शनिवार, 8 अगस्त 2015

528 . मैं तो सिर्फ अपना दर्द बयां करता हूँ

               ( मैं और मेरा अभिन्न मित्र मनोज )
५२८ 
मैं तो सिर्फ अपना दर्द बयां करता हूँ ,
लोग उसे ख्यालों की कविता समझ बैठते हैं !

लोग जीते जी परिजनों की सेवा का सामर्थ्य नहीं जुटा पाते  ,
मृत्युपरांत वही कर्ज ले ले कर समाज को भोज हैं देते !

बस परम्पराएं हों व्यवहारिक ,
कर्मोपरांत पाँच ब्राह्मणों को खिलाना ही है तार्किक !

यदि पुनर्जन्म सत्य हो तो मैं वहीँ जाऊँ ,
जहाँ हर जन्म यही माता पिता पाऊं !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०९ - २०१२ 
७ - ४० pm 

कोई टिप्पणी नहीं: