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तुम और तुम्हारा समाज
ग्रसित है अमानवीय रोगों से
तुम्हारे मनीषी
जो उपचार बतलाते हैं
वो रोग की भयंकरता
बढाती है
आग के शांति का उपाय
घी नहीं होता
शांति के हेतु
अशांति कभी साधन नहीं हो सकता
पर हम अपनी
बुद्धि को
कुंठित कर
हर बार
एक नया विष
पैदा कर
उसे ही अमृत कह
ऊँचे कीमतों में बेचते हैं
कोई और नहीं
हमारे रोने का कारण
हम खुद हैं
वर्तमान में
मानव
बहुत शक्तिशाली है
मानवता फिर भी
रोती है
आखिर ऐसा क्या है
जो हमारे सही
ज्ञान को भी
ग्रस लेता है
क्यों न हम
उसे ही ग्रस लें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०८ - ०५ - १९८४
२ - ०० pm
तुम और तुम्हारा समाज
ग्रसित है अमानवीय रोगों से
तुम्हारे मनीषी
जो उपचार बतलाते हैं
वो रोग की भयंकरता
बढाती है
आग के शांति का उपाय
घी नहीं होता
शांति के हेतु
अशांति कभी साधन नहीं हो सकता
पर हम अपनी
बुद्धि को
कुंठित कर
हर बार
एक नया विष
पैदा कर
उसे ही अमृत कह
ऊँचे कीमतों में बेचते हैं
कोई और नहीं
हमारे रोने का कारण
हम खुद हैं
वर्तमान में
मानव
बहुत शक्तिशाली है
मानवता फिर भी
रोती है
आखिर ऐसा क्या है
जो हमारे सही
ज्ञान को भी
ग्रस लेता है
क्यों न हम
उसे ही ग्रस लें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०८ - ०५ - १९८४
२ - ०० pm
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