शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

407 .कुछ अत्याचार भी किये मैंने

४०७ 
कुछ अत्याचार भी किये मैंने 
तो किसलिए 
कुछ घात - प्रतिघात भी सोंचे 
तो किसलिए 
खुद को सरेआम किया बदनाम 
तो किसलिए 
जो किया था न कभी सोंचा वो भी 
तो किसलिए 
होने थे जब खुशियों से दो चार 
पाये थे तब गमें हजार 
कर के इतना सब कुछ भी 
बचा न पाया था सच को तब भी !
तो किसलिए !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

406 .हर सड़कों पे

४०६ 
हर सड़कों पे 
सत्य मिल जाया करता है कभी - कभी 
ढूंढने लगता है जब परछाई 
खो देता है अपना अर्थ 
जिसे मिल न पाया फिर कभी 
चरित्रों की चित्रावली 
देखा अनेक बार चलचित्रों में 
पर एक बार भी 
खो न सका उन में 
होकर बड़ा भाई 
जन्म लेना 
है कितना तृप्तकर 
पाकर उसपे विवेक 
होता है कितना कष्टकर !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

405 . कर आध्यात्म का ढोंग

 ४०५ 
कर आध्यात्म का ढोंग 
पाना चाहता है अंदर का चैन 
कर बंद दुनिया की आवाज 
पाना चाहता है अपना राज !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

404 .पानी दीवारों से नहीं पहाड़ों से गिरते हैं

४०४ 
पानी दीवारों से नहीं पहाड़ों से गिरते हैं 
हम मरने से नहीं जीने से हैं डरते  
क्या अंतर है जीने में 
और जीते जी मर जाने में 
जब खुद की हँसी लूटा दोगे 
दूजे के होंठो पे हंसी ला दोगे 
जब हर क्षण अपना औरों के लिए जियोगे 
औरों का हर पल खुद को पा लोगे !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

403 .ऐ गुलाब की कली

४०३ 
ऐ गुलाब की कली 
तुझे एहसानमन्द होना चाहिए 
उस एक बून्द ओस का 
जिसने तुझे छुआ 
तेरी अंतरात्मा तक पहुंचा 
तुझे सहलाया और गुदगुदाया 
अपने सार को तुझ में विलीन कर 
अपने पहचान को समाप्त कर 
अपने को तुझ में एकाकार कर 
प्रथम सवेरा होते ही 
तुझे फूल बना दिया 
कितनी ओस की बुँदे 
तुझ तक पहले भी पहुंची 
कितने मोती बादो में आये 
पर पूछो अपने अंतरात्मा से 
किसको तूने जिया 
किसके सत्व को तूने पिया 
किससे पाया तूने जीवन पूर्ण 
पाकर किसे तूँ बनी सम्पूर्ण 
हवाओं से निकली ये धून 
फिजाओं में भी गूंजी यही आवाज 
हर साज ने छेड़ी सही तान 
ऐ गुलाब की कली 
तुझे होना चाहिए एहसानमन्द 
उस ओस के मोती का 
जिस ने तुझे पुष्प बनाया !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

402 . लाल और सफ़ेद रेत आसमान में

४०२ 
लाल और सफ़ेद रेत आसमान में 
टुटा जो इंसान 
कोई न मिला इस जहान में !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

401 .मेरे दिल के गहराई में

४०१ 
मेरे दिल के गहराई में 
उतरना तेरा 
यह मेरा कसूर न था 
तुझको रोका हर बार 
तुमने मानी नहीं एक बार 
यह मेरा कसूर न था !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

400 . जैसे ही तुमने सत्य को जाना

४०० 
जैसे ही तुमने सत्य को जाना 
बस वहीं समझो ' सवेरा ' को पहचाना !
शराब तुमने पी 
मदहोश मैं हुआ 
आँख तेरी झँपी 
खामोश मैं हुआ  
वाह रे तेरी मोहब्बत 
बेवफाई तुमने की
सजा मुझे मिली !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

399 .हर दिन का सूरज डूबता है

३९९ 
हर दिन का सूरज डूबता है 
किसी न किसी घर में 
मेरे शहर में 
और वह 
निकलने से ही पहले 
छूट जाता है 
प्रखर धुप 
निकल पड़ती है 
मुरझाये फूल 
कलियों से फूट पड़ती है !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

398 . ' सवेरा ' की बात रख लेना

३९८
' सवेरा ' की बात रख लेना 
वक्त बुरे हों तो 
अपने को दोष मत देना !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

