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सुधा सिन्धु बिच मणिमय मण्डप ता बिच मणिमय वेदि।
ता बिच रत्नसिंहासन ऊपर युगल चरण भय भेदी।।
रिपुक मौलि पर रहत सिंहासन प्रेतासन अभिरामे।
कनक रुचिर तन तेज प्रकाशित बगलामुखि तसु नामे।।
पीत वसन अरु लेपन भूषण पीत विराजित हारे।
अरि रसना कर सओ कर पीड़ित ता पर गदा प्रहारे।।
जे जन सुमिरत तुअ पद पंकज तकर पुरत अभिलाषे।
आदिनाथ के सतत करिअ शुभ अशुभ हरिअ नित लाषे।।
( देवीगीत शतक )
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