यादें
( बेटा उज्जवल सुमित बिटिया सिद्धिदात्री के विवाह में
अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए )
५४७
मेरा अनुभव रोहतांग पास से रामेश्वरम तक
कहता है यही कि आम जनता है बेहद सज्जन और
ईमानदार
कुछ मुटठी भर लोग समाज से लेकर राजनीतिक
तक
हैं नपुंसक लालची कायर भ्रष्ट लाचार और कमजोर
जिसका है चहुँ ओर शोर जो दिख रहा चारों ओर
ऐसा नहीं समाज अपना किसी ओर
पर मानव मन पर पड़ता है इसका असर
जो दिखता है वैसा ही लगता है हर ओर
गर जो होती थोड़ी जनतांत्रिक और संवेदनशील
सरकार
तततक्षण होती शख्त कार्रवाई आर या पार
ऐसे असफल नेता जी करते जब हम पर शासन
पर दुर्दिन के मारे हमारे भाग्य हाय रे लाचार
जिसे हमने अपने हाथों से ही कर डाला है ताड़ - ताड़
वर्ना हम अभी तक यूँ आंसू न बहाते होते
कोई जंतर मंतर पर यूँ न भूखों मरते होते
समाज में सच बोलने वाले यूँ न मारे - मारे फिरते
ब्रिटिश कालीन पुलिसिया कानून इतने सारे
इस लोकतंत्र को कभी मिलेगा क्या न्याय नहीं
वो तो था शासक और शासन के प्रति भय पैदा करने
के लिए
अब तो चाहिए जनता की रक्षा और सम्मान के लिए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६ - ०१ - २०१३
२-३० pm
यादें
( बेटा उज्जवल सुमित बिटिया सिद्धिदात्री के विवाह में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए )
५४६
रात भर सो नहीं पाया
व्यवस्था पर दिल कचोटता रहा मन मसोसता रहा
ढाई घंटे जनता ने ढाई घंटे व्यवस्था ने
गर जो बर्बाद न किये होते
आज दामनी भी हमारे साथ होती
तुर्रा उसपे चिंतक बड़े - बड़े
खोज रहे हैं ईलाज खड़े - खड़े
विषबेल के पत्ते - पत्ते डाली - डाली
हैं सारे के सारे सड़े गले पड़े
जड़ किसी को भला दीखता क्यों नहीं
हैं जहाँ लालच भ्रष्टाचार के मट्ठे पड़े
कुछ कहते जेंडर ही जेंडर का भला करेंगे
कुछ कहते जाति ही जाति का भला करेंगे
पर देखा हमने जेंडर ने कैसा इंसाफ किया
दरिंदों ने तो मरने की हालत में सिर्फ था ला छोड़ा
अव्यवस्था ने तो उसे पूरी तरह से मार ही डाला
कोई हो जाति कोई हो धर्म कोई हो लिंग
फर्क इससे नहीं पड़ता है कोई
कितना है इंसान वो कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार
इंसाफ इससे है मिलता किसी को !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०५ - ०१ - २०१३
०१ - १६ pm
यादें
( बेटा उज्जवल सुमित छठ पूजा के अवसर पर )
५४५
पूछते हो हम व्यवस्था विरोधी हैं
तो हैं हम व्यवस्था विरोधी हैं
पूछते हो क्या संविधान में भरोसा नहीं
तो है हमें संविधान में पूरा भरोसा है
भरोसा नहीं है तो उसके आड़ में तुम्हारी अव्यवस्था पर
