( मैं और मेरा अभिन्न मित्र मनोज )
५२८
मैं तो सिर्फ अपना दर्द बयां करता हूँ ,
लोग उसे ख्यालों की कविता समझ बैठते हैं !
लोग जीते जी परिजनों की सेवा का सामर्थ्य नहीं जुटा पाते ,
मृत्युपरांत वही कर्ज ले ले कर समाज को भोज हैं देते !
बस परम्पराएं हों व्यवहारिक ,
कर्मोपरांत पाँच ब्राह्मणों को खिलाना ही है तार्किक !
यदि पुनर्जन्म सत्य हो तो मैं वहीँ जाऊँ ,
जहाँ हर जन्म यही माता पिता पाऊं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०९ - २०१२
७ - ४० pm
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मैं तो सिर्फ अपना दर्द बयां करता हूँ ,
लोग उसे ख्यालों की कविता समझ बैठते हैं !
लोग जीते जी परिजनों की सेवा का सामर्थ्य नहीं जुटा पाते ,
मृत्युपरांत वही कर्ज ले ले कर समाज को भोज हैं देते !
बस परम्पराएं हों व्यवहारिक ,
कर्मोपरांत पाँच ब्राह्मणों को खिलाना ही है तार्किक !
यदि पुनर्जन्म सत्य हो तो मैं वहीँ जाऊँ ,
जहाँ हर जन्म यही माता पिता पाऊं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७ - ०९ - २०१२
७ - ४० pm
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