ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 4 फ़रवरी 2015
386 .कितने सपने थे
३८६
कितने सपने थे
अभी सजाये भी न थे पुरे
कितने उत्साह थे
मन में समाये भी न थे पुरे
हर्षित मन हर्षित तन ने
उल्लास जगाये भी न थे पुरे !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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