तुम्हे तो इतनी सुविधा मिल गयी है न्यारी
कि जाकर अमेरिका के वालमार्ट से भी
खरीदारी कर लो तुम सारी
पर देखा भी है कभी गरीबी और ग़ुरबत
कैसे जिन्दा हैं तेरे शोषण के कारण
वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा
एक विशाल गरीब भारत तूने पैदा कर दिया
वो फ़ौज गरीबी की बढ़ी तो छिपने की भी जगह नहीं मिलेगी
हो जाओ तैयार गरीबों ने अब पाञ्चजन्य शंख फूंक दिया
भ्रष्टाचार के तवे पर रोटी सेंक मकान बनवा दिया
ठिकाने का इंतजाम नहीं जिंदगी भर की पूंजी और आशियाँ उजाड़ दिया
शोर है बहुत कि कुछ करोड़ों में हो गया सौदा
हम ऐसे बने सौदा कि बहुत सस्ते में बिक गए
सौदागर ही निकले अपनों से कुछ भले
कुछ तो मोल लगाया उन्होंने
अपने नेता तो बेमोल ही बेच डाला दे के धोखा
पहले
साईं इतना दीजिये जा में कुटुंब समाये
मैं भी भूखा ना रहूँ साधू भूखा न जाये
अब
साईं इतना दीजिये जा में टाटा अम्बानी समाये
मैं राजा बन जाऊं बाँकी सब भूखो मर जाये !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३१ - १२ - २०१२
१० - ३५ pm
यादें
( धर्म पत्नी जी बिटिया एवं बेटे उज्जवल सुमित दिवाली की तैयारी में )
५४४
गुलाम थे पर ईमान था
आजाद हुए और बेईमान हो गए
गद्दारों ने ही गुलाम बनाया था
हो कर आजाद बेच रहे सब कुछ
पूरी आजादी से जो कुछ अपना था
जमीन बेच रहे खनिज बेच रहे
इंसान बेच रहे ईमान बेच रहे
ऐ खरीदारों आओ हम वतन बेच रहे
गरीब बेच रहे मजदुर बेच रहे
आम अवाम किसान बेच रहे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०५ - १२ - २०१२
०८ - १५ pm
फिर इतने भ्रष्टाचार का क्या है कारण
बस इतना ही कि मनुष्य चुनने का
आजतक नहीं कर पाये नवजागरण !
०१ - १२ - २०१२
०६ - ५० pm
दुःख दर्द के साये में कट रही है जिंदगी ऐसे
जैसे हों ठूंठ बरगद के कोटरे में अपना आशियाँ !
०३ - १२ - २०१२
०९ - १५ am
जहाँ ठोस सबूतों और स्व स्वीकृति पर भी
किसी देशद्रोही आतंकवादी निर्मम हत्यारे को भी
सजा देने में लग जाते हों वर्षों वर्ष
वहां हम उम्मीद लगाये बैठे हैं
भ्रष्ट नेताओं को इसी जन्म में मिलेगी सजा यार !
जो सरकार एक ईमानदार I R S को भी
कहती हो बार - बार गन्दी नाली का कीड़ा
सोंचो जरा वहां यारों
एक आम गरीब आदमी के लिए होगा कौन सा विशेषण धरा ?
दुःख दर्द के निर्मम थपेड़ों ने
छिन्न भिन्न कर डाली मेरी सौम्यता ! ४ - १२ - २०१२
१० - ०० am
दोस्त बनाकर अपना आपने जो दिया सम्मान
जानकर हजार मेरी बुराईयाँ छोड़ न देना मेरा साथ !
राष्ट्र का सम्मान हो कैसे राष्ट्र भाषा का करके अपमान
राष्ट्रिय पंचायत में विदेशी भाषा का कर रहे सम्मान !
