शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

406 .हर सड़कों पे

४०६ 
हर सड़कों पे 
सत्य मिल जाया करता है कभी - कभी 
ढूंढने लगता है जब परछाई 
खो देता है अपना अर्थ 
जिसे मिल न पाया फिर कभी 
चरित्रों की चित्रावली 
देखा अनेक बार चलचित्रों में 
पर एक बार भी 
खो न सका उन में 
होकर बड़ा भाई 
जन्म लेना 
है कितना तृप्तकर 
पाकर उसपे विवेक 
होता है कितना कष्टकर !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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