ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 4 फ़रवरी 2015
385 . उड़ालो मौज फरेबी के
३८५
उड़ालो मौज फरेबी के
खेलो रंग ठगी के
जिंदगी घिसट रही है
कर लो संतोष कुछ और ले के
जिंदगी के किसी मोड़ पे
जो होगी उनसे मुलाकात कभी
पूछेंगे हम उनसे
क्या थी आखिर खता मेरी !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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