०५ - १२ - २०१२
विदेशी भाषा से खोज रहे हम अपना राष्ट्रिय समाधान
जानत नहीं जिसे आम अवाम गरीब मजदुर और किसान !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित दिवाली की तैयारी में )
५४३
नव चेतना नव विहान
कितना कहें कितना समझाएं
आपको अपना जान
जानत सकल जहान
पकड़ ईमानदारी का पथ
करें भविष्य निर्माण
लूट रहे मिल लूटेरे हमको
सबक ईमानदारी का समझाओ उनको
बैठे - बैठे दिन रेन बीते अनेकों
कमजोड़ जानकर ही वे सताते हैं हमको
दौलत कुर्सी के भूखे भेड़ियों
कौड़ियों के मोल समझाने आ रहे आपको
घड़ा पाप का छल छला रहा
हैवानियत सीमा पार जा रहा
भीड़ ही नहीं केवल बदलते सूरत
घड़ बैठे भी लेंगे तेरी खैरियत
बस आपस में नहीं है लड़ना झगड़ना
अपनी भावनाओं से मत उनको खेलने देना
धरना प्रदर्शन आन्दोलनों का दौड़
बस यूँ ही चलता रहे हर ओर
क्रांति की धार न पड़े मध्यम
बांकी इतिहास बदलने में हम हैं सक्षम
बस इतना रहे ध्यान
हो जिसका शुद्ध विचार
हो निष्कलंक जीवन
हो मन में अपार त्याग
हो रखता अपमान सहने की शक्ति अपार
बस ऐसे ही व्यक्ति का रखें ध्यान
जो बनाये लोकतंत्र की अगली सरकार !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २९ - ११ - २०१२
७ - ५७ pm
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्मदिन )
५४२
तेरा सच बोलना तौबा तौबा
तेरा सच लिखना तौबा तौबा
तेरा सच देखना तौबा तौबा
तेरा सच सुनना तौबा तौबा
तेरा सच पढ़ना तौबा तौबा
तेरा सच को पसंद करना तौबा तौबा
सच मत सुनो
सच मत कहो सच मत देखो
सच से तोड़ो नाता रिश्ता
सच हुआ अब जान लेवा
सच से जाती अब नौकरी
सच से जाते लोग अब जेल
देखो भाई सच का ये खेल
ये कैसा सत्यमेव जयते !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २८ - ११ - २०१२
६ - ३५ pm
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५४१
पूछा जो फुटपाथ पे किसी से कहाँ है सरकार
कहा किसी ने B M W में आते हैं सरकार
राहगीरों बदनसीबों को कुचल जाते हैं सरकार
चाहते हो जिंदगी तो कहीं और जाओ
यहाँ बेमौत मार देते हैं सरकार
पूछा जो अस्पतालों में किसी से कहाँ है सरकार
कहा किसी ने चले जाओ यहाँ से
कहीं छत गिर पड़ेगी और मर जाओगे मेरे सरकार
देखा जो एक रोज मॉल तो लगा यहीं है सरकार
हर तरफ माल उड़ाते दिख रहे थे सरकार
देखा जो एक रोज बियर बार डांस बार
हर तरफ माल लुटाते दिख रहे थे सरकार
वाह - वाह मेरी सरकार हाय - हाय मेरी सरकार !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १६ - ११ २०१२
०६ - ३२ pm
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५४०
सनातन सत्य
बीत गया जीवन आधा सोने में
आधे को बिगाड़ दिया लड़ने झगड़ने में पाने खोने में
यह दुर्लभ जीवन यूँ ही न जाये निरुद्देश्य रीत
करें अमृत साधना शक्ति सृजन प्रेरणा उत्साह से प्रीत
न खुद कर पाये इन अमोध शक्तियों से प्राप्त आनंद
न ही कर पाये कुछ भी औरों के कोई कार्य सिद्ध
सब कुछ पाकर सब कुछ खो देना
अज्ञानता के मद में क्या खोना क्या पाना
पाकर सब कुछ न मिलने से ज्यादा बद्द्तर हो गया
मूढ़तावश सब कुछ धूल धूसरित हो गया
जीवन में जीती हुई सारी बाजी हार गए
जिसके लिए आये थे वही मंतव्य भूल गए
जाना था कहाँ , कहाँ था गंतव्य
रास्ता भूल किधर को चले और कहाँ पहुँच गए
आज जो मेरा है कल किसी और का
आज के बाद कल किसी और का
क्षण - क्षण कमाकर पल - पल गंवाकर बचाया क्या
छल - कपट झूठ - फरेब ईर्ष्या - द्वेष से पाया क्या
बचाने और अधिक पाने की चाह में
पेट भर कभी खाया नहीं
जब भूख थी तो भोजन पाया नहीं
अब जब भूख है तो मुंह में दांत नहीं
डाक्टरों ने भी दी खाने की इजाजत नहीं
फिर क्यों जोड़ा किसके लिए बचाया
कहावत है पूत कपूत तो धन क्यों संचय
पूत सपूत तो धन क्यों संचय
जो जोड़ा कमाया बचाया
उपरवाले बस उसका चौकीदार बनाया
गर जो कुकर्मो से कमाया
उसी रास्ते से है निकल जाना
जो दिख रहा वही तो है माया
पाकर जिसको है खोया सब मोह माया
आनंद तलाशना उसमे डूबे रहना
अकारण पीड़ा से बचना तो है बस ज्ञान कमाना
संसार में पीड़ा और पश्चाताप के अलावा क्या
समझो और समझाओ ज्ञान रस के सिवा उपाय क्या ?
