सोमवार, 31 अगस्त 2015

547 . मेरा अनुभव रोहतांग पास से रामेश्वरम तक

                             यादें 

( बेटा उज्जवल सुमित बिटिया सिद्धिदात्री के विवाह में


 अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए )


५४७


मेरा अनुभव रोहतांग पास से रामेश्वरम तक 


कहता है यही कि आम जनता है बेहद सज्जन और 


ईमानदार


कुछ मुटठी भर लोग समाज से लेकर राजनीतिक 


तक 


हैं नपुंसक लालची कायर भ्रष्ट लाचार और कमजोर 


जिसका है चहुँ ओर शोर जो दिख रहा चारों ओर 


ऐसा नहीं समाज अपना किसी ओर 


  

पर मानव मन पर पड़ता है इसका असर 

जो दिखता है वैसा ही लगता है हर ओर 


गर जो होती थोड़ी जनतांत्रिक और संवेदनशील 


सरकार 


तततक्षण होती शख्त कार्रवाई आर या पार 


ऐसे असफल नेता जी करते जब हम पर शासन  


पर दुर्दिन के मारे हमारे भाग्य हाय रे लाचार 


जिसे हमने अपने हाथों से ही कर डाला है ताड़  - ताड़ 


वर्ना हम अभी तक यूँ आंसू न बहाते होते 


कोई जंतर मंतर पर यूँ न भूखों मरते होते 


समाज में सच बोलने वाले यूँ न मारे - मारे फिरते


ब्रिटिश कालीन पुलिसिया कानून इतने सारे 


इस लोकतंत्र को कभी मिलेगा क्या न्याय नहीं 


वो तो था शासक और शासन के प्रति भय पैदा करने 


के लिए


अब तो चाहिए जनता की रक्षा और सम्मान के लिए !





सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०६ - ०१ - २०१३ 



२-३० pm  

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