शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015
गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015
बुधवार, 25 फ़रवरी 2015
403 .ऐ गुलाब की कली
४०३
ऐ गुलाब की कली
तुझे एहसानमन्द होना चाहिए
उस एक बून्द ओस का
जिसने तुझे छुआ
तेरी अंतरात्मा तक पहुंचा
तुझे सहलाया और गुदगुदाया
अपने सार को तुझ में विलीन कर
अपने पहचान को समाप्त कर
अपने को तुझ में एकाकार कर
प्रथम सवेरा होते ही
तुझे फूल बना दिया
कितनी ओस की बुँदे
तुझ तक पहले भी पहुंची
कितने मोती बादो में आये
पर पूछो अपने अंतरात्मा से
किसको तूने जिया
किसके सत्व को तूने पिया
किससे पाया तूने जीवन पूर्ण
पाकर किसे तूँ बनी सम्पूर्ण
हवाओं से निकली ये धून
फिजाओं में भी गूंजी यही आवाज
हर साज ने छेड़ी सही तान
ऐ गुलाब की कली
तुझे होना चाहिए एहसानमन्द
उस ओस के मोती का
जिस ने तुझे पुष्प बनाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
ऐ गुलाब की कली
तुझे एहसानमन्द होना चाहिए
उस एक बून्द ओस का
जिसने तुझे छुआ
तेरी अंतरात्मा तक पहुंचा
तुझे सहलाया और गुदगुदाया
अपने सार को तुझ में विलीन कर
अपने पहचान को समाप्त कर
अपने को तुझ में एकाकार कर
प्रथम सवेरा होते ही
तुझे फूल बना दिया
कितनी ओस की बुँदे
तुझ तक पहले भी पहुंची
कितने मोती बादो में आये
पर पूछो अपने अंतरात्मा से
किसको तूने जिया
किसके सत्व को तूने पिया
किससे पाया तूने जीवन पूर्ण
पाकर किसे तूँ बनी सम्पूर्ण
हवाओं से निकली ये धून
फिजाओं में भी गूंजी यही आवाज
हर साज ने छेड़ी सही तान
ऐ गुलाब की कली
तुझे होना चाहिए एहसानमन्द
उस ओस के मोती का
जिस ने तुझे पुष्प बनाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
सोमवार, 23 फ़रवरी 2015
रविवार, 22 फ़रवरी 2015
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015
बुधवार, 11 फ़रवरी 2015
मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015
सोमवार, 9 फ़रवरी 2015
393 . झुलसती सांसों ने
३९३
झुलसती सांसों ने
बतलायी आशों को
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
रक्त का हर कतरा
कराहते हुए कहा
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
चमन की प्यास ने
कहा शाम में
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
अभिलाषा जब मिली निराशा से
कहा उसने मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
यादों ने अपनी गांठें खोल
कहा आज से
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
द्वार पे सजनी खड़ी थी
आंसुओं से जिसकी पलकें भींगी थी
बिछोह ने कहा
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
विश्वास ने प्रयासों के दीवार फांद
कहा बेवफा से
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
झुलसती सांसों ने
बतलायी आशों को
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
रक्त का हर कतरा
कराहते हुए कहा
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
चमन की प्यास ने
कहा शाम में
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
अभिलाषा जब मिली निराशा से
कहा उसने मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
यादों ने अपनी गांठें खोल
कहा आज से
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
द्वार पे सजनी खड़ी थी
आंसुओं से जिसकी पलकें भींगी थी
बिछोह ने कहा
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष
विश्वास ने प्रयासों के दीवार फांद
कहा बेवफा से
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
रविवार, 8 फ़रवरी 2015
शनिवार, 7 फ़रवरी 2015
शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015
389 . ' मैं ' ' मैं ' नहीं हूँ
३८९
' मैं ' ' मैं ' नहीं हूँ
मैं विगत हूँ
मैं वर्तमान नहीं हूँ
मैं वो हूँ
स्वरुप मेरा जो खो गया है
नजर में जो आता हूँ
वो मैं नहीं हूँ
देखते हो जो तुम
तुम्हारी ही चढ़ाई हुई कलई है
तुमने तो बिसरा दिया है मुझे
मैं वो नहीं हूँ
जो देखते हो तुम मुझे
मेरे रूप का स्वरुप
तुमने अतीत में खो दिया है
तुमने तो अपने भरसक
भुला ही दिया है मुझे
मैं हूँ ही ऐसा
हर पल जो साथ रखता है तुझे
मुझ में मुझ का कोई सत्व नहीं
मैं तो वही हूँ
चिर निरंतर नित्य रूप सच्चिदानंद !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
' मैं ' ' मैं ' नहीं हूँ
मैं विगत हूँ