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २० - १० - २०१२
११ - १८ am
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५३९
जिस मूर्ति को पूज्य बनाता
वही यारों धोखा दे जाता
इस वकील / जज का बड़ा मन में सम्मान था
स्वार्थ उनका वो जाने
इस उम्र में विवशता वो माने
ऐसे लोग भी करें थेथरोलॉजी
तो हम जैसे क्या कह पाएंगे जी
अंधेर नगरी चौपट राजा
टके सेर खाजा टके सेर भाजा
जिसने अपना कर्तव्य निभाया ( चैनल / पत्रकार )
जिसने लूट खसोट मचाया
अपाहिजों का भी हक़ मार गया
हो तो हो सबकी मलामत
ताकि रह पाये चोर की इज्जत सलामत !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १५ - १० - २०१२
१० - ०९ pm
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५३८
सरकार के चिंतन से भी अब डर लगता हैं
उनका निर्णय तो हमारी जान ही निकाल देता है
कल प्रधानमंत्री का R T I पर चिंतन सुना
सुन कर दिल का दर्द हो गया दूना
लोग हैं कहते सरकार बनाती है कानून
ताकि कोई बच न पाये
पर ये हैं चाहते कि कोई कुछ जान न पाये
बड़ा दर्द हैं वो दर्शाते
काश जो ये कानून न बना पाते
दिन रात का जीना हो गया है हराम
सुचना के अधिकार से छुप नहीं पा रहा उनका कोई काम
अपने चिंतन से वो बहुत चिंतित हैं
कैसे नेस्त नाबूद हो ये कानून
इसी उधेड़ बुन में वो दिन रात रत हैं
कानून का उदेश्य ही है पारदर्शिता और भ्रष्टाचार का निषेध
इन दोनों शब्दों से है उन्हें परहेज
भ्रष्टाचार से घिरी सरकार
भला कैसे चाहेगी पारदर्शिता
सपनो में भी इन्हे यही सताता
कल न जाने हो जाये कौन सा खुलासा
इसका एक ही इलाज उन्हें समझ में है आता
काश ये कानून ही समाप्त हो जाता ?
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १३ - १० - २०१२
८ - ०५ pm
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५३७
आज भी देखा सुना गजब तमाशा
सत्ता का भी एक अजीब नशा
एक मंत्री बोली आप इतने भी नहीं गरीब
दे नहीं सकते चार सौ के बदले नौ सौ हुजूर
उनके ही एक माननीय सांसद
टॉल टैक्स के कुछ रुपये देने न पड़े
वास्ते इसके धमकाया डराया बन्दुक दिखाया
वो थे सक्षम तो ये तमाशा कर डाला
जिस जनता के पेट लगी हो आग
वो फिर क्या कर गुजरे
इसका एक बार भी ख्याल न आया
एक मंत्री हड़प कर अपाहिजों का सहारा
जनता को ही कहते गंदे नाली का कीड़ा मकौड़ा
एक मंत्री कहीं सी एम ओ का ही अपहरण कर लेते
अब बताओ भला कैसे लोकतंत्र की बात बने
भ्रष्टाचारी नेता कानून बनाये
गरीब असहाय लूटते देखता रह जाये
आखिर कब तक कब तक
नित्य ये हादसे पे हादसे होते रहें
हम कम्बल में मुंह ढांप कर सोते रहें !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १२ - १० - २०१२
७ - ४० pm
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५३६
इस लोक तंत्र ने
अपने जनतंत्र ने
शब्द अनोखे अनमोल दिए
जिसको हमने पूजा , चाहा और प्यार किया
धुप अगरबत्ती जलाये नैवैद्य चढ़ाये
जैसे सेकुलर , पिछड़े , आदिवासी और दलित
हश्र हमने क्या देखा
सेकुलर के नाम पर
धर्म आधारित आरक्षण का प्रयास
धर्म आधारित छात्रवृति का प्रयास