397 . खुद को माफ़ करूँ न करूँ

३९७ 
खुद को माफ़ करूँ न करूँ 
तुझको माफ़ मैं कर दूंगा 
गर कभी कुछ माँगना ही पड़ा 
खुदा से क़यामत मांग लूंगा 
सफर लम्बा और 
जां तन्हा होगी 
' सवेरा ' की भी सुन लो 
तन बड़ा और कफ़न छोटी होगी !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

396 . एक शीशे के

३९६ 
एक शीशे के 
सौ टुकड़े हुए 
एक में हम थे 
औरों में मेरी तनहाई थी !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

395 .कुछ ले लो

३९५ 
कुछ ले लो 
कुछ दे के 
कुछ छोड़ दो 
कुछ खो के 
कुछ रख के 
कुछ भूल के !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

394 .तेरे उम्मीदों पे

३९४ 
तेरे उम्मीदों पे 
नाउम्मीदी की छाप 
हम न उभरने देंगे 
मौत भी गर आ जाएगी 
अफ़सोस लिए हम 
खुद को न मरने देंगे 
जिंदगी के जिस मोड़ पे भी 
पीछे तुम मुङो 
हम तो वहीं खड़े होंगे 

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

393 . झुलसती सांसों ने

३९३ 
झुलसती सांसों ने 
बतलायी आशों को 
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष 
रक्त का हर कतरा 
कराहते हुए कहा 
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष 
चमन की प्यास ने 
कहा शाम में 
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष 
अभिलाषा जब मिली निराशा से 
कहा उसने मंगलमय हो ये नूतन वर्ष 
यादों ने अपनी गांठें खोल 
कहा आज से 
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष 
द्वार पे सजनी खड़ी थी 
आंसुओं से जिसकी पलकें भींगी थी 
बिछोह ने कहा 
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष 
विश्वास ने प्रयासों के दीवार फांद 
कहा बेवफा से 
मंगलमय हो ये नूतन वर्ष !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

392 . अम्बर से धरती तक

३९२ 
अम्बर से धरती तक 
चहुँ दिशाओं में 
छोर नहीं है अंत नहीं है 
चंदा भी लेकर तुझ से चाँदनी 
देती धरा पर शीतल रौशनी 
गायें जिसमे चकोर 
भरे दिल में हिलोर 
नहाये जिसमे धरा 
मन मेरा नाचे रे 
मैं तो गाउँ मगन में !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

391 . सता ले मुझको जी भर

३९१ 
सता ले मुझको जी भर 
यही दया है तेरी मुझ पर 
मैं अकिंचन दया का पात्र 
तेरे करुणा का न बन सका पात्र 
मैं जब था प्यार का भूखा 
पाया तुझसे दुत्तकार और फटकार 
मैं क्या मांगू तुझ से वर 
दे - दे मुझको दे सके जितना कष्ट !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२ - ०९ - १९८२ 

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

390 . चिंतन ही मेरा

३९० 
चिंतन ही मेरा 
हो गया है चिंतातुर 
क्या होगा इस देश का 
मन हो गया है भयातुर !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

389 . ' मैं ' ' मैं ' नहीं हूँ

३८९ 
' मैं ' ' मैं ' नहीं हूँ 
मैं विगत हूँ 
मैं वर्तमान नहीं हूँ 
मैं वो हूँ 
स्वरुप मेरा जो खो गया है 
नजर में जो आता हूँ 
वो मैं नहीं हूँ 
देखते हो जो तुम 
तुम्हारी ही चढ़ाई हुई कलई है 
तुमने तो बिसरा दिया है मुझे 
मैं वो नहीं हूँ 
जो देखते हो तुम मुझे 
मेरे रूप का स्वरुप 
तुमने अतीत में खो दिया है 
तुमने तो अपने भरसक 
भुला ही दिया है मुझे 
मैं हूँ ही ऐसा 
हर पल जो साथ रखता है तुझे 
मुझ में मुझ का कोई सत्व नहीं 
मैं तो वही हूँ 
चिर निरंतर नित्य रूप सच्चिदानंद !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

388 . करो कामना मौत की मेरी

३८८ 
करो कामना मौत की मेरी 
मर कर भी जो काम आऊँ तेरे 
निज जीवन भी न्योछावर करूँ 
जो सुख पाये तूँ थोड़े !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