मैं वर्तमान नहीं हूँ
मैं वो हूँ
स्वरुप मेरा जो खो गया है
नजर में जो आता हूँ
वो मैं नहीं हूँ
देखते हो जो तुम
तुम्हारी ही चढ़ाई हुई कलई है
तुमने तो बिसरा दिया है मुझे
मैं वो नहीं हूँ
जो देखते हो तुम मुझे
मेरे रूप का स्वरुप
तुमने अतीत में खो दिया है
तुमने तो अपने भरसक
भुला ही दिया है मुझे
मैं हूँ ही ऐसा
हर पल जो साथ रखता है तुझे
मुझ में मुझ का कोई सत्व नहीं
मैं तो वही हूँ
चिर निरंतर नित्य रूप सच्चिदानंद !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
बुधवार, 4 फ़रवरी 2015
387 . तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर
३८७
तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर
अब तक अंकित है
जो न अब स्पष्ट ही होती है
न लुप्त ही होती है
पर जीने के लिए बस
वही तेरी यादों का सहारा
तेरे उभर रहे चेहरे
जो न लुप्त ही होती
न स्पष्ट ही होती है
साफ होते - होते ही तेरी तस्वीर
छिप जाती है धुंध में फिर
पर मन में से विलुप्त नहीं हो पाते
तेरे उभर रहे चेहरे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ११ - १९८३
तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर
अब तक अंकित है
जो न अब स्पष्ट ही होती है
न लुप्त ही होती है
पर जीने के लिए बस
वही तेरी यादों का सहारा
तेरे उभर रहे चेहरे
जो न लुप्त ही होती
न स्पष्ट ही होती है
साफ होते - होते ही तेरी तस्वीर
छिप जाती है धुंध में फिर
पर मन में से विलुप्त नहीं हो पाते
तेरे उभर रहे चेहरे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ११ - १९८३
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015
382 . ओ माँ
३८२
ओ माँ
करुणामयी
कल्याणमयी माँ
तेरे कृपा बिना
सुख है कहाँ
ओ माँ
बुद्धिहीन
क्षुद्र कर्महीन
उच्चाकांक्षाओं से
भाग्य कहाँ ?
ओ माँ
दो भक्ति
भरो शक्ति
नैया लगाकर पार
दे दो मुक्ति
हो जीवन सफल यहाँ
ओ माँ
शरणागत हूँ
दे दो चरण धूल
हो न फिर
कोई भूल
पाकर तेरा सहारा
फिरूंगा न मारा - मारा
पाउँगा अनंत विश्राम !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
ओ माँ
करुणामयी
कल्याणमयी माँ
तेरे कृपा बिना
सुख है कहाँ
ओ माँ
बुद्धिहीन
क्षुद्र कर्महीन
उच्चाकांक्षाओं से
भाग्य कहाँ ?
ओ माँ
दो भक्ति
भरो शक्ति
नैया लगाकर पार
दे दो मुक्ति
हो जीवन सफल यहाँ
ओ माँ
शरणागत हूँ
दे दो चरण धूल
हो न फिर
कोई भूल
पाकर तेरा सहारा
फिरूंगा न मारा - मारा
पाउँगा अनंत विश्राम !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
सोमवार, 2 फ़रवरी 2015
रविवार, 1 फ़रवरी 2015
380 .हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ
३८०
हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ
सुबह में ही हो गयी शाम तो क्या हुआ
हर प्रयत्न चतुराई का
जीवन चलता रहा अविराम
हर पल हूँ हारा
हर प्रयत्न हुए नाकाम
जितनी आकुलता जितनी शीघ्रता थी
पाने को अपनी मंजिल
कहा उतना ही औरों ने हर पल मुझको काहिल
देख ' सवेरा ' खो न जाना
बाधाओं से डोल न जाना
नियति के हाथों में पड़कर भी
अपने पराये को भूल न जाना
कर्तव्यों की चाह में चाहा अपनों को गले लगाना
हर ने वफ़ा के साये में जफ़ा कर चाहा परे भगाना
काँटे हैं उग आये
अपनों में अपनापन खोजा तो
दोस्त भी दुश्मन निकल आये
तुम्ही कहो करें क्या किसपे हो विश्वास भला
जब सब ने मिल हो किया विश्वासघात
तो दिल क्यों न जले भला !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २३ - ११ - १९८७
१२ - ४० pm
हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ
सुबह में ही हो गयी शाम तो क्या हुआ
हर प्रयत्न चतुराई का
जीवन चलता रहा अविराम
हर पल हूँ हारा
हर प्रयत्न हुए नाकाम
जितनी आकुलता जितनी शीघ्रता थी
पाने को अपनी मंजिल
कहा उतना ही औरों ने हर पल मुझको काहिल
देख ' सवेरा ' खो न जाना
बाधाओं से डोल न जाना
नियति के हाथों में पड़कर भी
अपने पराये को भूल न जाना
कर्तव्यों की चाह में चाहा अपनों को गले लगाना
हर ने वफ़ा के साये में जफ़ा कर चाहा परे भगाना
काँटे हैं उग आये
अपनों में अपनापन खोजा तो
दोस्त भी दुश्मन निकल आये
तुम्ही कहो करें क्या किसपे हो विश्वास भला
जब सब ने मिल हो किया विश्वासघात
तो दिल क्यों न जले भला !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २३ - ११ - १९८७
१२ - ४० pm
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