धर्म आधारित सब्सिडी का उपहार
अर्थात सेकुलर के नाम पर देश का बंटाधार
संविधान के साथ बलात्कार
पिछड़े के नाम पर
मुलायम लालू का गोल माल
आदिवासी के नाम पर
कोड़ा का लूट मार
दलित के नाम पर
माया का नीचतम भ्रष्टाचार
तात्पर्य यह कि
न तो सेकुलर को
न तो पिछड़ों को
न तो दलितों को
न तो आदिवासियों को
मिला उनका अधिकार या सम्मान
सबों ने शब्दों के भ्रम जाल में
हमें सिर्फ भरमाया है
मिल कर खूब सताया है
अतः इन शब्दों को
अब कहीं दबा दो या दफना दो
वर्ना हम इसी तरह मरते रहेंगे
और बारी - बारी से मारे जायेंगे
जागो - जागो - जागो रे जनता जागो रे
बस हो ईमानदार और देशभक्त
उसे ही बस गले लगाओ रे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०९ - १० - २०१२
५ - ३० pm
यादें
( बेटी का जन्म दिन )
५३५
जान पे बन आयी तो
दामाद जी सासु माँ के लिए ये क्या कह दिया
बनाना रिपब्लिक अर्थात भ्रष्टाचार , माफियाराज
और राजनितिक अव्यवस्थाओं का बोलबाला
अरे दामाद जी ऐसा न होता तो
आप इतना माल भला कैसे बनाते ?
इतना V V I P स्वागत भला कैसे होता ?
बिना रोक टोक भला कैसे आते जाते !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
०८ - १० - २०१२
११ - ३० am
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्मदिन )
५३४
अरे भाई इतना हंगामा क्यों है बरपा
मैं हूँ वो दामाद जिसकी सास है खास
बिना कुछ किये दुनिया की है चौथी बड़ी हस्ती
फिर इस छोटी सी बात पे इतना कहर क्यों बरपा
इस लोकतंत्र में जहाँ चारों ओर
जर्रे - जर्रे में भ्रष्टाचार ही बना जब शिष्टाचार
साहब के चपरासी को भी खुश कर
बनते जहाँ हैं बड़े - बड़े काम वहां मैं तो फिर भी हूँ सरकारी दामाद
जिधर फेड दूँ नजर वही हो जाये माला माल
फिर इस छोटी सी बात पे इतना कहर क्यों बरपा
मैं नहीं हूँ कोई नेता या मंत्री
पर देखो ससुरों ने मेरे लिए
कितना गला फाड़ा की कितनी थेथरई
ना जाने दुनिया को क्यों लगी मिर्ची
उदारीकरण में इस निजीकरण में
सरकार है कितनी मेहरबान
जंगल जमीन वाले हैं मर रहे
मेरे जैसा दामाद बैठे - बैठे है मलाई मार रहा
फिर इस छोटी सी बात पे इतना कहर है क्यों बरपा
तुम लोगों के लिए मैंने हवा है छोड़ी
क्या यह कम है तेरे जीने के लिए
फिर इस बात पे हंगामा क्यों है बरपा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६ - १० - २०१२
०९ - ३० am
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५३३
यूपीए - २ का देखो कमाल
पहले घोटाला
फिर घोटालेबाजों का सम्मान
आखिर है एक ही लक्ष्य
करना देश का काम तमाम
उनके महान अनुभवों से लेना है काम
कैसा बने कानून कि
कोई हमें छू न पाये
जनता रहे नर्क में या स्वर्ग जाये
हमारा दर खुला है
खुला ही रहेगा
तहे दिल से है स्वागत
जो भी जहाँ भी हो स्वनाम धन्य घोटालेबाज
आईये आईये और कहीं मत जाइए
धन दौलत और सम्मान
सब कुछ यहाँ खैरात में पाइए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०४ - १० - २०१२
०९ - ४५ am
यादें
( बेटे उज्जवल सुमित का जन्म दिन )
५३२
भय से कोई पथ छोड़ दे
