३३८
रास्ता और लगन
गर जो हो सही
हर मंजिल
स्वयं पास चली आती
वो मेरे
एथेंस के सत्यार्थी
अधूरे सत्य के दर्शनकर्ता
तुझसे भूल अब हुई
जो तूने इतने पे ही
निचोड़ निकाल लिया
अभी सत्य पका कहाँ था
जो तूने
स्वाद चखने का
दावा कर लिया
तुमने जाना ही था गलत
आशा तुम्हारी गलत थी
प्रयास और विश्वास
दोनों तुम्हारे सही हैं
वीरानी कह कर
जिससे तूँ रुष्ट हुई
वो तो तेरे ही
प्रयासों की
तुष्टि थी
सर्वप्रथम अपने
कर्म और उसके फल को
सही प्रभाषित करो
फिर सत्य को पकड़ो
या हारे हुए जुआरी की तरह
आम मुखौटों में
अपना मुखौटा छुपा लो !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
रास्ता और लगन
गर जो हो सही
हर मंजिल
स्वयं पास चली आती
वो मेरे
एथेंस के सत्यार्थी
अधूरे सत्य के दर्शनकर्ता
तुझसे भूल अब हुई
जो तूने इतने पे ही
निचोड़ निकाल लिया
अभी सत्य पका कहाँ था
जो तूने
स्वाद चखने का
दावा कर लिया
तुमने जाना ही था गलत
आशा तुम्हारी गलत थी
प्रयास और विश्वास
दोनों तुम्हारे सही हैं
वीरानी कह कर
जिससे तूँ रुष्ट हुई
वो तो तेरे ही
प्रयासों की
तुष्टि थी
सर्वप्रथम अपने
कर्म और उसके फल को
सही प्रभाषित करो
फिर सत्य को पकड़ो
या हारे हुए जुआरी की तरह
आम मुखौटों में
अपना मुखौटा छुपा लो !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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