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अन्नपूर्णा
भगवति मम कल्याण करिय नित नमो भक्ति दिअ दाने।
अन्नपुरिन मायामय जगगति शिवक धरनि श्रुति जाने।।
उदित दिवाकर सहस्र देह दुति लोचन तीनि विशाले।
वाञ्छादातत्रि महेसि भाल ससि चित्रित वसन अमोले।।
शिवक नृत्य देखि मुदित सुमानस अन्न दान रत दाया।
साधक अभीष्ट सिद्धि निधि दायिनि दुखनाशिनि जगमाया।।
त्रिकोण पदम् बिच षडङ्ग युवतिमय सुन्दर रूप विराजे।
ब्राह्मी आदिक रूप तोहर थिक सर्वदायिनि जगदम्बे।।
रुद्रादिक तन धारिणि पूजित समपत्ति दायिनि नामे।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत पुरिय मनकामे।।