३८०
हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ
सुबह में ही हो गयी शाम तो क्या हुआ
हर प्रयत्न चतुराई का
जीवन चलता रहा अविराम
हर पल हूँ हारा
हर प्रयत्न हुए नाकाम
जितनी आकुलता जितनी शीघ्रता थी
पाने को अपनी मंजिल
कहा उतना ही औरों ने हर पल मुझको काहिल
देख ' सवेरा ' खो न जाना
बाधाओं से डोल न जाना
नियति के हाथों में पड़कर भी
अपने पराये को भूल न जाना
कर्तव्यों की चाह में चाहा अपनों को गले लगाना
हर ने वफ़ा के साये में जफ़ा कर चाहा परे भगाना
काँटे हैं उग आये
अपनों में अपनापन खोजा तो
दोस्त भी दुश्मन निकल आये
तुम्ही कहो करें क्या किसपे हो विश्वास भला
जब सब ने मिल हो किया विश्वासघात
तो दिल क्यों न जले भला !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २३ - ११ - १९८७
१२ - ४० pm
हर पल हर पग हर डगर है थका हुआ
सुबह में ही हो गयी शाम तो क्या हुआ
हर प्रयत्न चतुराई का
जीवन चलता रहा अविराम
हर पल हूँ हारा
हर प्रयत्न हुए नाकाम
जितनी आकुलता जितनी शीघ्रता थी
पाने को अपनी मंजिल
कहा उतना ही औरों ने हर पल मुझको काहिल
देख ' सवेरा ' खो न जाना
बाधाओं से डोल न जाना
नियति के हाथों में पड़कर भी
अपने पराये को भूल न जाना
कर्तव्यों की चाह में चाहा अपनों को गले लगाना
हर ने वफ़ा के साये में जफ़ा कर चाहा परे भगाना
काँटे हैं उग आये
अपनों में अपनापन खोजा तो
दोस्त भी दुश्मन निकल आये
तुम्ही कहो करें क्या किसपे हो विश्वास भला
जब सब ने मिल हो किया विश्वासघात
तो दिल क्यों न जले भला !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २३ - ११ - १९८७
१२ - ४० pm
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें