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कविता में जिंदगी का अर्थ ढूंढ रहा था
मौत का पंजा बाहर निकला नजर आया
समुन्दर से भी गहरे प्यार की तमन्ना में
रेत का दरिया बहता नजर आया
झुलसी अधजली
मेरे अरमानो की चिता पर
उनका आलिशान महल खड़ा नजर आया
मेरे वफ़ा को ज़माने ने नादानी कही
प्यार में उनके पागल हुआ तो हँसता चेहरा उनका
नजर आया
लोगो ने कहा कहाँ फंस गए हो
हर मोड़ पे उनका छलिया चितवन नजर आया !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २२ - ०५ - १९८४ कोलकाता
९ - ५५ pm
कविता में जिंदगी का अर्थ ढूंढ रहा था
मौत का पंजा बाहर निकला नजर आया
समुन्दर से भी गहरे प्यार की तमन्ना में
रेत का दरिया बहता नजर आया
झुलसी अधजली
मेरे अरमानो की चिता पर
उनका आलिशान महल खड़ा नजर आया
मेरे वफ़ा को ज़माने ने नादानी कही
प्यार में उनके पागल हुआ तो हँसता चेहरा उनका
नजर आया
लोगो ने कहा कहाँ फंस गए हो
हर मोड़ पे उनका छलिया चितवन नजर आया !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २२ - ०५ - १९८४ कोलकाता
९ - ५५ pm
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