३४६
जिसे तूने
निष्प्राण और निर्जीव समझ
गूंगा और बहरा समझ लिया
विश्व का
वो कुचला दलित
ईंट और गारा बन
एक दीवाल हो गया
हाँ बस वो खड़ा है
शायद उसे
आत्म चिंतन का
मौका मिल गया है
या हो सकता है
अपने अस्तित्व पर
शोध कर रहा हो
या तपस्या में तल्लीन हो
मौन धारण कर लिया हो
हो सकता है
इन शोरों में
उलझना न चाहकर
दम साध लिया हो
या अपने क्रांति का
मार्गदर्शक मानचित्र
तैयार कर रहा हो
निर्मेश नेत्रों से
तुम्हारे बाल सुलभ क्रीड़ा को
देख - देख
तेरे नादानी को समझ
बस चुप है और शांत
वो जानता है
इस भगदड़ में
क्या बोलना ?
बस दो कदम और
फिर सब शांत
दिन को दीवाल बन
बस तेरे बातों को
सुनता है
रात को तेरे मष्तिष्क के
अल्ट्रावॉयलेट किरणों को
चमगादड़ बन
देखता है
तुम्हारी सारी पहुँच
तेरी सारी अक्ल
हर उपायों के बावजूद
निरर्थक साबित होती है
और दीवाल को
आँखों से बचकर
तुम कुछ नहीं कर पाते
तुम माइक्रोवेब से बोलो
या मेगावेब से बोलो
दीवाल सुनही लेगा
तुम अल्ट्रावायलेट
या इन्फ्रा किरणों को फेंको
चमगादड़ देख ही लेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - ०६ - १९८४ रांची
३ - ३६ pm
जिसे तूने
निष्प्राण और निर्जीव समझ
गूंगा और बहरा समझ लिया
विश्व का
वो कुचला दलित
ईंट और गारा बन
एक दीवाल हो गया
हाँ बस वो खड़ा है
शायद उसे
आत्म चिंतन का
मौका मिल गया है
या हो सकता है
अपने अस्तित्व पर
शोध कर रहा हो
या तपस्या में तल्लीन हो
मौन धारण कर लिया हो
हो सकता है
इन शोरों में
उलझना न चाहकर
दम साध लिया हो
या अपने क्रांति का
मार्गदर्शक मानचित्र
तैयार कर रहा हो
निर्मेश नेत्रों से
तुम्हारे बाल सुलभ क्रीड़ा को
देख - देख
तेरे नादानी को समझ
बस चुप है और शांत
वो जानता है
इस भगदड़ में
क्या बोलना ?
बस दो कदम और
फिर सब शांत
दिन को दीवाल बन
बस तेरे बातों को
सुनता है
रात को तेरे मष्तिष्क के
अल्ट्रावॉयलेट किरणों को
चमगादड़ बन
देखता है
तुम्हारी सारी पहुँच
तेरी सारी अक्ल
हर उपायों के बावजूद
निरर्थक साबित होती है
और दीवाल को
आँखों से बचकर
तुम कुछ नहीं कर पाते
तुम माइक्रोवेब से बोलो
या मेगावेब से बोलो
दीवाल सुनही लेगा
तुम अल्ट्रावायलेट
या इन्फ्रा किरणों को फेंको
चमगादड़ देख ही लेगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - ०६ - १९८४ रांची
३ - ३६ pm
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