५२३
आओ आँखों से नींद अब उड़ा दिया जाये ,
जोशो खरोश से भरे इस यात्रा का मजा लिया जाये !
शहीदों के लहू से सिंचित यह भूमि है ,
माथे से इस माटी को लगा लिया जाये !
हाथ की रेखा गर जो रोके बढ़ने से आगे ,
ऐसी रेखा को चलो अब मिटा दिया जाये !
कोई बढ़ जाये आगे हम न रह जाएँ पीछे ,
यह भ्रम अब मन से हटा दिया जाये !
खुद को क्या चाहिए औरों को मिलेगा क्या ?
स्पष्ट रूप से अब सबको बता दिया जाये !
धागा प्रेम का था गांठ उसमे पड़ी है जरूर ,
समय को पहचान उसे सुलझा लिया जाये !
फिर से जो वो तोड़ेंगे - फोड़ेंगे हमें ,
उनके इस सपने पर बुलडोजर चला दिया जाये !
धर्म के नाम पे कर्म को कहते जो छोटे ,
चलो ऐसी पंक्ति को पन्ने से हटा दिया जाये !
इत्र तेल फुलेल से गमका बदन बहुत ,
मातृ भक्ति से चलो अब तन - मन को शराबोर कर लिया जाये !
प्रेम - विरह के गीत युवाओं ने गाये बहुत ,
वीर रस ही अब गाएंगे सब को ये बता दिया जाये !
बेख़ौफ़ - बेझिझक सोयी मरी पड़ी सी ये सरकार ,
पाञ्चजन्य शंख फूंक उसे अब बदल दिया जाये !
सुधीर कुमार ' सवेरा ''
आओ आँखों से नींद अब उड़ा दिया जाये ,
जोशो खरोश से भरे इस यात्रा का मजा लिया जाये !
शहीदों के लहू से सिंचित यह भूमि है ,
माथे से इस माटी को लगा लिया जाये !
हाथ की रेखा गर जो रोके बढ़ने से आगे ,
ऐसी रेखा को चलो अब मिटा दिया जाये !
कोई बढ़ जाये आगे हम न रह जाएँ पीछे ,
यह भ्रम अब मन से हटा दिया जाये !
खुद को क्या चाहिए औरों को मिलेगा क्या ?
स्पष्ट रूप से अब सबको बता दिया जाये !
धागा प्रेम का था गांठ उसमे पड़ी है जरूर ,
समय को पहचान उसे सुलझा लिया जाये !
फिर से जो वो तोड़ेंगे - फोड़ेंगे हमें ,
उनके इस सपने पर बुलडोजर चला दिया जाये !
धर्म के नाम पे कर्म को कहते जो छोटे ,
चलो ऐसी पंक्ति को पन्ने से हटा दिया जाये !
इत्र तेल फुलेल से गमका बदन बहुत ,
मातृ भक्ति से चलो अब तन - मन को शराबोर कर लिया जाये !
प्रेम - विरह के गीत युवाओं ने गाये बहुत ,
वीर रस ही अब गाएंगे सब को ये बता दिया जाये !
बेख़ौफ़ - बेझिझक सोयी मरी पड़ी सी ये सरकार ,
पाञ्चजन्य शंख फूंक उसे अब बदल दिया जाये !
सुधीर कुमार ' सवेरा ''
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