बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

383 . इस कदर जहाँ में बिखर गए

३८३ 
इस कदर जहाँ में बिखर गए 
अपनी हस्ती ही भूल गए 
धोखा देना नहीं जन्म से सीखा प्राणी 
तुमको विश्वसनीय नहीं है उसकी वाणी 
और शास्त्र की तरह सीखते जो ठगना 
वे तुम जैसे धर्म मूर्त्ति बनते हैं सज्जन ज्ञानी  !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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