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ऐ गुलाब की कली
तुझे एहसानमन्द होना चाहिए
उस एक बून्द ओस का
जिसने तुझे छुआ
तेरी अंतरात्मा तक पहुंचा
तुझे सहलाया और गुदगुदाया
अपने सार को तुझ में विलीन कर
अपने पहचान को समाप्त कर
अपने को तुझ में एकाकार कर
प्रथम सवेरा होते ही
तुझे फूल बना दिया
कितनी ओस की बुँदे
तुझ तक पहले भी पहुंची
कितने मोती बादो में आये
पर पूछो अपने अंतरात्मा से
किसको तूने जिया
किसके सत्व को तूने पिया
किससे पाया तूने जीवन पूर्ण
पाकर किसे तूँ बनी सम्पूर्ण
हवाओं से निकली ये धून
फिजाओं में भी गूंजी यही आवाज
हर साज ने छेड़ी सही तान
ऐ गुलाब की कली
तुझे होना चाहिए एहसानमन्द
उस ओस के मोती का
जिस ने तुझे पुष्प बनाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
ऐ गुलाब की कली
तुझे एहसानमन्द होना चाहिए
उस एक बून्द ओस का
जिसने तुझे छुआ
तेरी अंतरात्मा तक पहुंचा
तुझे सहलाया और गुदगुदाया
अपने सार को तुझ में विलीन कर
अपने पहचान को समाप्त कर
अपने को तुझ में एकाकार कर
प्रथम सवेरा होते ही
तुझे फूल बना दिया
कितनी ओस की बुँदे
तुझ तक पहले भी पहुंची
कितने मोती बादो में आये
पर पूछो अपने अंतरात्मा से
किसको तूने जिया
किसके सत्व को तूने पिया
किससे पाया तूने जीवन पूर्ण
पाकर किसे तूँ बनी सम्पूर्ण
हवाओं से निकली ये धून
फिजाओं में भी गूंजी यही आवाज
हर साज ने छेड़ी सही तान
ऐ गुलाब की कली
तुझे होना चाहिए एहसानमन्द
उस ओस के मोती का
जिस ने तुझे पुष्प बनाया !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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