387 . तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर

३८७ 
तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर 
अब तक अंकित है 
जो न अब स्पष्ट ही होती है 
न लुप्त ही होती है 
पर जीने के लिए बस 
वही तेरी यादों का सहारा 
तेरे उभर रहे चेहरे 
जो न लुप्त ही होती
न स्पष्ट ही होती है 
साफ होते  - होते ही तेरी तस्वीर 
छिप जाती है धुंध में फिर 
पर मन में से विलुप्त नहीं हो पाते 
तेरे उभर रहे चेहरे !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ११ - १९८३ 

386 .कितने सपने थे

३८६ 
कितने सपने थे 
अभी सजाये भी न थे पुरे 
कितने उत्साह थे 
मन में समाये भी न थे पुरे 
हर्षित मन हर्षित तन ने 
उल्लास जगाये भी न थे पुरे !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

385 . उड़ालो मौज फरेबी के

३८५ 
उड़ालो मौज फरेबी के 
खेलो रंग ठगी के 
जिंदगी घिसट रही है 
कर लो संतोष कुछ और ले के 
जिंदगी के किसी मोड़ पे 
जो होगी उनसे मुलाकात कभी 
पूछेंगे हम उनसे 
क्या थी आखिर खता मेरी !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

384 .लिखने वाले हैं ऐसे - ऐसे भी

३८४ 
लिखने वाले हैं ऐसे - ऐसे भी 
लिख देंगे जैसे तैसे भी 
पड़ जायेगा फीका महाकाव्य भी 
फूल खिल के मुरझा जाते हैं 
परवाने शमा से टकरा जाते हैं 
लोग तो मुस्कुरा के हंसा करते हैं 
आप मुस्कुरा के शरमा जाते हैं !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

383 . इस कदर जहाँ में बिखर गए

३८३ 
इस कदर जहाँ में बिखर गए 
अपनी हस्ती ही भूल गए 
धोखा देना नहीं जन्म से सीखा प्राणी 
तुमको विश्वसनीय नहीं है उसकी वाणी 
और शास्त्र की तरह सीखते जो ठगना 
वे तुम जैसे धर्म मूर्त्ति बनते हैं सज्जन ज्ञानी  !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

382 . ओ माँ

३८२ 
ओ माँ 
करुणामयी 
कल्याणमयी माँ 
तेरे कृपा बिना 
सुख है कहाँ 
ओ माँ 
बुद्धिहीन 
क्षुद्र कर्महीन 
उच्चाकांक्षाओं से 
भाग्य कहाँ ?
ओ माँ 
दो भक्ति 
भरो शक्ति 
नैया लगाकर पार 
दे दो मुक्ति 
हो जीवन सफल यहाँ 
ओ माँ 
शरणागत हूँ 
दे दो चरण धूल 
हो न फिर 
कोई भूल 
पाकर तेरा सहारा 
फिरूंगा न मारा - मारा 
पाउँगा अनंत विश्राम !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

381 . अब उठ

३८१ 
अब उठ 
चल बढ़
रुक मत 
चल झट पट 
डगर - डगर पर कहर 
पर चल बढ़ सरपट 
सबर - सबर कर 
पर रुक मत बढ़ चल 
पथ - पथ पर कंटक 
जब - जब यह संकट
वह भगवन जब अग्रज 
बढ़ चल करके रब का स्मरण 
तेरे दर पे क्या गए हम 
हर तरफ से दर बदर हो गए हम !

सुधीर कुमार ' सवेरा '   

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

380 .हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ

३८० 
हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ 
सुबह में ही हो गयी शाम तो क्या हुआ 
हर प्रयत्न चतुराई का 
जीवन चलता रहा अविराम 
हर पल हूँ हारा 
हर प्रयत्न हुए नाकाम 
जितनी आकुलता जितनी शीघ्रता थी 
पाने को अपनी मंजिल 
कहा उतना ही औरों ने हर पल मुझको काहिल
देख ' सवेरा ' खो न जाना 
बाधाओं से डोल न जाना 
नियति के हाथों में पड़कर भी 
अपने पराये को भूल न जाना 
कर्तव्यों की चाह में चाहा अपनों को गले लगाना 
हर ने वफ़ा के साये में जफ़ा कर चाहा परे भगाना 
काँटे हैं उग आये 
अपनों में अपनापन खोजा तो 
दोस्त भी दुश्मन निकल आये 
तुम्ही कहो करें क्या किसपे हो विश्वास भला 
जब सब ने मिल हो किया विश्वासघात 
तो दिल क्यों न जले भला !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २३ - ११ - १९८७ 
१२ - ४० pm