४०४ पानी दीवारों से नहीं पहाड़ों से गिरते हैं हम मरने से नहीं जीने से हैं डरते क्या अंतर है जीने में और जीते जी मर जाने में जब खुद की हँसी लूटा दोगे दूजे के होंठो पे हंसी ला दोगे जब हर क्षण अपना औरों के लिए जियोगे औरों का हर पल खुद को पा लोगे ! सुधीर कुमार ' सवेरा '
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