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श्रीकोशिका
जय गाधिसुते , जय जय कौशिकि देव सुते।।
जय जय विश्वामित्र सहोदरि जय जय सकल लोक महिते।
मिथिला पूर्व सम सांस्थायिनि जय जय सकल सगुण सहिते।।
पाहि पाहि परमेश्वरि मामिह सुरसरिता साकं मिलिते।
तीव्र तरंग सुतातिभिल्लरलिते जय जय चपलवेग चलिते।।
जय जय चन्द्रक वेर लघनाशिनि जय जय देवि कलुष रहिते।
पापराशि विध्वंसिनि सततं जय जय निज जन परम हिते।।
( तत्रैव )
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