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जिंदगी को
ना जाने
क्या समझकर
फुसला रहा हूँ
बहला - बहला कर
मेरा असत्य जो कुछ न था
मुझे पीछे धकेलता है
मेरा सत्य
मुझे नोचता खसोटता है
दिल में
हर को चाहने का
बस एक दर्द भर उभरता है
खाली - खाली उसूल
खाली - खाली सिद्धांत
मेरा बीता कल
आज को घसीटता है
मैं चाहता हूँ ढूँढना
अपने उत्पत्ति का कारण
मेरा मस्तिष्क लहूलुहान हो जाता है
अपने पूर्वजों से टकरा - टकरा कर
मुझे बुद्धि का एहसास
मेरे लिए एक हादसा
ईश्वर बना मेरे लिए उपहास
मैं अपनी भावना और एहसास को
खोना चाहता हूँ
वंचित होना चाहता हूँ
मन और बुद्धि से
हाय ! जग में कोई नहीं
जिसे मानू मैं दिल से !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - ०६ - १९८४ राँची
३ - २० pm
जिंदगी को
ना जाने
क्या समझकर
फुसला रहा हूँ
बहला - बहला कर
मेरा असत्य जो कुछ न था
मुझे पीछे धकेलता है
मेरा सत्य
मुझे नोचता खसोटता है
दिल में
हर को चाहने का
बस एक दर्द भर उभरता है
खाली - खाली उसूल
खाली - खाली सिद्धांत
मेरा बीता कल
आज को घसीटता है
मैं चाहता हूँ ढूँढना
अपने उत्पत्ति का कारण
मेरा मस्तिष्क लहूलुहान हो जाता है
अपने पूर्वजों से टकरा - टकरा कर
मुझे बुद्धि का एहसास
मेरे लिए एक हादसा
ईश्वर बना मेरे लिए उपहास
मैं अपनी भावना और एहसास को
खोना चाहता हूँ
वंचित होना चाहता हूँ
मन और बुद्धि से
हाय ! जग में कोई नहीं
जिसे मानू मैं दिल से !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - ०६ - १९८४ राँची
३ - २० pm
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