विचार छोड़ दे यह तो उचित नहीं
पर शंका हमारी भी तो निर्मूल नहीं
भविष्य के आशंका से
अगर मगर के द्वन्द से
गांधी नेहरू सा हाल न हो अपना
वर्ना दुःख होगा कितना घना
बस इतनी सी है कामना !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - १० - २०१२
१२ - ३० pm
यादें
( मनोज - सुधा के बच्चे के जनमोत्स्व पर बाएं से धर्म पत्नी जी सुधा जी )
५३१
जब तक रहे सत्ता से बाहर
कहते रहे हमारा हाथ
आम आदमी के साथ
कहते रहे मंहगाई सौ दिनों के अंदर
हो जायेगा छू मंतर
सारी समस्याओं का हो जायेगा अंत
हमारा ऐसा होगा प्रयत्न
पर निकला सारा झूठ और प्रपंच
बारी - बारी से हमने दिया सबको मौका
बदले में मिला केवल धोखा
क्यों कहते सब पहले " सत्य मेव जयते "
फिर कहते " वाल मार्ट जयते "
चाहे जनता जिए या मरे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - १० - २०१२
११ - ५० am
यादें
( मैं और सुधा उनके बच्चे के जनमोत्स्व पर )
५३०
मैं हूँ मन मोहन
मैं कितना बड़ा हूँ बेशर्म
मन तो मोह न पाया जनता का
तन मन धन से हूँ मैडम जी का
तीनो लोकों में है लूट मचाया
जल थल नभ
धरती पाताल आकाश कांपते
हर तरफ हमारी लुटेरी सेना ही है नाचती
कुपात्रों को अपनी कीमती वोट देने की सजा
आखिर जनता कब तक भोगे
देर हुई बहुत अब तो सोयी जनता जागे
वर्ना वर्षों तक रोते रहेंगे हम अभागे
एक था शौरी भूल भी गए होंगे सारे
वर्षों से फिर रहे थे मारे - मारे
NDA की जिसने लुटिया थी डूबाई
विनिवेश मंत्री बनकर कौड़ियों में पीएसयू बेचवाई
अचानक कुंडली उनकी है फिर जागी
सुर में सुर मिला रहे हैं
घूम घूम कर हमें बता रहे हैं
एफडीआई से सोये भाग्य जागेंगे
इससे ही गरीबी दूर भगाएंगे
मिलकर सारे कसम खाइये
उसके साथ - साथ
इन्हे भी हजम कर जाइए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २५ - ०९ - २०१२
८-- ०९ pm
यादें
( हथुआ महाराज के परिसर में बच्चों की मस्ती )
५२९
जी जान से पानी पी पी कर गली चौराहे हर तरफ
चिल्ला रहे थे जो संसद की आन बान शान और सम्मान के खातिर
खुद अंदर कर रहे थे चीर हरण कुर्ता बिल फाड़ फाड़ कर मिल सारे शातिर
खुद खेला अंदर CWG से
मन न भरा तो २G से
फिर जी न भरा तो कोयले की खान से
कितना बड़ा है ये गड़बड़ झाला
आम आदमी को हर रोज है अब पड़ता पाला
सबने अपना मुंह कर लिया है ऐसा काला
पहचान में ही नहीं आ रहा कौन है बहनोई और कौन है किसका साला
क्यों न कोई वीर ईमानदार
जिसने न कभी खाया हो कमिसन
और कमसे कम सांसद निधि से
शत प्रतिशत उपयोग कर जनता का किया हो कल्याण
जो वो साहस कर पाते चीर हरण से बचा पाते
तो बच जाता संसद का सम्मान !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २३ - ०९ - २०१२
९ - २१ pm
( मैं और मेरा अभिन्न मित्र मनोज )
५२८
मैं तो सिर्फ अपना दर्द बयां करता हूँ ,
लोग उसे ख्यालों की कविता समझ बैठते हैं !
लोग जीते जी परिजनों की सेवा का सामर्थ्य नहीं जुटा पाते ,
मृत्युपरांत वही कर्ज ले ले कर समाज को भोज हैं देते !
बस परम्पराएं हों व्यवहारिक ,
कर्मोपरांत पाँच ब्राह्मणों को खिलाना ही है तार्किक !
