३३६
तुम संतुष्टि
अंदर में चाहते हो
और बाह्य दृष्टि से
अपने को
अलग नहीं कर पाते
हमारा मूल
जिसकी हमें तलाश है
हम सर पीटते हैं
और भटकते हैं
भौतिकता से
हम खुद को
अलग नहीं कर पाते
परिणाम
अन्तः जिसे चाहा न था
पाकर भी वो रोयेगा
और आध्यात्मिकता
जो जीवन की दवा है
दूर उससे भागते हैं
फिर कैसे भला
हम आशा करें
कष्ट हमारे दूर होंगे
हर पल
एक नया जख्म
ले लेते हैं
पुराने जख्मो के
भरने के प्रयास में
खुद को खुद से
दूर कर लेते हैं
खुद के पास आने में
जिनसे मानवता कराहती है
समाज में जो दुःशासन हैं
उन्हें ही हम
जिरहबख्तर मुहैया कर
मजबूत बना रहे हैं
इस तरह शैतान को
दिनों दिन बलशाली बनाकर
उसकी पूजा कर रहे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०८ - ०५ - १९८४
४ - ०० pm
तुम संतुष्टि
अंदर में चाहते हो
और बाह्य दृष्टि से
अपने को
अलग नहीं कर पाते
हमारा मूल
जिसकी हमें तलाश है
हम सर पीटते हैं
और भटकते हैं
भौतिकता से
हम खुद को
अलग नहीं कर पाते
परिणाम
अन्तः जिसे चाहा न था
पाकर भी वो रोयेगा
और आध्यात्मिकता
जो जीवन की दवा है
दूर उससे भागते हैं
फिर कैसे भला
हम आशा करें
कष्ट हमारे दूर होंगे
हर पल
एक नया जख्म
ले लेते हैं
पुराने जख्मो के
भरने के प्रयास में
खुद को खुद से
दूर कर लेते हैं
खुद के पास आने में
जिनसे मानवता कराहती है
समाज में जो दुःशासन हैं
उन्हें ही हम
जिरहबख्तर मुहैया कर
मजबूत बना रहे हैं
इस तरह शैतान को
दिनों दिन बलशाली बनाकर
उसकी पूजा कर रहे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०८ - ०५ - १९८४
४ - ०० pm
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