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तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर
अब तक अंकित है
जो न अब स्पष्ट ही होती है
न लुप्त ही होती है
पर जीने के लिए बस
वही तेरी यादों का सहारा
तेरे उभर रहे चेहरे
जो न लुप्त ही होती
न स्पष्ट ही होती है
साफ होते - होते ही तेरी तस्वीर
छिप जाती है धुंध में फिर
पर मन में से विलुप्त नहीं हो पाते
तेरे उभर रहे चेहरे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ११ - १९८३
तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर
अब तक अंकित है
जो न अब स्पष्ट ही होती है
न लुप्त ही होती है
पर जीने के लिए बस
वही तेरी यादों का सहारा
तेरे उभर रहे चेहरे
जो न लुप्त ही होती
न स्पष्ट ही होती है
साफ होते - होते ही तेरी तस्वीर
छिप जाती है धुंध में फिर
पर मन में से विलुप्त नहीं हो पाते
तेरे उभर रहे चेहरे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ११ - १९८३
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