३३२
सर्द हवा के झोंके से
तुम क्यों ऐसे मिले
मैं तो गीली मिट्टी था
तुमने जैसे चाहा
सांचे गढ़े
ख़ुदपरस्ती की दुनियाँ में
खुदगर्ज क्या तुम मिले
कोरा कागज था मैं
जैसे चाहे तुमने रंग भरे
मेरा सूना
आकाश चुनकर
मनमाने सितारे भरे
तुम जब थे मिले
सूना मेरा आँगन था
विस्तृत थे मेरे विचार
पर जान सका न
तेरा ये
अव्यवहृत व्यवहार
खामोश सर्द मैं
गर्म मेरी आह
ईश्वर करे
बचा ले तुम्हे
बस इतनी सी है
मेरी चाह
हाँ जानता हूँ मैं
तुम मेरे
सपनो और यादों के कमरे में
आया करोगे
जी भर मुझे सताया करोगे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३० - ०४ - १९८४
११ - ३० am
सर्द हवा के झोंके से
तुम क्यों ऐसे मिले
मैं तो गीली मिट्टी था
तुमने जैसे चाहा
सांचे गढ़े
ख़ुदपरस्ती की दुनियाँ में
खुदगर्ज क्या तुम मिले
कोरा कागज था मैं
जैसे चाहे तुमने रंग भरे
मेरा सूना
आकाश चुनकर
मनमाने सितारे भरे
तुम जब थे मिले
सूना मेरा आँगन था
विस्तृत थे मेरे विचार
पर जान सका न
तेरा ये
अव्यवहृत व्यवहार
खामोश सर्द मैं
गर्म मेरी आह
ईश्वर करे
बचा ले तुम्हे
बस इतनी सी है
मेरी चाह
हाँ जानता हूँ मैं
तुम मेरे
सपनो और यादों के कमरे में
आया करोगे
जी भर मुझे सताया करोगे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३० - ०४ - १९८४
११ - ३० am
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