यदि पुनर्जन्म सत्य हो तो मैं वहीँ जाऊँ ,
जहाँ हर जन्म यही माता पिता पाऊं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०९ - २०१२
७ - ४० pm
( बायें से विनोद भैया , भाभी , धर्म पत्नी जी और मैं )
५२७
कितना महान निर्लज्ज हूँ मैं समझते हो
मैं गृह मंत्री हूँ देश का तुम कुछ कह नहीं सकते हो
हम बोफोर्स को पचा गए तुम उसको भी भुला दिए
फिर ये कोयला घोटाला तुम भला कितने दिन याद रखोगे
हा हा हा हा कितने मजे में हम देश लूटते रहे
तुम ख्वाबों खयालो में ही सोते रहे
रावण सा अट्टहास ही आता है मुझे करना
वो तो शुक्रिया मैडम का कि दलित हूँ इसलिए गृह मंत्री बना
वर्ना देश का कोई कुत्ता भी मुझे नहीं पूछता हा हा हा हा
साबुन है ऐसा हमारे पास बस एक बार धोया सब साफ हा हा हा हा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १६ - ०९ - २०१२
५ - ०० pm
५२६
कितनी बातें हो गयी आज कुछ अहम कुछ खास
जो कहती थी अन्ना टीम सर्वोच्च न्यायालय ने कही वही बात
जो लगाया आरोप देशद्रोह का असीम पे गलत
मुंबई हाई कोर्ट ने सरकार को लगायी जोड़ की चपत
कोयला का हो गया चोरी उपकार किया अपने अपनों का आप
अब सर्वोच्च न्यायालय को केंद्र सरकार दे जवाब
रोबोट ने कहा आज अब मर मिटने की है बात
आपने क्या समझा देश के खातिर ?
ऐसा भला कब हुआ जो अब होगा
वो तो थे हैं और रहेंगे औद्योगिक घरानो के लिए
विदेशियों की खातिर कर रहे
मरने मारने की हर तरह की बात
शहीद भी होने को हैं तैयार
पर दिखला जाना चाहते अपने शर्मायेदारों को
उनके दिल में उनके खातिर कितने हैं उनके जज्बात !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १४ - ०९ - २०१२
७ - ४३ pm
५२५
आज भर दिन के समाचार का यही है सार
देश के वीरों तुमने कर दिया कमाल
चाहे हो बच्चा बूढ़ा और जवान
चाहे हो नर या नारी या छोटा बड़ा इंसान
सबको मेरा बार - बार प्रणाम
चैनल कहती रही कोई लोग नहीं भीड़ नहीं
आपस में एक बात पर है कोई मेल नहीं
पर रह गए सब के सब भौंचके इसकी टोपी है उसकी नहीं
जब छा गए वीर जवान चप्पे - चप्पे
तुमने आज कर दिखाया ऐसा कमाल
इतिहास जिसका बार - बार देगा मिसाल
भ्रष्टाचार रूपी जड़ पे है ये एक बड़ा प्रहार
जिसने देश को जगाने का
सबका असली चेहरा दिखलाने का
काम किया है आज बड़ा कमाल
जैसी खायी आज लाठियां आंसू गैस और पानी की बौछार
ये था वीरों का तप पायी जिससे विजयी हार
आज वीरों ने कर दिया कमाल
वो डरे थे सहमे थे बार - बार पैंतरे बदले थे
हड़बड़ी में मेट्रो बंद करवाये फिर खुलवाये थे
ऐसी ही चोट होती रहे बार - बार
वीरों तुझे मेरा बार - बार प्रणाम !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२६ - ०८ - २०१२
७ - ०९ pm
५२४
कुछ न कुछ तो अब चमत्कार होना चाहिए
फैसला इस पार या कि उस पार होना चाहिए
सड़ी गली इस व्यवस्था का तिरस्कार होना चाहिए
संगठित होकर एक स्वर से ललकार होना चाहिए
सुबह और शाम कि दिन या रात बीते नहीं इस तरह अब
नर या नारी अमीर या गरीब सबों की तरफ से एक हुंकार होना चाहिए
कृष्ण ने सुना दिए अपने सारे कर्म योग
अब अर्जुन के गाण्डीव पर तीर और कमान होना चाहिए
बेबकूफ और कायर बनकर सहते रहना नहीं सिखलाया पूर्वजों ने
वहीँ का वहीँ जस का तस प्रतिकार होना चाहिए
मुख से ही केवल बने रहना वीर
शोभा नहीं देता भरत पुत्रों को
मिलता नहीं जीवन में अधिकार बिना संघर्ष के
जन गण में इस ज्ञान और वीरता का संचार होना चाहिए
संविधान की भावना के तहत हो सबों से एक सा व्यवहार
तख़्त और ताज को यह बात अच्छी तरह से समझा देना चाहिए
छोटा बड़ा ऊँच नीच का भेद समाप्त कर
वोट बैंक के व्यापार को ख़त्म करना चाहिए
वर्ष अनेकों बीत गए पर स्वतंत्र नहीं काहू
CBI , सीवीसी , EC , पर से तलवार हटनी चाहिए
कहने को तो बातें हैं बहुत पर सुनने वाला कान होना चाहिए
संक्षेप में यही की आम अवाम का उद्धार होना चाहिए !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ०८ - २०१२
१० - ३६ am
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आओ आँखों से नींद अब उड़ा दिया जाये ,
जोशो खरोश से भरे इस यात्रा का मजा लिया जाये !
