406 .हर सड़कों पे
४०६
हर सड़कों पे
सत्य मिल जाया करता है कभी - कभी
ढूंढने लगता है जब परछाई
खो देता है अपना अर्थ
जिसे मिल न पाया फिर कभी
चरित्रों की चित्रावली
देखा अनेक बार चलचित्रों में
पर एक बार भी
खो न सका उन में
होकर बड़ा भाई
जन्म लेना
है कितना तृप्तकर
पाकर उसपे विवेक
होता है कितना कष्टकर !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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