४०७ कुछ अत्याचार भी किये मैंने तो किसलिए कुछ घात - प्रतिघात भी सोंचे तो किसलिए खुद को सरेआम किया बदनाम तो किसलिए जो किया था न कभी सोंचा वो भी तो किसलिए होने थे जब खुशियों से दो चार पाये थे तब गमें हजार कर के इतना सब कुछ भी बचा न पाया था सच को तब भी ! तो किसलिए ! सुधीर कुमार ' सवेरा '
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