शहीदों के लहू से सिंचित यह भूमि है ,
माथे से इस माटी को लगा लिया जाये !
हाथ की रेखा गर जो रोके बढ़ने से आगे ,
ऐसी रेखा को चलो अब मिटा दिया जाये !
कोई बढ़ जाये आगे हम न रह जाएँ पीछे ,
यह भ्रम अब मन से हटा दिया जाये !
खुद को क्या चाहिए औरों को मिलेगा क्या ?
स्पष्ट रूप से अब सबको बता दिया जाये !
धागा प्रेम का था गांठ उसमे पड़ी है जरूर ,
समय को पहचान उसे सुलझा लिया जाये !
फिर से जो वो तोड़ेंगे - फोड़ेंगे हमें ,
उनके इस सपने पर बुलडोजर चला दिया जाये !
धर्म के नाम पे कर्म को कहते जो छोटे ,
चलो ऐसी पंक्ति को पन्ने से हटा दिया जाये !
इत्र तेल फुलेल से गमका बदन बहुत ,
मातृ भक्ति से चलो अब तन - मन को शराबोर कर लिया जाये !
प्रेम - विरह के गीत युवाओं ने गाये बहुत ,
वीर रस ही अब गाएंगे सब को ये बता दिया जाये !
बेख़ौफ़ - बेझिझक सोयी मरी पड़ी सी ये सरकार ,
पाञ्चजन्य शंख फूंक उसे अब बदल दिया जाये !
सुधीर कुमार ' सवेरा ''
५२२
भारत मध्ये बिहार प्रदेशे समस्तीपुर शहर महान !
गण्डकी के किनारे सुरम्य सुवासित काली पीठ स्थान !!
माँ काली आयी विराजी धन्य हुआ श्री कैलाश बाबा का नाम !
वर्ष १९८२ दिन दिवाली थी आकर बसी माँ काली इस धाम !!
हर्षित करती पुलकित करती मन होता आनंदित यहाँ !
सभी मनोकामना होती पूरी माँ काली बसती है जहाँ !!
कालांतर में बसी माँ महा लक्ष्मी माँ सरस्वती इसी ठाम !
गौरवान्वित करती यह सिद्ध पीठ काली पीठ का नाम !!
दिग दिगंत में फैली है महिमा लेते हर कोई माँ का नाम !
साधु संतों भक्त जनो द्वारा होता रहता सदा माँ का गान !!
जप पूजा पाठ तप और हवन होता रहता जहाँ नित्य !
शहर ग्राम और मोहल्ले करते आकर माँ से प्रीत !!
सुबह और शाम हमेशा होती रहती मंगल आरती !
दृश्य यहाँ का स्वर्ग सा मनोरम जो है सबको भाती !!
शनि और मंगल माँ को लगता खिचड़ी और खीर का भोग !
भक्त जन आते कीर्तन गाते प्रसाद हैं पाते और भगाते दुःख रोग !!
सुधीर कुमार ' सवेरा '