गुरुवार, 27 अगस्त 2015

546 . रात भर सो नहीं पाया

                                     यादें
( बेटा उज्जवल सुमित बिटिया सिद्धिदात्री के विवाह में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते  हुए )
५४६
रात भर सो नहीं पाया 
व्यवस्था पर दिल कचोटता रहा मन मसोसता रहा 
ढाई घंटे जनता ने ढाई घंटे व्यवस्था ने 
गर जो बर्बाद न किये होते 
आज दामनी भी हमारे साथ होती 
तुर्रा उसपे चिंतक बड़े - बड़े  
खोज रहे हैं ईलाज खड़े - खड़े 
विषबेल के पत्ते - पत्ते डाली - डाली 
हैं सारे के सारे सड़े गले पड़े 
जड़ किसी को भला दीखता क्यों नहीं 
हैं जहाँ लालच भ्रष्टाचार के मट्ठे पड़े 
कुछ कहते जेंडर ही जेंडर का भला करेंगे 
कुछ कहते जाति ही जाति का भला करेंगे 
पर देखा हमने जेंडर ने कैसा इंसाफ किया 
दरिंदों ने तो मरने की हालत में सिर्फ था ला छोड़ा 
अव्यवस्था ने तो उसे पूरी तरह से मार ही डाला
कोई हो जाति कोई हो धर्म कोई हो लिंग 
फर्क इससे नहीं पड़ता है कोई 
कितना है इंसान वो कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार 
इंसाफ इससे है मिलता किसी को !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०५ - ०१ - २०१३ 
०१ - १६ pm   

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