी तूने जीना न जाना
खुद पे जो हँसना न आया
मैं भी गुजरा हूँ
किसी अँधेरे दल - दल से
क्या हुआ जो कोई अपना न हुआ
पराये इस संसार में
जब लहू भी अपना न हुआ
सोंच कर वृथा में
जान क्यों अपना दें
सूर्य ने कब अँधेरा किया
चाँद ने कब सुबह दिया
जिंदगी भी अपनी मांगी न थी
दिल में कोई हसरत न थी
सुबह हो शाम हो
जिंदगी यूँ ही तमाम हो !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २० - ०४ - १९८४
कोलकाता ११ - १० am
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